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सहकारिता प्रसार पदाधिकारी ब.डे काम के

मित्रों, इस अंक में हम प्रखंड के एक ऐसे पदाधिकारी के बारे में बात कर रहे हैं, जिसकी कृषि और गांवों के आर्थिक विकास में बड़ी भूमिका है, लेकिन आम तौर पर इस पदाधिकारी के एक-दो काम को छोड़ कर बाकी काम के बारे में लोग नहीं जानते हैं. किसानों के लिए कृषि ही नहीं, […]

मित्रों,

इस अंक में हम प्रखंड के एक ऐसे पदाधिकारी के बारे में बात कर रहे हैं, जिसकी कृषि और गांवों के आर्थिक विकास में बड़ी भूमिका है, लेकिन आम तौर पर इस पदाधिकारी के एक-दो काम को छोड़ कर बाकी काम के बारे में लोग नहीं जानते हैं. किसानों के लिए कृषि ही नहीं, सहकारिता विभाग भी कई प्रकार की योजनाएं चला रहा है. इन योजनाओं का मकसद किसानों को सहयोग समिति बना कर उनमें सहकारिता की भावना को विकसित करना तथा उसका लाभ उन्हें दिलाना, कृषि कार्य के लिए समय पर खाद, बीज आदि उपलब्ध कराना, आसान शतरें पर कर्ज देना, उनकी फसलों के नुकसान की भरपाई करना, जब फसल तैयार हो जाये, तो किसानों को उनकी उपज की सही कीमत दिलाना, अनाज के भंडारण की व्यवस्था करना आदि. इस तरह पारंपरिक ग्रामीण जीविका और अर्थव्यवस्था को बढ.ाने तथा कृषि विकास के लक्ष्य को पूरा करने की बड़ी जवाबदेही सहकारिता विभाग पर है. प्रखंड स्तर पर इन योजनाओं के संचालन और योजनाओं का लाभ आप तक पहुंचाने के लिए प्रखंड सहकारिता प्रसार पदाधिकारी नियुक्त हैं. गांवों में पैक्स की मजबूती, ज्यादा-से-ज्यादा किसानों को इससे जोड़ने तथा पैक्सों की गतिविधियों के संचालन को सुचारू बनाने की जवाबदेही भी इसी पदाधिकारी की है. पैक्सों को मजबूर करने तथा इसका लाभ हर किसी तक पहुंचाने के लिए राज्य में विशेष सहकारिता सदस्यता अभियान चलाया जा रहा है. इसमें भी सहकारिता प्रसार पदाधिकारी की भूमिका महत्वपूर्ण है.

हकारिता प्रसार पदाधिकारी सहकारिता विभाग का प्रखंड स्तर का महत्वपूर्ण पदाधिकारी है. यह राज्य सहकारिता सेवा का पदाधिकारी होता है. इसकी नियुक्ति बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा के आधार पर होती है. सहकारिता और कृषि विकास से जुड़ी योजनाओं का प्रखंड स्तर पर संचालन का दायित्व इस पदाधिकारी का है. राज्य में 583 सहकारिता प्रसार पदाधिकारी हैं.

जानिए इन योजनाओं को

कृषि उत्पाद की अधिप्राप्ति योजना : आप जानते हैं कि किसानों को उनके उत्पादन (धान व गेहूं) का उचित मूल्य दिलाने के लिए सरकार राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित सर्मथन मूल्य की घोषणा करती है. सर्मथन मूल्य का मतलब है वह सरकारी दर जो सरकार किसान को उसके उत्पादन पर देना तय करती है. सरकार इसी दर पर किसानों के अनाज की खरीद करती है. इससे किसानों को बाजार में बिचौलियों और मुनाफाखोरों को औने-पौने दाम पर अपना अनाज बेचने की से बचाने का मौका मिलता है. दूसरी ओर अनाज की जमाखोरी को भी रोकने का सरकार को अवसर प्राप्त होता है. बिहार में इस काम की बड़ी जिम्मेवारी सहकारिता विभाग के पास है. विभाग ने कृषि उत्पादोंे की खरीद के लिए पैक्स को केंद्र बनाया गया है. पैक्स का मतलब है कि प्राथमिक कृषि साख सहयोग समितियां ( प्राइमरी एग्रीकल्चर क्रेडिट सोसाइटी). धान हो या गेहूं, इनकी सरकारी खरीद पैक्स करती है. यह खरीद सीधा उन किसानों से की जाती है, जो पैक्स के सदस्य हैं. अपना की कीमत किसानों को अकाउंट पेयी चेक से मिलती है. सभी सदस्यों का अकाउंट सहकारिता बैंक में खोला जाना है. पैक्स के जरिये ही राज्य खाद्य निगम तक कृषि उत्पाद पहुंचाया जाता है. पैक्स की गतिविधियों को नियंत्रित करने में सहकारिता प्रसार पदाधिकारी की सीधी भूमिका होती है. राज्य में कृषि उत्पादन में बढ.ोतरी हुई है, लेकिन पैक्स गेहूं या धान की खरीद के सरकार के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पा रही है. वर्ष 2012-13 में खरीफ मौसम में 22.00 लाख मैट्रिक टन धान की खरीद होनी थी, लेकिन पैक्स 16.40 लाख मैट्रिक टन ही धान खरीद सकी. उसी तरह वर्ष 2012-13 में पैक्सों को 12.00 लाख मैट्रिक टन गेहूं की खरीद करनी थी, लेकिन केवल 4.15 लाख मैट्रिक टन ही गेहूं खरीदा जा सका. गेहूं खरीद का लक्ष्य तो पिछले तीन सालों में एक बार भी पूरा नहीं हुआ.

