27.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

आंखों को बचाएं आइ फ्लू से

बारिश का मौसम सुहावना होता है, लेकिन साथ ही कई बीमारियों को भी साथ लाता है. ऐसी ही एक प्रमुख बीमारी है कंजंक्टिवाइटिस, जो आंखों में संक्रमण से होती है. इसे सामान्य भाषा में ‘आइ फ्लू’ या ‘आंख आना’ भी कहा जाता है. यह रोग वायरस, बैक्टीरिया व फंगस के संक्रमण से होता है. खास […]

बारिश का मौसम सुहावना होता है, लेकिन साथ ही कई बीमारियों को भी साथ लाता है. ऐसी ही एक प्रमुख बीमारी है कंजंक्टिवाइटिस, जो आंखों में संक्रमण से होती है. इसे सामान्य भाषा में ‘आइ फ्लू’ या ‘आंख आना’ भी कहा जाता है.

यह रोग वायरस, बैक्टीरिया व फंगस के संक्रमण से होता है. खास बात यह है कि संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे में बहुत तेजी से फैलता है. बच्चे सबसे ज्यादा इसका शिकार होते हैं. उन्हें यह संक्रमण स्कूल, खेल के मैदान या दूसरे संक्रमित बच्चों के संपर्क में आने से हो सकता है. उपचार व बचाव पर विशेष जानकारी दे रहे हैं दिल्ली व पटना के प्रतिष्ठित डॉक्टर.

आंख के अंदर कॉर्निया के अलावा एक महीन ङिाल्ली चढ़ी होती है, जो आंख के ऊपरी हिस्से से लेकर निचले हिस्से तक में फैली होती है. यह झल्ली इसे बाहरी प्रदूषण से बचाती है. इसे कंजंक्टाइवा कहा जाता है. कंजंक्टाइवा में किसी भी प्रकार का संक्रमण या एलर्जी होने पर इसमें सूजन आ जाती है. इसे ही कंजंक्टिवाइटिस कहा जाता है. यह बीमारी अक्सर बरसात के मौसम में अधिक देखने को मिलती है, क्योंकि इस मौसम में बैक्टीरियल, वायरस और फंगल इन्फेक्शन आसानी से हो जाता है. इसके अलावा कॉस्मेटिक्स, परफ्यूम, दवा आदि से पैदा हुई एलर्जी से भी यह बीमारी हो सकती है. इस बीमारी में आंखें लाल हो जाती हैं और इनमें खुजली और दर्द रहता है. वैसे तो यह बीमारी ज्यादा खतरनाक नहीं है मगर आंखों में होने से यह काफी कष्टदायक होती है. यह बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में बड़ी तीव्रता से फैलती है.

हो सकता है तेज बुखार
एलर्जिक रिएक्शन और संक्रमण की वजह से होनेवाली इस बीमारी में आंखों में जलन, लालीपन और पानी बहना आम बात है. इसके अलावा पलकों पर पीला तरल पदार्थ चिपकने लगता है. अक्सर सुबह उठने के समय दोनों पलकें इस तरल पदार्थ से चिपक जाती हैं. इनमें चुभन रहती है और तेज दर्द होता है. रोग से ग्रस्त व्यक्ति में आंखों में सूजन व तेज बुखार भी हो सकता है. इसका संक्रमण कई कारणों से हो सकता है. ऐसे में लक्षण भी अलग-अलग होते हैं. ऊपर के चार्ट की मदद से इनके लक्षणों को समझा जा सकता है..

कम प्रतिरोधक क्षमता से बच्चे होते हैं जल्द शिकार
यह बीमारी बच्चों में अधिक होती है और जल्दी फैलती है. ऐसा इसलिए है कि बच्चों के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है. तेज धूप, धूल, प्रदूषण और गंदगी की वजह से भी यह बच्चों को अपना शिकार जल्दी बनाती है. खेलने के दौरान या फिर इस रोग से ग्रसित अन्य बच्चों के साथ रहने से भी यह बीमारी फैलती है. अत: उन्हें इससे बचाने के लिए विशेष सावधानी बरतें. दिन में नियमित रूप से कुछ अंतराल के बाद इन्हें आंखों को ठंडे पानी से धोने की आदत डलवाएं. इससे संक्रमण का खतरा तो कम होगा ही, साथ ही आंखों का सूखापन भी कम होगा. बीमारी हो जाने पर आंखों को बिल्कुल न रगड़ें. शुरुआती दो दिन काफी अहम होते हैं. इनमें विशेष सावधानी बरतें. दूसरे व्यक्ति के संपर्क में आने से बचाएं.

