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एक दूसरे के पूरक हैं ग्राम पंचायत, पंस व जिला पर्षद

ग्राम स्तर पर गठित ग्राम पंचायत, प्रखंड स्तर पर गठित पंचायत समिति और जिला स्तर पर गठित जिला परिषद पंचायती राज व्यवस्था में ये तीनों एक दूसरे के पूरक हैं. विकास के कायरें में पंचायती राज संस्थाओं के बीच आपसी आंतरिक संबंध एवं आपसी समझ के तहत विकास के कायरें का लक्ष्य ‘गांधी का सपना […]

ग्राम स्तर पर गठित ग्राम पंचायत, प्रखंड स्तर पर गठित पंचायत समिति और जिला स्तर पर गठित जिला परिषद पंचायती राज व्यवस्था में ये तीनों एक दूसरे के पूरक हैं. विकास के कायरें में पंचायती राज संस्थाओं के बीच आपसी आंतरिक संबंध एवं आपसी समझ के तहत विकास के कायरें का लक्ष्य ‘गांधी का सपना ग्राम स्वराज हो अपना’ तक पहुंचाना है.

नों संस्थाओं के बीच संबंध को विकास के इस उदाहरण से समझा जा सकता है. लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण द्वारा संचालित चापाकल निर्माण एवं मरम्मत का दायित्व ग्राम पंचायतों पर है. पंचायत समिति ग्राम पंचायतों द्वारा लिए गये चापाकल के निर्माण एवं मरम्मत कार्य का अनुश्रवण एवं पर्यवेक्षण करती है. जिला पर्षद द्वारा प्राथमिक एवं मध्य विद्यालयों में चापाकलों के निर्माण के लिए पंचायतों का चयन करती है, जबकि प्राथमिक एवं मध्य विद्यालयों में चापाकलों का निर्माण ग्राम पंचायत द्वारा कराया जाता है. इससे यह स्पष्ट है कि ग्राम पंचायत, पंचायत समिति एवं जिला परिषद में परस्पर तथा सहयोगात्मक संबंध है. ग्राम पंचायत का मुखिया पंचायत समिति के सदस्य होते हैं. मुखिया द्वारा उठाये गये समस्याओं के समाधान के लिए पंचायत समिति आवश्यकतानुसार उचित फोरम जैसे जिला पर्षद में रख कर समाधान करने का प्रयास करती है. इसी प्रकार प्रमुख, जिला परिषद के सदस्य होते हैं और वे पंचायत समिति के निर्णयों और समस्याओं का समाधान जिला पर्षद के माध्यम से करते हैं. इससे ग्राम पंचायत और पंचायत समिति की समस्याओं के समाधान में जिला पर्षद सहायता करता है. तीनों स्तरों पर तालमेल, समन्वय एवं गतिविधि की जानकारी एक दूसरे को होती रहती है. पंचायत समिति ग्राम पंचायत के पदधारकों और जिला पर्षद पंचायत समिति के पदधारकों से आपसी समन्वय और विकास के कायरें को आगे बढ.ा सकने में सक्षम हैं. पंचायतों के अधिकार, कार्य तथा शक्तियां स्वायत्त हैं. लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण में पंचायती राज संस्थाओं की अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका है. इसकी परिकल्पना अपने देश में कोई नया नहीं, बल्कि प्राचीन काल से ही मानव समाज के ताने-बाने का अभित्र हिस्सा रही है. पंचायती राज संस्थाएं भारत के ग्रामीण विकास में जो सहयोग प्रदान कर रही हैं, वह किसी भी प्रकार कम नहीं है. देश भर में 26 लाख से अधिक व्यक्ति पंचायतों के तीनों स्तरों पर चुने जाते हैं. सच्चे अर्थों में हम अपने आपको तभी लोकतांत्रिक राज्य कह सकते हैं, जब जनता शासन-प्रशासन के कार्यों में अधिक से अधिक सहयोग करे और अपना दायित्व समझे. राजकाज में आम आदमी की हिस्सेदारी व भागीदारी हो, इसको साकार करने का एकमात्र तरीका है पंचायती राज. भारत में पंचायती राज का इतिहास अत्याधिक पुराना है और इसकी ज.डे हड़प्पा सभ्यता से लेकर वैदिक काल तक में देखी जा सकती हैं. जब दुनिया सभ्य हो ही रही थी, उस समय वैदिक काल में ही हमारे यहां पंचायतें अस्तित्व में आ चुकी थीं.

