।।व्यंग्य।।
डीओ साहब मित्र के मित्र थे. शाम को मिलने आये. थके हुए थे पर चेहरे पर कोई बड़ा काम कर गुजरने का संतोष था. चाय, कॉफी, शराब- किसी भी पेय पदार्थ को लेने से उन्होंने इनकार किया, भोज्य पदार्थो से भी. आराम से खटिया पर लेट कर उन्होंने अपनी जेब से चोष्य पदार्थ, यानी तंबाकू निकाली. उसमें एक डिबिया से चूना निकाल कर मिलाया, बायें हाथ की हथेली पर दायें हाथ के अंगूठे से उसे मला, थपथपाया, साफ किया, फिर दांतों और निचले मसूढ़े के बीच उसे दबा लिया. कहा, कंप्यूटर की ट्रेनिंग से आज तीसरे पहर फुरसत मिली है. किसी तरह यह प्रोग्राम भी खत्म हुआ. इज्जत बच गयी.
तंबाकू का ऐसा आदिम प्रयोग करते हुए किसी को बहुत दिन बाद देखा था. उसके साथ कंप्यूटर का पुट तो और भी दुर्लभ था. मैंने पूछा, इस कस्बे में..? उठ कर उन्होंने तंबाकू की पीक थूकी, अपनी ही कहते रहे, कल प्रशिक्षण में आये अफसरों को आस-पास का विकास-कार्य दिखाना है, जंगल में भी घुमाना है. पर अब तो जंगल के मुहकमेवाले देखेंगे. उनके आदमी डेढ़ सौ किलोमीटर दूर पेस्ट्री और तले काजू खरीदने गये हैं. कल आप भी चलिए न!
पर कंप्यूटर-ट्रेनिंग? इस कस्बे में?
यह कस्बा नहीं, गांव है जनाब. वैसे आबादी चार हजार के करीब हो गयी है. एक बार टाउन एरिया बनाने की बात भी चली थी, पर गांववालों ने उसका विरोध किया.
क्यों?
तब लोगों पर कई तरह के टैक्स न लग जाते!
पर गांव का विकास भी तो हो जाता.
फिर बीडीओ साहब की बात तांत्रिकों, ज्योतिषियों, पुरात्तववेत्ताओं, मौसम-विज्ञानियों, समाजशास्त्रियों, कथाकारों और कवियों की अर्धस्फुट वाणी में होने लगी. उन्होंने इस जंगली क्षेत्र के तीस-पैंतीस परिवारोंवाले पुरवे के विकास की कथा सेल्फ जनरेटिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर, आर्केस्टेशन, टेक ऑफ स्टेज जैसी योजना आयोग की भाषा में उद्घाटित करनी शुरू कर दी. श्रोता और शिष्य था मैं, जाना-माना सनकी पत्रकार, और मित्र की मित्रतापूर्ण भाषा में, ग्रामीण अर्थशास्त्र का विशेषज्ञ.
पिछले बीस-पच्चीस साल में उमरावनगर नामक इस छोटे-से जंगली गांव का विकास अपने-आप हो चुका है. इसलिए अब इसे क्षेत्रीय स्तर पर सघन विकास के लिए चुना गया है. चुननेवाले यहां के क्षेत्रीय विधायक हैं.आज से दो साल पहले वे राज्य मंत्री बनाये गये थे. जैसा कि इस कथा में कहीं आगे आयेगा, कोशिश उन्हें परिवहन मंत्री बनाने की थी. यहां चलने वाली बसों में से एक के मुनाफे में उनका आठ आने का हिस्सा था. उनके विधायक बन जाने पर हिस्से की जगह उन्हें पूरा मुनाफा दिया जाने लगा. स्थानीय ट्रांसपोर्ट यूनियन के कर्ता-धर्ता वर्मा साहब, ठेकेदार साहब, ठाकुर साहब जैसे कार्यकर्ताओं ने शोर मचा दिया कि वे परिवहन के राज्यमंत्री बन रहे हैं. अखबार तक में छप गया. इसलिए, मुख्यमंत्री के मन की बात कोई भी नहीं पकड़ सकता, यह प्रमाणित करते हुए उन्हें चीनी उद्योग का राज्यमंत्री बना दिया गया. जो भी हो, उमरावनगर में ट्रांसपोर्ट यूनियन की ओर से उनका जोरदार स्वागत-समारोह हुआ जिसके लिए अखबारों में भव्य और जिसके व्याख्यानों के लिए भाव-भीने जैसे ठेठ विशेषणों का प्रयोग हुआ. समारोह में उन्होंने घोषणा कर दी कि उमरावनगर में वे एक सहकारी चीनी मिल की स्थापना करायेंगे.
दो हजार मीट्रिक टन की क्षमतावाली चीनी मिल और आटाचक्की में कुछ फर्कहै. मंत्री जी के प्रतिक्रि यावादी अफसरों ने उन्हें यह समझाने की कोशिश की. जहां कही भी बिजली का तार गया हो, वहां आटाचक्की चल सकती है. पर चीनी मिल के लिए कुछ और भी चाहिए. गन्ना तो चाहिए ही. उमरावनगर के चारों ओर सरकारी जंगल हैं. मिल चलाने के लिए दूर-दूर से गन्ना लाया जाये, तब भी पूरा न पड़ेगा. आदि-आदि उन्हें समझाया गया. पर मंत्री जी अकड़ गये हर मंत्री की तरह उन्हें पहले से ही नौकरशाही के बारे में सबकुछ मालूम था, जिस कारण वे हमेशा सही सलाह को गलत और गलत सलाह को सही मान बैठते थे.
अत: उन्होंने अपनी घोषणा को कई बार दोहराया. दोहरा ही रहे थे कि जैसा कि आजकल किसी भी लम्हें में हो सकता है, प्रदेश के मुख्यमंत्री ने, अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन कर, जो पार्टी हाइकमांड के आदेश की पर्यायवाची है, अचानक इस्तीफा दे दिया. हमारे क्षेत्रीय विधायक जी दूसरे मंत्रिमंडल में, बिरादरी के अनूठे प्रतिनिधि होने के नाते, फिर से राज्यमंत्री बना दिये गये.. क्रमश:
(श्रीलाल शुक्ल)
जीवनकाल
(31 दिसंबर, 1925 से 28 अक्तूबर, 2011)