वक्त-ए-सफर:शैलेंद्र सिंह
पाश्र्व गायक शैलेंद्र सिंह ने बॉबी से फिल्मों में एंट्री की थी. बॉबी के गीतों की लोकप्रियता के बाद तो ऋषि कपूर की ज्यादातर फिल्मों के गीत शैलेंद्र सिंह से ही गवाये जाने लगे. कई बेहतरीन गीत गानेवाले शैलेंद्र की याद लेकिन आज कम ही लोगों को है.
अभिनेता ऋषि कपूर इन दिनों खासी चर्चा में हैं. चर्चा उनके अभिनय की दूसरी पारी के शानदार आगाज की है. ऋषि कपूर ने 1973 में बॉबी फिल्म से बतौर अभिनेता परदे पर एंट्री की थी. यह फिल्म सिर्फ ऋषि कपूर को ही बतौर हीरो प्रस्तुत नहीं कर रही थी, एक युवा पाश्र्व गायक की अलहदा आवाज से भी लोगों को रू-ब-रू करा रही थी. ऋषि कपूर के साथ आयी इस आवाज को इतना पसंद किया गया कि यह उस वक्त ऋषि की आवाज कहलाने लगी. ऋषि एक बार फिर परदे पर छा गये हैं, लेकिन इस शख्स के जिक्र का कोई कतरा मुश्किल से मिलता है. यह शख्स हैं पाश्र्व गायक शैलेंद्र सिंह. वही शैलेंद्र सिंह जो ‘बॉबी’ के गीत ‘मैं शायर तो नहीं’ के जरिये हमसे मिले थे. इसके बाद उनकी आवाज से सजे कई गीत आये और लोगों की जुबान का हिस्सा बन गये.
मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज से स्नातक करने के बाद उन्होंने अभिनेता बनने की चाहत के साथ पुणो के फिल्म एवं टेलीविजन इंस्टीट्यूट में प्रवेश लिया. शैलेंद्र अपना तीन वर्षीय कोर्स पूरा कर पाते, इससे पहले ही उनके कैरियर की राह तब बदल गयी जब राज कपूर ने उन्हें ‘बॉबी’ के लिए गाने का मौका दिया. इस फिल्म में ऋषि पर फिल्माये गये सभी गाने, मसलन ‘मैं शायर तो नहीं’,‘हम तुम एक कमरे में बंद हों’, ‘मुङो कुछ कहना है’,‘झूठ बोले कौआ काटे’और ‘न मांगूं सोना चांदी’ सभी में शैंलेद्र की आवाज थी.
इन गीतों की लोकप्रियता के बाद तो ऋषि कपूर की ज्यादातर फिल्मों के गीत शैलेंद्र सिंह से ही गवाये जाने लगे. इस क्रम को आरडी बर्मन के संगीत से सजे ‘खेल-खेल’ फिल्म के ‘हमने तुमको देखा, तुमने हमको देखा’ से लेकर ‘जमाने को दिखाना है’ फिल्म के ‘होगा तुमसे प्यारा कौन’ और ‘सागर’ फिल्म के गीत ‘जाने दो ना’ तक देखा जा सकता है. ‘किसी पर दिल अगर आ जाये तो’ और ‘तुमको मेरे दिल ने पुकारा है’ तो हैं ही. लेकिन शैलेंद्र के हिस्से ‘मैं शायर तो नहीं’ गीत के लिए फिल्म फेयर के बेस्ट प्लेबैक सिंगर अवार्ड का नॉमिनेशन भर दर्ज हो सका. दरअसल, अपनी पहली हिट ‘बॉबी’ के बाद आयी ऋषि कपूर की ‘जहरीला इंसान’,‘रफू चक्कर’ और ‘जिंदा दिल’ जैसी कई फिल्में असफल रहीं. इस असफलता का सबसे ज्यादा असर शैलेंद्र के कैरियर पर पड़ा. ऋषि तो संभल गये, लेकिन उनकी आवाज बन चुके शैलेंद्र पहले सी रफ्तार नहीं पा सके. गायिकी की तमाम खूबियों के बाद भी उनकी अलहदा आवाज जिस तरह चॉकलेटी चेहरे वाले अभिनेता ऋषि कपूर पर जमी, अन्य अभिनेताओं पर नहीं. शायद इसी वजह से उनकी गायिकी लंबा मुकाम नहीं तय कर सकी. हालांकि ‘अंखियों के झरोखों से’ फिल्म में सचिन पर फिल्माये गये उनके गाये गीत ‘कई दिन से कोई मुङो सपनों में आवाज देता है’ को भी पसंद किया गया.
संगीत के क्षेत्र में आज भी शैलेंद्र सिंह सक्रिय हैं और युवा पाश्र्व गायकों के बीच उनका काफी सम्मान भी है. बेशक अपने जीवन में वह अस्सी के दशक में मिली सफलता दोहरा नहीं सके हैं, लेकिन उनके गाये गीतों का मौसम पुराना नहीं पड़ा है. दरअसल, जरूरी नहीं कि दो लोग जो एक ही जगह से साथ चलें हो, वक्त उनके साथ एक जैसा ही बर्ताव करे. फिर विधाओं का फासला भी चीजों को तय करता है. यही बात ऋषि कपूर और शैलेंद्र सिंह के बरक्स देखी जा सकती है. बतौर पाश्र्व गायक सफल होने के बाद भी शैलेंद्र सिंह के मन में अभिनय की अभिलाषा कहीं बची हुई थी. ‘एग्रीमेंट’ और ‘दो जासूस’ जैसी फिल्मों से जिसे उन्होंने साकार करने की कोशिश भी की. लेकिन असफल रहे. हालांकि सफलता कभी प्रतिभा को आंकने का पैमाना नहीं होती. शैलेंद्र सिंह की अलहदा आवाज को पसंद करने वाले आज भी उनके गीत कल की तरह सुनते हैं.
।।प्रीति सिंह परिहार।।