फसल बीमा योजना

बाढ., सुखाड़ और तुषारपात से खेती को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए सरकार द्वारा राज्य में दो प्रकार की फसल बीमा योजना चलायी जा रही है. एक है राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना और दूसरी है मौसम आधारित फसल बीमा योजना. राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना राज्य में वर्ष 2000 से लागू है. राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना का संशोधित कार्यक्रम भी चल रहा है. संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना रबी के मौसम में राज्य के तीन जिलों शिवहर, जमुई और मुंगेर तथा खरीफ के मौसम में सात जिलों मधुबनी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मोतिहारी, खगड़िया, शिवहर एवं सीतामढ.ी में लागू है.

राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना

इस योजना में केंद्र और राज्य सरकार 50-50 प्रतिशत राशि खर्च करती है. योजना का उद्देश्य है कि प्राकृतिक आपदा से अगर फसल या उत्पादन का नुकसान होता है, तो सरकार किसान को उस राशि की भरपाई करती है, ताकि किसान अगली बार भी उसी उत्साह से खेती कर सके और खेती में नुकसान के भय से किसान इससे विमुख न हों. राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना का लाभ उन सभी किसानों को निश्‍चित रूप से मिलना है, जिन्होंने खेती के लिए सहकारी बैंक या किसी भी बैंक से कर्ज लिया है. जिन किसानों ने कर्ज नहीं लिया है, चाहें तो वे भी इस योजना का लाभ ले सकते हैं. यह उनकी इच्छा पर निर्भर है.

सभी फसलों का बीमा : इस योजना के तहत धान, गेहूं, दलहन, तेलहन जैसी सभी फसलों का बीमा होता है.

सरकारी अनुदान 10 प्रतिशत : छोटे और सीमांत किसानों के लिए फसल बीमा की प्रीमियम राशि का दस प्रतिशत सरकार देती है. इसमें केंद्र और राज्य सरकार का 50-50 प्रतिशत हिस्सा है. फसल के नुकसान पर जो राशि किसान को मिलती है, उसमें भी दोनों सरकारें 50-50 प्रतिशत राशि देती है.

तीन विकल्प : किसानों को अपनी फसल की बीमा के लिए तीन विकल्प मिलते हैं. पहला कि फसल की पूरी राशि की बीमा होती है. दूसरा कि किसान चाहे तो फसल की अनुमानित उपज के मूल्य के आधार पर बीमा कराये. तीसरा विकल्प यह है कि किसान औसत उपज के डेढ. सौ प्रतिशत तक की बीमा कराये.

नुकसान का आकलन फसल कटाई के बाद : जिन किसानों की फसलों की बीमा की जाती है, उन्हें नुकसान हुआ या नहीं, इसका आकलन फसल की कटाई के बाद होता है.

आकलन की इकाई अलग-अलग : धान और गेहूं की फसलों की आकलन अंचल स्तर पर तथा अन्य फसलों का आकलन जिला स्तर पर गठित इकाई द्वारा किया जाता है.

कौन है बीमा एजेंसी : बिहार में एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी ऑफ इंडिया, पटना को फसल बीमा योजना की एजेंसी बनाया गया है.

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