पाकिस्तानी तालिबान लड़ाके शैंपू, साबुन, क्रीम पर ख़ूब पैसे ख़र्च करते थे. अपनी बीवियों के लिए वो तेज़ ख़ुशबू वाले विदेशी इत्र ख़रीदना पसंद करते थे.
ये कहना है कि उत्तरी वज़ीरिस्तान के मीरानशाह क़स्बे के दुकानदारों का. यह क़स्बा पाकिस्तानी तालिबान का गढ़ रहा है.
दुकानदारों के अनुसार तालिबान लड़ाके उनके सबसे अच्छे ख़रीदार थे.
ये दुकानदार आज मज़दूर बन चुके हैं पर अपने पुराने सुनहरे दिनों की याद उन्हें भुलाए नहीं भूलती.
कभी दुकानदार रहे रशीद रहमान कहते हैं, "माफ़ कीजिए मेरे कपड़ों से बदबू आ रही है. मैं कभी मीरानशाह में राजकुमार की तरह रहा करता था."
रशीद कहते हैं उनकी मीरानशाह के मुख्य बाज़ार में बड़ी दुकान थी, जिसमें वो सभी तरह के कॉस्मेटिक्स का सामान, मोज़े और इलेक्ट्रॉनिक सामान बेचते थे.
वह कहते हैं उनकी कमाई एक दिन में एक लाख से एक लाख 15 हज़ार रुपए तक थी.
‘पाकिस्तानी सामान नापसंद’

रशीद की मानें तो तालीबान कभी मोलतोल नहीं करते थे.
वह कहते हैं, "वे अक्सर विदेशी या ब्रैंडेड इत्र और आयातित स्प्रे इस्तेमाल करना पसंद करते थे. उन्हें तेज़ गंध वाले इत्र पसंद थे."
रशीद ख़ासतौर पर इस्लामाबाद और लाहौर जाकर तालिबान की पसंद का विदेशी सामान लाया करते थे.
वह कहते हैं, "उन्हें पाकिस्तानी सामान पसंद नहीं था."
अपनी महिलाओं के लिए उन्हें जो इत्र पसंद थे उनमें सीक्रेट लव, रसासी का ब्ल्यू लेडी शामिल थे.
वो हैड एंड शोल्डर्स, क्लियर शैंपू और डव साबुन मांगते थे. अगर अंडरवियर की बात होती, तो उन्हें सफ़ेद जांघिए और वाई फ्रंट्स पसंद आते थे.
जब बमबारी शुरू हुई तो क़रीब 20 वर्षीय रशीद ने मीरानशाह छोड़ दिया. उत्तरी वज़ीरिस्तान से बन्नू में विस्थापित बाक़ी आठ लाख लोगों की तरह उन्होंने एक परिवार की मेज़बानी क़ुबूली न कि सरकारी कैंप की.
वह क़स्बे के बाहर मटमैले उजाड़ मैदान के किनारे एक निर्माण स्थल पर मज़दूरी कर ज़िंदगी बसर कर रहे हैं.
‘सबसे अच्छे खरीदार’
मीरानशाह के दूसरे दुकानदार एक दर्ज़ी सोहेल मसीह ने रशीद की बातों की तसदीक की.
सोहेल के मुताबिक़ तालिबान लड़ाके एक बार में दो-तीन हज़ार रुपए ख़र्च कर देते थे, जो बहुतों का दो हफ़्ते का वेतन होता है.
उन्होंने कहा, "वो मेरी दुकान पर काले शीशों वाली बड़ी सफ़ेद गाड़ियों में आया करते थे और उन्हें ढेर सारा पैसा ख़र्च करने में ज़रा भी उज्र नहीं होता था."
वो बताते हैं, "जैसा सामान वो ख़रीदते थे, मुझ जैसे तो उसे ख़रीदने की सोच भी नहीं सकते."
मुझे बताया गया कि सैन्य ऑपरेशन शुरू होने से पहले तालिबान को इसका पता चल गया था. उन्होंने अपना इलेक्ट्रॉनिक सामान बेहद कम क़ीमतों पर बेचना शुरू कर दिया था.
लगता है कि उनके महंगे शौक़ ने उनके आसपास के लोगों पर भी असर डाला.
रशीद रहमान ने मुझ पर नज़र डालते हुए मेरे सोनी कैमरे की तरफ़ इशारा किया. फिर बोले, "मेरे पास दुकान पर इससे बेहतर कैमरे थे."
(अतिरिक्त इनपुट – अंबर शम्सी)
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