।। दक्षा वैदकर ।।
जिंदगी में बहुत बार ऐसा होता है कि परिस्थिति एवं प्रकृति के कारण हमारी 90 प्रतिशत मेहनत बेकार चली जाती है. हमें उसका अलाभकारी परिणाम दिखने लगता है और हम हार कर उस कार्य को वहीं छोड़ देते हैं. कई बार तो कार्य पूर्ण करने पर भी हमें कोई लाभ नहीं दिखता है और न मिलता है, लेकिन उसी कार्य की पूर्णता आगे चल कर हमारी तरक्की का मार्ग प्रशस्त करती हैं.
एक मित्र बताते हैं कि अपनी पहली नौकरी के लिए मुझे रोजाना लगभग छह किमी साइकिल चलाना पड़ती थी. मेरे साथी व मुझसे सीनियर इंजीनियर कंपनी की बस से ऑफिस पहुंचते थे. छह माह बाद कंपनी के मेकेनिकल सेक्शन से हमारे सिविल डिजाइन सेक्शन को एक स्कूटर एलॉट हुआ. उस स्कूटर की हालत बहुत खस्ता थी. उस समय हमें साइट पर चेकिंग के लिए जाना पड़ता था, तो हम कंपनी की जीप मांग कर जाते थे.
हमारे बॉस ने समझाया की नियमित जानेवाले को ये स्कूटर काम आयेगा. मेरे सीनियरों ने मना कर दिया क्योंकि मेकेनिकल सेक्शन से उन्हें पता चला था कि हमारे सेक्शन को तीन मोटरसाइकिलें मिलने वाली हैं. लेकिन मैंने मना नहीं किया. कंपनी के खर्चे पर उस स्कूटर को सुधरवा कर मैं साइट पर आने-जाने लगा. स्कूटर से मुझे कई बार परेशानी भी हुई. मैं मन-ही-मन खुद को कोसता रहा.
लगभग एक माह के बाद हमारे सेक्शन को एक मोटरसाइकिल मिली. सबसे सीनियर इंजीनियर बहुत प्रसन्न हुआ. शाम को सबके सामने मुझको बुला कर मेरे बॉस ने मोटरसाइकिल की चाबी दी और कहा कि बड़े बॉस ने यह पहले से तय कर रखा था कि जो लड़का इस स्कूटर से आना-जाना करेगा, उसे ही मोटरसाइकिल दी जायेगी. मेरे छह सीनियरों को छोड़ कर मुझे वह बाइक मिली, जो आगे मेरी तरक्की और सौभाग्य का कारण बनी.
दोस्तो! कई बार हमारे उच्चाधिकारी हमें लाभ देने के लिए रास्ता तैयार करते हैं, पर हम उनके इशारे समझ नहीं पाते और उस लाभ से वंचित रह जाते हैं. कई बार कोई इशारा भी नहीं होता हैं, पर लाभ तय रहता है. ऐसे में जरूरत है दूर की सोचने की. बेहतर है कि हर चीज का तुरंत फायदा मिलने की उम्मीद न करें.
– बात पते की
* सीनियर साथी आपको जो काम कहें, उसे कभी मना न करें. उसमें जी-जान से जुट जायें. हो सकता है कि वे आपकी परीक्षा ले रहे हों.
* जो चीज ऊपर से खराब दिखती है, जरूरी नहीं कि वह अंदर से भी वैसी ही हो. किसी काम या चीज का केवल ऊपरी आवरण देखना बंद करें.