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सरकार के बयान से भारतीयों की सुरक्षा को ख़तरा?

इराक़ में सुन्नी चरमपंथियों के संगठन आईएसआईएस के कई शहरों पर क़ब्ज़ा करने से 46 भारतीय नर्सें वहां फंस गई हैं. इसके अलावा कई अन्य भारतीय मज़दूर और कर्मचारी भी इन इराक़ी शहरों में फंसे हुए हैं. वहीं भारत ने कहा है कि वो वह इराक़ और वहाँ की जनता के साथ है. भारत सरकार […]

इराक़ में सुन्नी चरमपंथियों के संगठन आईएसआईएस के कई शहरों पर क़ब्ज़ा करने से 46 भारतीय नर्सें वहां फंस गई हैं. इसके अलावा कई अन्य भारतीय मज़दूर और कर्मचारी भी इन इराक़ी शहरों में फंसे हुए हैं.

वहीं भारत ने कहा है कि वो वह इराक़ और वहाँ की जनता के साथ है. भारत सरकार ने आईएसआईएस के लड़ाकों के क़ब्ज़े को इराक़ की सुरक्षा और अखंडता पर ख़तरा बताया है.

इराक़ में फंसी भारतीय नर्सों की मुश्किलें

इन्हीं मुद्दों पर, नब्बे के दशक में इराक़ में भारत के राजदूत रह चुके रंजीत सिंह काल्हा से बात की बीबीसी संवाददाता इक़बाल अहमद ने.

इराक़ में फंसे हुए भारतीयों को निकालना कितना मुश्किल है?

आईएसआईएस के साथ हमारे कोई संबंध नहीं है. इसलिए वहां फंसे भारतीयों को निकालने में काफ़ी मुश्किल होगी. यह क्षेत्र फ़िलहाल इराक़ी सरकार के नियंत्रण से बाहर हो गया है.

ऐसे में सरकार को चाहिए कि वो सऊदी अरब, कुवैत या जॉर्डन इत्यादि देशों से बात करके उनसे मदद करने के लिए कहा जाए. अगर इन देशों का आईएसआईएस से कोई संपर्क हो तो संभव है कि वो लोग भारतीयों को रिहा कर दें.

भारत सरकार ने इराक़ी सरकार के समर्थन की बात कही है. इन हालात में ऐसे बयान से क्या वहाँ मौजूद भारतीयों के लिए कोई ख़तरा पैदा हो सकता है?

हाँ, ऐसे बयान से भारतीयों के लिए ख़तरा पैदा हो सकता है. हो सकता है वो कहें कि अगर आप इराक़ सरकार के साथ हैं तो हम इन भारतीयों को नहीं छोड़ेंगे, इन्हें बंधक बनाकर रखेंगे. इससे भारत के लिए मुश्किल बढ़ सकती है. इसलिए ऐसे हालात में भारत को ऐसे सख्त बयान देने की कोई ज़रूरत नहीं थी.

फंसी भारतीय नर्सों को केवल आश्वासन

भारत इराक़ से बड़ी मात्रा में तेल का आयात करता है तो इस संकट से क्या तेल की क़ीमतें भी बढ़ सकती हैं.

तेल के उत्पादन के मुख्य इलाक़े इराक़ के दक्षिण में है और वहाँ अभी भी इराक़ सरकार का क़ब्ज़ा है. इसलिए तेल का उत्पादन होता रहेगा. उत्तर में जो तेल उत्पादन होता है उस पर थोड़ा असर पड़ेगा फिर भी मेरे लिहाज से ज़्यादा असर नहीं पड़ेगा.

इराक़ में सुन्नी चरमपंथ के उभार के क्या मायने हैं?

चिंता का विषय तो ज़रूर है लेकिन यह भी याद रखना चाहिए कि शिया संगठनों ने काफ़ी सख्ती दिखाई थी. अभी आईएसआईए ने जिस इलाक़े पर क़ब्ज़ा किया है वो पहले शिया प्रभाव वाली सरकार के नियंत्रण में था. वहां के नागिरक उस समय भी काफ़ी परेशान थे क्योंकि वहाँ सुन्नी ज़्यादा हैं. ऐसे में यही कहा जा सकता है कि ये दो संप्रदायों के बीच का संघर्ष है. ऐसे में इसका क्या अंतिम फ़ैसला होगा, यह कहना मुशक्लि है.

इन हालात में भारत के लिए कूटनीतिक रूप से सर्वश्रेष्ठ नीति क्या होनी चाहिए?

सरकार को चाहिए कि वो ज़्यादा बयानबाज़ी न करें. वहाँ होने वाली गतिविधियों पर नज़र रखें और हालात के अनुसार अपनी नीति तय करें.

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