सिर पर भुजरिया उठाए हुए किन्नरों की यह तस्वीर भोपाल की है, जहाँ हर साल राखी के दो दिन बाद भुजरिया पर्व मनाया जाता है.
किंवदंती है कि भोपाल में राजा भोज के शासन में जब सूखा और अकाल पड़ा तो ज्योतिषाचार्य ने अकाल से मुक्ति पाने के लिए राजा भोज से किन्नरों को भुजरिया करने का आग्रह करने को कहा, तभी से यह परंपरा भोपाल में चली आ रही है.
भुजरिया की तैयारी राखी से क़रीब 12 दिन पहले से की जाने लगती है. गेहूं के दानों को छोटे-छोटे पात्रों के अंदर मिट्टी में अंकुरित होने के लिए रख दिया जाता है. ये हरे पौधे शांति और समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं.
भोपाल शहर के बुधवाड़ा किन्नर घराने से यह कारवां शुरू होता है और शहर के तालाब के पास मंदिर तक चलता है. शहर की सड़कों से गुज़रने वाले इस जुलूस में सारंगी और ढोलक की थाप पर मंगल गीतों पर झूमते हुए किन्नरों की टोलियां जब निकलती हैं तो लोग देखते रह जाते हैं.
परंपरागत शैली के पहनावे के साथ साथ अब आधुनिकता का रंग भी इस पर चढ़ गया है. जहां एक और साड़ी दिखती है वहीं दूसरी तरफ़ पाश्चात्य शैली के ड्रेस को भी तरजीह दी जाने लगी है. फैशन का रंग किन्नरों पर भी साफ़ नज़र आने लगा है.
साल में एक बार होने वाले इस त्योहार पर खुद को आकर्षक दिखाने की होड़ में किन्नर कपड़े और सौंदर्य प्रसाधनों पर हज़ारों रुपए खर्च करते हैं. किन्नरों के आशीर्वाद की मान्यता के चलते लोग भुजरिया लेना शुभ मानते है.
मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र के साथ देश के अन्य हिस्सों से सैकड़ों किन्नर हर साल इस पर्व में शामिल होने के लिए भोपाल पहुंचते हैं. (सभी तस्वीरें: ज़फ़र मुल्तानी)
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