मशहूर कवि केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 का ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाएगा. ज्ञानपीठ पुरस्कार किसी व्यक्ति को दिया जाने वाला भारत का सर्वोच्च साहित्य सम्मान है.
कवि केदारनाथ सिंह के ‘जमीन पक रही है’, ‘यहां से देखो’, ‘बाघ’, ‘अकाल में सारस’ आदि कई कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं.
ज्ञानपीठ पुरस्कार का फैसला भारतीय ज्ञानपीठ न्यास लेता है. केदारनाथ सिंह ये सम्मान पाने वाले हिंदी के 10वें लेखक हैं.
इस पुरस्कार के लिए भारत का नागरिक होना और संविधान की आठवीं अनुसूची में बताई गई 22 भाषाओं में से किसी भाषा में लिखने की योग्यता होना अनिवार्य है.
पुरस्कार के रूप में केदारनाथ सिंह को 11 लाख रुपये, प्रशस्ति पत्र और सरस्वती प्रतिमा प्रदान की जाएगी.
ज्ञानपीठ के अनुसार सीताकांत महापात्रा की अध्यक्षता में शुक्रवार को चयन समिति की बैठक में हिंदी के जाने माने कवि केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 का ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने का निर्णय किया गया.
जीवन और रचनाएं
केदारनाथ सिंह का जन्म 1934 में उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के चकिया गाँव में हुआ था. उऩ्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से 1956 में हिंदी में एमए और 1964 में पीएचडी की उपाधि हासिल की.
गोरखपुर में उन्होंने कुछ दिन हिंदी पढ़ाई और जवाहर लाल विश्वविद्यालय से हिंदी भाषा विभाग के अध्यक्ष पद से रिटायर हुए.
उन्होंने कविता व गद्य की अनेक पुस्तकें रची हैं. इससे पहले उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, कुमार आशान पुरस्कार (केरल) और व्यास पुरस्कार सहित कई प्रतिष्ठित सम्मान मिल चुके हैं.
जटिल विषयों पर बेहद सरल और आम भाषा में लेखन उनकी रचनाओं की विशेषता है. उनकी सबसे प्रमुख लंबी कविता ‘बाघ’ है. इसे मील का पत्थर कहा जाता है.
केदारनाथ सिंह के प्रमुख लेख और कहानियों में ‘मेरे समय के शब्द’, ‘कल्पना और छायावाद’, ‘हिंदी कविता बिंब विधान’ और ‘कब्रिस्तान में पंचायत’ शामिल हैं.
ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन), समकालीन रूसी कविताएँ, कविता दशक, साखी (अनियतकालिक पत्रिका) और शब्द (अनियतकालिक पत्रिका) का उन्होंने संपादन भी किया.
इन दिनों वे दिल्ली के साकेत में रहते हैं.
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