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इराक़ संकटः अमरीका के लिए इधर कुआं, उधर खाई

फ्रैंक गार्डनर बीबीसी रक्षा संवाददाता जैसे-जैसे इराक़ और सीरिया का दोहरा संकट बढ़ रहा है, अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा लिया जाने वाला आसन्न फ़ैसला पश्चिमी देशों के नज़रिए में एक नया मोड़ साबित हो सकता है. अमरीकी नौसैनिक युद्धपोत दर्जनों लड़ाकू विमानों के साथ जैसे-जैसे उत्तर में खाड़ी की ओर बढ़ रहा है, राष्ट्रपति […]

जैसे-जैसे इराक़ और सीरिया का दोहरा संकट बढ़ रहा है, अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा लिया जाने वाला आसन्न फ़ैसला पश्चिमी देशों के नज़रिए में एक नया मोड़ साबित हो सकता है.

अमरीकी नौसैनिक युद्धपोत दर्जनों लड़ाकू विमानों के साथ जैसे-जैसे उत्तर में खाड़ी की ओर बढ़ रहा है, राष्ट्रपति ओबामा अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद द्वारा सामने रखे गए विकल्पों पर विचार कर रहे हैं. अमरीका के सामने एक बड़ी दुविधा है और उसका फ़ैसला पश्चिमी देशों को बहुत ज़्यादा प्रभावित कर सकता है.

अगर अमरीका आईएसआईएस (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लैवेंट) की बढ़त रोकने के लिए इराक़ी सरकार के समर्थन में सैन्य हस्तक्षेप नहीं करता है तो उस पर ‘आतंकवाद का मुकाबला करने में कमज़ोर पड़ने’, ‘मध्य पूर्व में उम्मीद छोड़ने’ और एक ऐसे सहयोगी को छोड़ देने का आरोप लगेगा, जिसकी मदद के लिए वह करदाताओं के ख़रबों डॉलर लगा चुका है और जहां 4,000 से ज़्यादा महिला और पुरुषों ने अपनी जान गंवाई है.

आख़िर कितनी मज़बूत है इराक़ी सेना?

अगर अमरीका सैन्य हस्तक्षेप करने का फ़ैसला करता है, जो बहुत संभव है कि स्पष्ट रूप से चिह्नित आईएसआईएस ठिकानों पर हवाई हमलों या मिसाइल हमलों के रूप में होगा तो वह मध्य पूर्व के संघर्ष की पूरी तस्वीर को ही बदल देगा.

मोटे तौर पर अमरीका अपनी उपस्थिति दो तरह से दर्ज करवा सकता है:-

अतंरराष्ट्रीय चरमपंथ

अगर अमरीका के हवाई या मिसाइल हमलों में सीधे आईएसआईएस के लड़ाके मारे जाते हैं तो अनिवार्य रूप से अमरीका और ब्रिटेन समेत उसके सहयोगियों के ख़िलाफ़ बदला लेने का आह्वान किया जाएगा.

अभी तक ब्रितानी जेहादियों के आईएसआईएस के साथ इराक़ में लड़ने की कोई पुष्ट सूचना नहीं है.

लेकिन सीरिया में लड़ने के लिए गए क़रीब 400-500 ब्रितानी जिहादियों में से ज़्यादातर आईएसआईएस के साथ हैं, जिसकी ताक़त सीरिया-इराक़ सीमा के दोनों ओर फैली हुई है.

यह सिर्फ वक़्त की बात रह गई है कि सीरिया और इराक़ के बीच लगातार धुंधली होती जा रही सीमा में ये चरमपंथी आर-पार हो जाएं.

शिया लड़ाकों ने भी उठाए हथियार

यदि आईएसआईएस के लड़ाके अमरीकी हवाई हमलों में ‘शहीद’ हो जाते हैं तो एक झटके में अमरीका इस वृहद संघर्ष में शामिल हो जाएगा और आईएसआईएस का दुश्मन बन जाएगा.

यह कल्पना करना मुश्किल नहीं है कि इससे मध्यपूर्व से लौट रहे जिहादियों के द्वारा पश्चिम में और ज़्यादा चरमपंथी हमले बढ़ जाएंगे.

सांप्रदायिक तनाव

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि ह्वाइट हाउस द्वारा इस तरह कितना सैन्य हस्तक्षेप किया जाता है.

मध्यपूर्व में अधिकांशतः इसे इस तरह नहीं लिया जाएगा कि अमरीका एक हिंसक विद्रोह के ख़िलाफ़ एक वैध सरकार को समर्थन कर रहा है बल्कि वे यही मानेंगे कि अमरीका सुन्नी ताक़तों पर हमला करने के लिए बग़दाद की शिया प्रभाव वाली सरकार का साथ दे रहा है, जो ईरान की सहयोगी भी है.

बहरीन से लेबनान तक, मध्यपूर्व में शिया और सुन्नियों के बीच भारी सांप्रदायिक तनाव के चलते अमरीकी पक्षपात, चाहे इसका कोई आधार हो या न हो, बहुत संवेदनशील और ख़तरनाक हो सकता है.

अमरीकी जहाजी बेड़े की तैनाती

पिछले हफ़्ते, जब आईएसआईएस लड़ाकों ने दक्षिण में बग़दाद की ओर कूच किया तो अमरीकी हस्तक्षेप क़रीब-क़रीब अनिवार्य सा हो गया.

इस हफ़्ते, आईएसआईएस के शिया-प्रभाव वाले शहरों की ओर बढ़ने के बजाय अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में पकड़ मजबूत करने के संकेतों के चलते अमरीका पर तत्काल कार्रवाई करने का दबाव कुछ कम हो सकता है.

लेकिन पिछले हफ़्ते जिस रफ़्तार से यह संकट खड़ा हुआ, उसे ध्यान में रखते हुए इराक़ के समर्थन में हवाई या मिसाइल हमले करने या न करने का फ़ैसला अमरीका अनंतकाल तक नहीं टाल सकता.

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