आंखों में चुभन है इसकी पहचान
आंखों में चुभन होने को लोग अक्सर आम समस्या समझ कर नजरअंदाज कर देते हैं. मगर चुभन कभी-कभी आम समस्या न होकर किसी गंभीर बीमारी का प्रारंभिक संकेत भी हो सकती है. कंजंक्टिवाइटिस समेत कई बीमारियों में पहले आंखों में चुभन शुरू होती है. यदि चुभन होने के तुरंत बाद सावधानी बरतें, तो इससे बचा जा सकता है. इसके पीछे एक साइंटिफिक तर्क है कि समस्या तब होती है जब आंखें सूख जाती हैं. यानी ल्यूब्रीकेंट कम हो जाता है, जो खतरे की निशानी है. संकेत है कि आंखें गंभीर रोग की शिकार हो रही हैं.

डॉ मूल चंद

वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ

अनंत ज्योति आइ हॉस्पिटल, दिल्ली

एंटीबायोटिक ड्रॉप्स का प्रयोग जरूरी

आंखों के सफेद हिस्से और पलक के अंदरूनी हिस्से की सतह को कंजंक्टाइवा कहते हैं. इसके सूजन को कंजंक्टिवाइटिस कहते हैं. इसके कई कारण होते हैं- बैक्टीरियल, वायरल, एलजिर्क आदि.

वायरल : यह इसका सबसे कॉमन प्रकार है. यह वायरल इन्फेक्शन के कारण होता है. आंखों में लाली, आंखों में चुभन, आंखों से पानी आना, धूप में तीखा लगना आदि इसके लक्षण हैं.

आम तौर पर यह अपने आप ठीक हो जाता है. मगर बहुत-से केसेज में इसके साथ बैक्टीरियल इन्फेक्शन हो जाने से आंखों में कीचड़ आता है. इसके लिए एंटीबायोटिक्स ड्रॉप्स का इस्तेमाल करना पड़ता है. कभी-कभी गंभीर अवस्था में यह कॉर्निया को भी प्रभावित करता है ऐसे में एंटीवायरल मलहम का प्रयोग जरूरी है.

बैक्टीरियल : यह बैक्टीरियल इन्फेक्शन के कारण होता है. इसमें आखों में आंखों में लाली, दर्द, चुभन, पानी आने के साथ-साथ आंखों से गंदगी भी आता है. इसके कारण सुबह आंखें चिपक जाती हैं. इसमें आंखों को बराबर पानी से धोएं.

एंटीबायोटिक ड्रॉप्स और मलहम का प्रयोग करें. परेशानी ज्यादा होने पर एंटीबायोटिक टेबलेट और कैप्सूल का प्रयोग करना पड़ता है.

एलजिर्क : यह आंखों में एलर्जी के कारण होता है. इसमें आंखों में लाली और पानी आने के साथ ही बहुत तेज खुजली होती है. इसमें पहले एलर्जी का कारण पता लगाना जरूरी होता है. एलर्जी के कई कारण होते हैं जैसे-धूल, धुआं, अगरबत्ती, कॉस्मेटिक आदि का प्रयोग या मौसम का बदलना. अत: यदि इन चीजों से एलर्जी है, तो पहले इन्हें दूर करें. उसके बाद कुछ समय इंतजार करें. यदि यह स्वत: ठीक नहीं होता है, तो एंटी एलजिर्क आइ ड्रॉप, स्टेरॉयड आइ ड्रॉप और एंटी एलजिर्क टेबलेट का प्रयोग करें.

बचाव : रोगी के रूमाल का इस्तेमाल करने से बचें. यदि हाथ मिलाते हैं, तो बिना हाथ को सही ढंग से साफ किये आंखों को न छुएं. कभी-कभी आंखों में किसी कीड़े के पड़ने के कारण भी यह रोग हो जाता है. ऐसे में रात को सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें. इस रोग में लोग गुलाब जल को आंखों में डाल लेते हैं. यह सही नहीं है, इसलिए इससे बचना चाहिए.

