।। दक्षा वैदकर ।।
आपका दूसरों पर असर जरूर पड़ता है- अच्छा या बुरा, सकारात्मक या नकारात्मक. यह एक वजह है कि दूसरों के प्रति सही दृष्टिकोण और अच्छा व्यवहार रखना कितना जरूरी है. हम जिस व्यक्ति के जीवन को स्पर्श करते हैं, उसमें एक भूमिका अभिनीत करते हैं. वस्तुत: हमारे पास किसी के भविष्य की चाबी हो सकती है. आगे कहानी में इसे सुंदर ढंग से बताया गया है, क्योंकि वह अवसर और उत्तरदायित्व दोनों को चित्रित करती है.
एक बुजुर्ग व्यक्ति मुख्य गिरजाघर में बैठा ऑर्गन बजा रहा था. दिन ढल चुका था और अस्त होते सूरज का प्रकाश कांच की खिड़की से होकर उस बुजुर्ग व्यक्ति को किसी देवदूत की आभा प्रदान कर रहा था. वह एक निपुण ऑर्गन बजानेवाला था. वह दुखी व उदास धुन बजा रहा था, क्योंकि उसका स्थान एक युवा व्यक्ति को दे दिया गया था. गोधूलि के समय लगभग अशिष्टतापूर्वक वह युवा व्यक्ति मुख्य गिरजाघर के पिछले द्वार से अंदर आया. बुजुर्ग व्यक्ति ने उसके अंदर आने को भांप लिया. उन्होंने ऑर्गन से चाबी हटायी, उसे जेब में रखा और गिरजाघर के पीछे की ओर चल पड़ा.
जैसे ही बुजुर्ग व्यक्ति नौजवान के पास पहुंचा, उस युवा ने अपना हाथ बढ़ाया और कहा, ‘कृपया चाबी..’ बुजुर्ग व्यक्ति ने अपनी जेब से चाबी निकाली और उस नौजवान को दे दी, जो शीघ्रतापूर्वक ऑर्गन की तरफ बढ़ा. वह एक क्षण के लिए रुका, बेंच पर बैठा, चाबी लगायी और उसने ऑर्गन बजाना शुरू कर दिया. वह बुजुर्ग व्यक्ति खूबसूरती से और निपुणतापूर्वक ऑर्गन बजाता था, लेकिन नौजवान ने अत्यंत बुद्धिमानी से उसे बजाया. मानो वह संगीत जिसे दुनिया ने कभी सुना ही नहीं था, ऑर्गन से फूट पड़ा हो और उसने उस गिरजाघर को, उस नगर को और उस देश के उस भाग को सराबोर कर दिया हो.
यह विश्व का जोहन सेबास्तियन बाख के संगीत से पहला परिचय था. बुजुर्ग व्यक्ति ने अपने गालों पर ढलकते आंसुओं के साथ कहा, ‘कल्पना करो, केवल कल्पना करो कि मैंने इस विशेषज्ञ को चाबी ना दी होती तो.’ इस कहानी पर सोचें. यह एक संजीदा विचार है, क्योंकि हम दूसरों के भविष्य की चाबी थामे होते हैं.
– बात पते की
* हम स्वीकार नहीं करना चाहते कि कोई हमसे भी अच्छा हो सकता है. हमसे भी ज्यादा गुणी व रचनात्मक हो सकता है. यही बात हमारी तरक्की रोकती है.
* हमें यह समझना होगा कि हमारे आचरण एवं कार्य दूसरों को प्रभावित करते हैं, जिनमें से बहुतों को हम कभी जान भी नहीं पायेंगे.