पंचायतों में भ्रष्टाचार रोकने का क्या हो प्रावधान

जब कभी गांव में कोई परियोजना लागू होती है या कोई अन्य काम होता है तब कनिष्ठ अभियंता या एसडीएम या अन्य किसी अधिकारी द्वारा यह सत्यापित किया जाता है कि काम को संतोषजनक ढंग से पूरा किया गया है और उसके लिए भुगतान किया जा सकता है. इस संबंध में ग्राम सभा की कोई भूमिका नहीं होती है. ऐसे में अधिकतर घटिया काम के लिए या केवल कागजी कामों के लिए भी भुगतान हो जाता है. जब घटिया काम या काम न होने की शिकायतें की जाती हैं तो, उनकी जांच संबंधित विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा की जाती है. ये अधिकारी भ्रष्टाचार में हिस्सेदार होते हैं या फिर वे रिश्‍वत लेकर जांच के काम में ढिलाई बरतते हैं.

ग्राम सभा निर्गत करे अनापत्ति पत्र

ग्राम सभा की ओर से जब तक संतुष्टि प्रमाण-पत्र न दिया जाए, तब तक गांव में कराये गये किसी काम के लिए भुगतान नहीं होना चाहिए. यदि ग्राम सभा यह निर्णय लेती है कि लागू की जा रही परियोजना या किया गया कार्य संतोषजनक नहीं है, तो वह न केवल भुगतान रोक सके बल्कि जांच करके घटिया काम के कारणों की पड़ताल करे तथा उन सभी उपायों की सिपफारिश करे जिनसे कमियां दूर हो सके. यदि दोषी कर्मचारी पंचायत के किसी स्तर से संबंधित हैं तो ग्राम सभा के पास उसके खिलाफ कार्रवाई करने का भी अधिकार होना चाहिए. यदि आपराधिक भ्रष्टाचार का मामला बनता हो तो ग्राम सभा पुलिस को मामला दर्ज करने और समय-समय पर उस केस की प्रगति के बारे में बताने के लिए निर्देश देने में भी सक्षम होनी चाहिए.

ग्राम सभा को मिले शराब बंदी का अधिकार

गांव के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में शराब की दुकानों के कारण भारी समस्याएं पैदा होती हैं. ऐसे में शराब की दुकान खोलने का कोई लाइसेंस तभी दिया जाना चाहिए जब ग्राम सभा इसकी मंजूरी दे दे. ग्राम सभा की संबंधित बैठक में, वहां उपस्थित 90 प्रतिशत महिलाएं इसके पक्ष में मतदान कर दें. यदि ग्राम सभा में उपस्थित महिला सदस्यों की ओर से साधारण बहुमत के द्वारा इस आशय का प्रस्ताव पारित कर दिया जाए तो मौजूदा शराब की दुकानों का लाइसेंस भी रद्द कर दिया चाहिए.

ग्राम सभा दे उद्योग एवं खनन का लाइसेंस

ग्राम सभाओं को उनके अधिकार क्षेत्र के खनिजों के स्वामित्व का अधिकार दे दिया जाना चाहिए. कोई औद्योगिक इकाई या कोई बड़ा खनन उद्यम शुरू करने के पहले यह जरूरी कर दिया जाना चाहिए कि वे ग्राम सभाओं से अनुमति प्राप्त करें. इस प्रकार की अनुमति देने के पहले ग्राम सभाएं अपनी ओर से कुछ नियम और शर्तें जोड़ सकती हैं. इनमें से किसी एक शर्त या नियम का उल्लंघन किया जाता है तो ग्राम सभाओं को यह अधिकार दिया जाना चाहिए कि वे पहले दी जा चुकी अनुमति को निरस्त कर सकें.

प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों के खिलाफ उचित कार्यवाही करने का पूरा अधिकार ग्राम सभाओं को दिया जाना चाहिए.

भूमि अधिग्रहण की मंजूरी ग्रामसभा से मिले

यदि कोई सरकारी एजेंसी भूमि अधिग्रहण करना चाहती है तो, उसे सभी प्रभावित पंचायतो के पंचायत सचिवों के माध्यम से वहां की ग्राम सभा को प्रार्थना पत्र देना चाहिए.

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