इस मौसम में खास कर संक्रामक रोग हावी रहते हैं. ऐसा ही एक संक्रामक रोग है जापानी इनसेफेलाइटिस, जिसे ‘दिमागी बुखार’ भी कहते हैं. इसका वायरस ब्रेन टिश्यू पर हमला कर उसमें सूजन पैदा करता है, जो जानलेवा हो सकता है. हर साल 50 फीसदी मरीज उचित इलाज के अभाव में दम तोड़ देते हैं, तो कई लकवा के शिकार होते हैं. इससे बचाव व उपचार के बारे में बता रहे हैं प्रमुख अस्पतालों के डॉक्टर.
इनसेफेलाइटिस को ‘दिमागी बुखार’ के नाम से भी जाना जाता है. इसका सबसे ज्यादा असर ग्रामीण इलाकों में दिखता है. चूंकि इसकी जांच अत्याधुनिक लैब में ही संभव है और ग्रामीण इलाकों में इसकी सुविधा नहीं होने से इस बीमारी का समुचित इलाज नहीं हो पाता है और यह तेजी से फैलता है. इसका संक्रमण रोगी के लिए जानलेवा भी हो सकता है.
क्या है इनसेफेलाइटिस
मस्तिष्क में सूजन होने पर इसे इनसेफेलाइटिस कहते हैं. यह वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण के कारण होता है. इस संक्रमण में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली बिगड़ जाती है और ब्रेन टिश्यू पर हमला होता है. संक्रमण अचानक होता है और तीव्रता के साथ बढ़ता है. बरसात के मौसम में इसका संक्रमण सबसे ज्यादा हावी होता है. इस संक्रमण में दो बीमारियां प्रमुख रूप से सामने आती हैं- जापानी बी (जेइ) और एक्यूट इनसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एइएस). इनकी चपेट में सबसे ज्यादा 15 साल तक की उम्र के बच्चे आते हैं. यह संक्रमण जुलाई से दिसंबर के बीच फैलता है.
हो जाता है फोटोफोबिया
इनसेफेलाइटिस से ग्रस्त मरीजों को फोटोफोबिया हो जाता है. उन्हें तेज रोशनी से परेशानी होती है. तेज रोशनी के कारण मरीज को सिर में दर्द होना, आंखों में पानी आना आदि लक्षण नजर आते हैं. इसके लक्षण हर मरीज में अलग-अलग हो सकते हैं. वैसे, तेज बुखार, झटके आना, बेहोशी आ जाना, और कोमा जैसी स्थिति बीमारी के प्रारंभिक लक्षण हैं. यह रोग तेजी से पीड़ित के शरीर को अपनी गिरफ्त में लेता है. इसलिए इसका इलाज भी तेजी से होना चाहिए अन्यथा परिणाम घातक हो सकते हैं.
मार सकता है लकवा
बैक्टीरियल संक्रमण और कुछ वायरस जनित इनसेफेलाइटिस के उपचार में कुछ हद तक सफलता मिलती है. लेकिन एक दो वायरस (सिंपलैक्स वायरस) को छोड़ कर किसी के लिए भी एंटीवायरस उपलब्ध नहीं हैं. विभिन्न टेस्टों से इस रोग का पता लगाया जा सकता है. यदि इस रोग की पुष्टि हो जाये तो, तुरंत रोगी को हॉस्पिटल में भरती कराना चाहिए. वायरोलॉजी लैब में इस संक्रमण का जांच होता है. इस रोग में 50 प्रतिशत मरीजों का इलाज के अभाव में या इलाज में देरी से मौत हो जाती है. इसमें मरीज को बचाने के लिए काफी सावधानी बरतनी पड़ती है. शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर चिकित्सक संक्रमण को शरीर में अधिक पनपने नहीं देते हैं और संक्रमित हिस्से का इलाज करते हैं. देर से इलाज शुरू होने पर मरीज को लकवा भी मार सकता है.
शाम के समय मच्छरों से जरूर करें बचाव
इनसेफेलाइटिस से बचने के लिए साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें. घर पर कहीं भी मच्छरों को पनपने न दें. बाहर से अंदर मच्छरों के प्रवेश पर रोक लगाने के लिए कीटनाशक का प्रयोग करें. रात में सोते हुए मच्छरदानी लगाएं. संक्रमण को फैलानेवाले मच्छर शाम के समय काटते हैं, इसलिए शाम के समय पूरे कपड़े पहनें. बच्चों को इनसेफेलाइटिस का टीका जरूर लगवाएं.
डॉ वेदप्रकाश
सीनियर फीजिशियन
सर गंगाराम अस्पताल, दिल्ली