।।दक्षा वैदकर।।
मान लें कि आप एक बड़े से मॉल में जाते हैं और आपके साथ एक छोटा बच्च है. आप उस बच्चे को मॉल में अकेला नहीं छोड़ते हैं, क्योंकि आपको पता है कि बच्च यह नहीं समझता कि उसे कहां जाना हैं और कहां नहीं. वह डर जायेगा, वह भटक जायेगा. इसलिए आप बच्चे को गाइड करते हैं कि कहां जाना हैं और कहां नहीं. कुछ ऐसा ही होता है हमारा दिमाग भी. यह दिमाग नाम का बच्च आपको बनाता भी है और डुबाता भी है. बहुत लोगों की जिंदगी तो इसी उधेड़बुन में बीत जाती है कि वे आखिर बनना क्या चाहते हैं? जिंदगी से चाहते क्या हैं? लोग बस यह कहते रह जाते हैं- ‘‘यार, जिंदगी में कुछ करना है, कुछ बनना है.’’ लेकिन वे तय नहीं कर पाते कि करना क्या है.
दोस्तो, अगर आपको खुद को नहीं पता कि आपको क्या करना है, तो आप दिमाग को दिशा कैसे दिखायेंगे. आपका दिमाग भी उस छोटे-से बच्चे की तरह भटक जायेगा. अगर आप नकारात्मक विचारों में, उदासी में डूब जाओगे, तो आपका दिमाग भी कैसे सही दिशा में बढ़ेगा. वह फोकस कैसे कर पायेगा? किसी ने सच ही कहा है, ‘दिमाग साथ, तो क्या है बात!’
दोस्तो, जैसे आप छोटे बच्चे को अच्छा खाना खिलाते हो, पौष्टिक आहार देते हो, ताकि वह स्वस्थ रहे और आगे बढ़े, वैसे ही आपको दिमाग को अच्छे, सकारात्मक विचारों का भोजन देना होगा. अगर आप उसे नकारात्मक विचारों का भोजन देंगे, तो वह कैसे विकास करेगा? अगर आप रोज यही कहेंगे कि मैं बुरा दिखता हूं, अगर मैं फेल हो गया तो? मेरा प्रोमोशन नहीं हुआ तो? आप आगे नहीं बढ़ सकेंगे. साधारण-सी बात है, ऐसा नहीं हो सकता है कि आप दिमाग को नकारात्मक विचार दो और उससे सकारात्मक रूप से आगे बढ़ने की अपेक्षा करो. आपको उसे सकारात्मक विचारों का खाना ही देना होगा.
दूसरी जरूरी बात. जिस तरह आप बच्चों को लेकर बहुत सचेत रहते हैं कि उस पर गलत लोगों का असर न पड़े. कोई कुछ गलत बोले, तो बच्च वह सीख न लें, उसी तरह आपको दिमाग की भी फिक्र करनी होगी. आपको भी दिमाग को उन लोगों से दूर रखना होगा, जो आपकी काबिलीयत पर शक करते हैं. आप पर नकारात्मक टिप्पणी करते हैं. बात पते कीः
-एक बात हमेशा ध्यान रखें कि आपके ‘दिमाग’ नामक बच्चे को साफ तौर पर यह पता होना चाहिए कि उसे जिंदगी में करना क्या है? बनना क्या है?
-लोगों के नकारात्मक विचारों का असर खुद पर न होने दें. ऐसे लोगों से खुद को दूर रखें. अच्छे विचारवाले लोगों के साथ रहें, जो आपको प्रोत्साहित करें.