छोटे परदे की जस्सी यानी मोना सिंह इन दिनों अपनी आनेवाली फिल्म ‘जेड प्लस’ को लेकर बेहद उत्साहित हैं. पेश है मोना सिंह से इस फिल्म और अभिनय के अब तक के सफर के बारे में उनसे अनुप्रिया की बातचीत के मुख्य अंश..
मोना, ‘जेड प्लस’ को हां कहने की क्या वजह रही?
मुङो फिल्म के निर्देशक डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेद्वी ने जब कहानी सुनायी और यह बताया कि वह फिल्म के अंत के बारे में किसी को नहीं बतायेंगे. वही मेरे लिए इस फिल्म को हां कहने की सबसे बड़ी वजह थी. साथ ही द्विवेद्वी सर ने जिस तरह की फिल्में आज तक बनायी है, वे सभी बेहद अलग तरह की फिल्में हैं. यह एक कॉमेडी फिल्म है और मुङो कॉमेडी अच्छी लगती है. फिल्म का नैरेशन काफी दिलचस्प तरीके से मुङो सुनाया गया था. मुङो सुनने में ही इतना मजा आया कि मैंने तय कर लिया कि मैं इस फिल्म को जरूर करूंगी.
त्न जेड प्लस कैसे अन्य फिल्मों से अलग है?
इस फिल्म की खासियत यह है कि यह रोमांटिक फिल्मों की कैटेगरी में नहीं आयेगी. अलग तरह का कॉन्सेप्ट है. एक कॉमनमैन की कहानी है, लेकिन इसे एक अलग अंदाज दिया गया है. मुङो ऐसी फिल्में करने में मजा आता है. मैं रोमांटिक फिल्मों की विरोधी नहीं हूं. लेकिन इंटेलिजेंट सिनेमा को तवज्जो देती हूं. मैं ‘क्वीन’ जैसी फिल्में कई बार देख सकती हूं. ‘आंखों देखी’ एक महत्वपूर्ण फिल्म है. मुङो ऐसी ही फिल्में करने में मजा आता है. मेरा मानना है कि ऐसी फिल्में कम बनती हैं, क्योंकि इस तरह की फिल्मों को बनने में वक्त लगता है. अच्छी स्क्रिप्ट को वक्त तो देना ही होता है. बतौर एक्टर ‘जेड प्लस’ जैसी फिल्मों से जुड़ना संतुष्टि देता है, क्योंकि इस तरह की फिल्म में इमोशन, ड्रामा और साथ ही राजनीतिक दृष्टिकोण भी नजर आता है. ‘जेड प्लस’ एक पॉलिटिकल सटायर है और काफी ह्यूमरस है.
आप डेली सोप में नजर नहीं आ रही हैं. कोई खास वजह?
मुङो डेली सोप करना अब थोड़ा बोरिंग सा लगने लगा है. 50-60 एपिसोड तक तो ऊर्जा और उत्साह बना रहता है. बाद में वह उबाऊ सा हो जाता है. एंकरिंग व शो होस्टिंग में ऐसा नहीं होता. एक तो वक्त बहुत ज्यादा नहीं देना पड़ता. फिर हर दिन आप एक-सा काम नहीं करते. आपको अपनी एंकरिंग में नयापन लाना पड़ता है. यह चीजें मुङो अच्छी लगती हैं. यही वजह है कि मैंने छोटा ब्रेक लेने के लिए भी फिल्म की है. लेकिन हां, मैं फिल्में और टीवी दोनों ही करती रहूंगी. न टीवी के लिए फिल्म को और न ही फिल्म के लिए टीवी को छोड़ूंगी. टीवी में भी अगर नयी चीजें हों, नये तरह के कॉन्सेप्ट होंगे, तो मैं वहां कोई भी प्रोजेक्ट्स कर सकती हूं. हां, मगर यह जरूर है कि मैं डेली सोप से ज्यादा खुद को रिलेट नहीं कर पाती हूं. जिस तरह के किरदार मैं निभाना चाहती हूं, वे इन दिनों लिखे नहीं जा रहे. इसलिए मैं ज्यादा से ज्यादा एंकरिंग करती हूं.
टेलीविजन से फिल्म की दुनिया कितनी अलग है. दोनों जगह काम करने के तरीके में कितना अंतर महसूस करती हैं आप?
मुङो लगता है कि एक एक्टर को मीडियम कॉन्सस नहीं होना चाहिए. हां, बस यह जरूर है कि इन बातों का ख्याल रखा जाये कि जिस मीडियम में हैं, उसकी क्या डिमांड है और फिर उसके मुताबिक आप प्लानिंग कर लें. उसी अनुसार परफॉर्म करने की कोशिश करें. इस फिल्म में एक सीन मेरा ड्रीम सीन था, शायद ही टीवी में किसी धारावाहिक में हो. चूंकि जरूरत नहीं पड़ी, तो कभी कर नहीं पायी. लेकिन फिल्म में करने का मौका मिला. हीरोइन के चेहरे पर पानी डाला जाता है और उसे स्लो मोशन में दिखाया जाता है, यह सीन मुङो बचपन से पसंद है. मैंने ‘1942 लव स्टोरी’ में इसे देखा था. ‘जेड प्लस’ में मुङो वह करने का मौका मिला. चूंकि आपको यह पता नहीं होता कि कब कहां किस तरह से मौके मिलेंगे. ‘जेड प्लस’ इस लिहाज से भी मेरे लिए स्पेशल फिल्म है.
‘झलक दिखला जा’ जैसे रियलिटी शो की आप विनर हैं. क्या कभी डांसिंग स्किल्स को और आगे बढ़ाने की इच्छा नहीं हुई?
मुङो लगता है कि मैं कॉमेडी में ज्यादा कंफर्टेबल हूं. ‘जस्सी जैसी कोई नहीं’ जैसे किरदार मिलें या कॉमेडी किरदार, तो उसे सहजता से निभा पाऊंगी. डांस भी पसंद है, लेकिन फिलहाल कॉमेडी करने में ज्यादा दिलचस्पी लूंगी.