नयी दिल्ली : शादी के लिए लड़कियों की कोई निश्चित उम्र तय करना काफी मुश्किल है. ऐसी कोई भी उम्र सीमा हर केस में सटीक नहीं बैठ सकती. सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह बात कही. राष्ट्रीय महिला आयोग की अपील को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए कहा कि शादी की उम्र तय करना सुप्रीम कोर्ट का काम नहीं है.
गौरतलब है कि आठ साल पहले हाइकोर्ट द्वारा दो नाबालिग लड़कियों की शादी को सही ठहराया था, जिसके खिलाफ महिला आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी. न्यायाधीश जेएस खेर और दीपक मिश्र की बेंच ने कहा कि आठ साल पहले हाइकोर्ट ने जिन नाबालिग लड़कियों की शादी को सही ठहराया था उसमें कुछ भी गलत नहीं है.
गौरतलब है कि 2005 और 2006 के केस में हाइकोर्ट ने कम उम्र की लड़कियों को उनके प्रेमी के साथ शादी करने की अनुमति देने के साथ ही उनके प्रेमियों के ऊपर पुलिस द्वारा लगाये गये किडनैपिंग के चार्जेज वापस लेने का भी आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने भी हाइ कोर्ट के आदेश को मान्यता दी थी, लेकिन साथ ही यह भी कहा था कि बाकी कोर्ट अपने फैसलों में इन दो मामलों से प्रेरित न हों. इन्हीं फैसलों के चलते महिला आयोग ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
कानून का उल्लंघन : महिला आयोग का कहना था कि इस तरह तो नाबालिगों की शादी को मान्यता मिल जायेगी, जो बाल विवाह निषेध अधिनियम का उल्लंघन है. इस बात की सख्त जरूरत है कि लड़कियों की शादी की कोई निश्चित उम्र तय की जाये. आयोग की इस मांग पर न्यायधिशों की बेंच ने कहा कि न तो उन लड़कियों ने (जो अब वयस्क हो चुकी हैं) अब तक ऐसा कोई बयान दिया है कि उनकी शादी तब जबर्दस्ती करायी गयी थी. सबके लिए शादी की समान उम्र तय करने वाले हम कौन होते हैं? यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेशों के खिलाफ आयोग की अपील ठुकरा दी.