बातचीत : अजय कुमार, पटना

डॉ सुनील कुमार सिंह

नेत्र रोग विशेषज्ञ, पटना

संपर्क : 0612-6524461, 2532500

संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से बचें

इस रोग से बचने के लिए निम्न बातों का रखें ध्यान-

हाथों को नियमित रूप से अच्छी तरह साबुन से धोएं.

दिन में आंखों को भी ठंडे पानी से नियमित रूप से साफ करते रहें. त्नसफाई करते समय गीले कपड़े का प्रयोग करें, धूल न उड़ने दें. त्नवैक्यूम क्लीनर से सफाई करके आंखों को धूल से बचा सकते हैं. संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में न आएं.

आंखों के आस-पास सनस्क्रीन का प्रयोग न करें. त्नगरमी में दूसरे व्यक्ति के रुमाल और तौलिया आदि का प्रयोग न करें.

आइ-लाइनर नया इस्तेमाल करें. त्नगंदगीवाली जगह पर जाने से बचें.

फिर भी संक्रमण हो जाये, तो रखें इन बातों का ध्यान :

संक्रमण होने के बाद अपना कॉन्टेक्ट लेंस हटा दें. ठीक होने तक इसका इस्तेमाल न करें. त्न बार-बार आंखों को हाथ न लगाएं. त्नस्विमिंग पूल में जाने से बचें. त्नचश्मा पहन कर चलें.त्नबिना चिकित्सक की सलाह के कोई और दवाई आंखों में न डालें. त्नधूप में बाहर जाना जरूरी है, तो सनग्लास का इस्तेमाल करें.

4-5 दिन घर में ही रहें.

बातचीत व आलेख : कुलदीप तोमर

कंजंक्टिवाइटिस और यूवीआइटिस में अंतर
कंजंक्टिवाइटिस में आंखों में तेज खुजली और कीचड़ आता है, जबकि यूवीआइटिस में ये लक्षण नहीं होते हैं. इसमें आंखों के अंदरूनी हिस्से यूविया में सूजन होती है. इसमें आंखों में दर्द, लाली होने के साथ रोशनी भी गिर सकती है. कंजंक्टिवाइटिस में रोशनी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. यूवीआइटिस में स्टेरॉयड का प्रयोग करते हैं, जबकि कंजंक्टिवाइटिस में इसका प्रयोग नहीं होता. यूवीआइटिस शरीर के दूसरे हिस्से में होनेवाले रोगों के लक्षण के रूप में सामने आता है. अत: इसमें सघन जांच की जरूरत है.

इलाज से ज्यादा जरूरी केयर
कंजंक्टिवाइटिस में ट्रीटमेंट से ज्यादा जरूरी केयर होती है. सावधानी बरतने पर यह बीमारी 4-5 दिनों में ठीक हो जाती है. लापरवाही बरतने पर यह अधिक दिनों तक भी व्यक्ति को अपनी चपेट में ले सकती है. इसका कोई प्रॉपर ट्रीटमेंट भी नहीं है. चिकित्सक भी कंजंक्टिवाइटिस के टाइप को देख कर मरीज को ट्रीट करते हैं. एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस के लिए चिकित्सक एंटीबायोटिक ड्रॉप डालने की हिदायत देते हैं. कंजंक्टिवाइटिस की गंभीर स्थिति में चिकित्सक नॉन स्टेरॉयडल एंटी इन्फ्लेमेट्री आइड्रॉप का इस्तेमाल करते हैं. इस रोग से बचाव इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि यह बड़ी तीव्रता के साथ एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलती है. दवाइयों के माध्यम से चिकित्सक फ्लू की तीव्रता को कम करते हैं और दर्द से राहत देने के लिए आइड्रॉप दे देते हैं. मगर पूरी तरह से संक्रमण चार से पांच दिनों में ही जाता है. चिकित्सक द्वारा ट्रीट करने के बाद इस रोग के सेकेंड्री इन्फेक्शन की आंशका भी आधी हो जाती है.

डॉ मेघा

नेत्र रोग विशेषज्ञ, अभियान आइ सेंटर, दिल्ली

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें