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ग्रेट निकोबार दुनिया का नया बायोस्फेयर रिजर्व

भारत के ग्रेट निकोबार द्वीप समूह को यूनेस्को ने वैश्विक बायोस्फेयर रिजर्व के तौर पर नामांकित किया है. पारिस्थितिकी के हिसाब से काफी संवेदनशील माना जानेवाला यह निकोबार द्वीपसमूह तकरीबन 1800 प्रजातियों के प्राणियों और कुछ विलुप्तप्राय आदिवासी समूहों का भी निवास स्थल है. निकोबार के इस नेटवर्क में शामिल होने की खबर ने खतरे […]

भारत के ग्रेट निकोबार द्वीप समूह को यूनेस्को ने वैश्विक बायोस्फेयर रिजर्व के तौर पर नामांकित किया है. पारिस्थितिकी के हिसाब से काफी संवेदनशील माना जानेवाला यह निकोबार द्वीपसमूह तकरीबन 1800 प्रजातियों के प्राणियों और कुछ विलुप्तप्राय आदिवासी समूहों का भी निवास स्थल है.

निकोबार के इस नेटवर्क में शामिल होने की खबर ने खतरे में पड़े पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण की जरूरत की ओर ध्यान खींचा है. क्या होता है बायोस्फेयर रिजर्व और क्या है

– व्यालोक –
भा रत के अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह में से ग्रेट निकोबार द्वीपसमूह को यूनेस्को ने वैश्विक बायोस्फेयर रिजर्व के तौर पर नामांकित कर दिया है. पारिस्थितिकी के हिसाब से काफी संवेदनशील माना जानेवाला निकोबार द्वीपसमूह तकरीबन 1800 प्रजातियों के प्राणी और कुछ विलुप्तप्राय आदिवासी समूहों का भी निवास स्थल है. निकोबार में शोंपेन आदिवासी भी निवास करते हैं.

अर्ध-बंजारा किस्म के शिकार के सहारे अपना जीवन गुजर करनेवाले मूल निवासी और निकोबारी आदिवासी भी रहते हैं, जो मछली और बागबानी पर निर्भर हैं. यूनेस्को की इस घोषणा के बाद से ‘बायोस्फेयर रिजर्व’ एक बार फिर से चर्चा में है.

यूनेस्को के ‘मैब’(मैन एंड द बायोस्फेयर) कार्यक्रम की अंतरराष्ट्रीय समन्वय परिषद-आइसीसी ने निकोबार के साथ ही दुनिया के 12 और इलाकों को बायोस्फेयर रिजर्व के वैश्विक नेटवर्क में शामिल किया है. जिन देशों के स्थलों को इस बार इस सूची में शामिल किया गया है, उनमें पाकिस्तान, चीन, कजाखस्तान, इक्वेडोर और फ्रांस भी शामिल हैं.

भारत के लिए हालांकि निकोबार के इस नेटवर्क में शामिल होने के विशेष मायने हैं, क्योंकि इससे पारिस्थितिकी के तौर पर अति संवेदनशील इस द्वीपसमूह के संरक्षण के लिए अधिक संसाधन, ज्ञान और साझा अनुभव मिल जायेंगे.

क्या होता है बायोस्फेयर रिजर्व

दरअसल, बायोस्फेयर रिजर्व ऐसे इलाके होते हैं, जहां पार्थिव (टेरेस्ट्रियल), सामुद्रिक, तटवर्ती और ताजा पानी के संसाधनों के प्रबंधन को लेकर विविध दृष्टिकोणों को मिलाया और व्यवहार में लाया जाता है.

ये साइट स्थायी विकास के लिए प्रयोगशालाओं के तौर पर भी काम करते हैं, जिन्हें अंग्रेजी में ‘इन सितु लैब’ भी कहते हैं. इसमें प्रकृति के साथ किसी किस्म की छेड़खानी नहीं की जाती और कुछ भी अपनी तरफ से आरोपित नहीं किया जाता. इन क्षेत्रों का स्थानीय समुदाय पूरे समन्वय के साथ प्रकृति को रखता भी है और उसमें रहता भी है.

क्यों चुना गया निकोबार को!

निकोबार को रिजर्व के तौर पर चुनने के पीछे यूनेस्कों के अपने तर्क हैं. उसके मुताबिक 103,870 हेक्टेयर के इस इलाके की विशेषता उष्णकटिबंधीय सदाबहार जंगल हैं. इनमें तटवर्ती इलाके के मीयोफाउना (समुद्री और ताजे पानी में पायी जानेवाली अकशेरुकी प्रजाति) की 200 प्रजातियां रहती हैं. यूनेस्को यहां रहनेवाले लगभग 6500 लोगों को भी साङोदार के तौर पर देख रहा है, जो अपने पर्यावरण से कई तरह के जैविक संसाधन लेते हैं. इनमें औषधीय पौधों से लेकर दूसरे उत्पाद भी शामिल हैं.

क्या है चयन की प्रक्रिया!

बायोस्फेयर रिजर्व के वैश्विक नेटवर्क के वैधानिक प्रारूप का अनुच्छेद पांच बायोस्फेयर रिजर्व के मनोनयन की प्रक्रिया के बारे में हमें बताता है. इसके मुताबिक आइसीसी (अंतरराष्ट्रीय समन्वय परिषद/इंटरनेशनल कॉर्डिनेशन काउंसिल) ही बायोस्फेयर रिजर्व का चयन करती है.

इसके लिए, विविध देशों की राष्ट्रीय ‘मैब’ समितियां जरूरी कागजात के साथ नामांकन को सचिवालय में भेजती हैं. इसके पहले प्रस्तावित जगहों की समीक्षा जरूरी है, जिसमें अनुच्छेद चार में बतायी गयी कसौटी के आधार पर इलाके की जांच की जाती है.

सचिवालय इनकी जांच करता है. अधूरे नामांकन के मामले में सचिवालय संबंधित देश से बाकी जानकारी देने को कहता है. आइसीसी की सिफारिश के लिए बायोस्फेर रिजर्व की सलाहकार समिति इन प्रस्तावों पर विचार करती है. इसके बाद आइसीसी एक निर्णय पर पहुंचती है. आखिरकार, यूनेस्को के महानिदेशक आइसीसी के फैसले से संबंधित देश को अवगत कराते हैं.

बायोस्फेयर रिजर्व की शुरुआत

यूनेस्को ने 1971 में मैब (मैन एंड द बायोस्फेयर, यानी मनुष्य व जीवमंडल) कार्यक्रम की शुरूआत की. इसका मकसद पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण के अध्ययन, शोध और प्रबंधन में आपसी आवाजाही को बढ़ावा देना था. साथ ही, प्राकृतिक संसाधनों के स्थायी और गैर-नुकसानदेह इस्तेमाल को बढ़ावा देना भी इसके लक्ष्य में शामिल था.

‘मैब’ कार्यक्रम की सबसे बड़ी उपलब्धि 1977 में बायोस्फेयर रिजर्व (जीवमंडल अभयारण्य) का वैश्विक नेटवर्क तैयार करना था. इसे केवल एक सूची के तौर पर न देख कर राष्ट्रों और महाद्वीपों की सीमाओं के परे ज्ञान और अनुभव को बांटने के तौर पर देखना ही बेहतर होगा.

आखिर, पूरी दुनिया में 100 से भी अधिक देशों में ऐसे रिजर्व हैं, जहां ये देश टिकाऊ विकास के मानकों पर एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं. ऐसे इलाकों में नवोन्मेषी (इनोवेटिव) प्रक्रियाओं का विकास कर उनका परीक्षण किया जाता है, उसके परिणामों को साझा किया जाता है, ताकि स्थायी विकास की ओर सारे देश एक साथ कदम बढ़ा सकें.
मनुष्य और प्रकृति के बीच समन्वय

प्रकृति पर इनसानी बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है. बढ़ती आबादी और संसाधनों की बांट ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि प्रकृति और मानव के बीच के रिश्तों पर गंभीरता से सोचा जाये. नीति और प्रबंधन के विभिन्न दृष्टिकोणों को मिला कर एक ऐसे रुख का विकास जरूरी है, जिससे प्रकृति और मनुष्य के बीच संतुलन पैदा किया जा सके. बायोस्फेयर रिजर्व एक ऐसी ही अवधारणा है.

इसके वैश्विक नेटवर्क में शामिल होने के लिए हालांकि, कुछ जरूरी शर्ते भी हैं. जमीनी स्तर पर काम होने के अलावा इलाके के बारे में पर्याप्त जानकारी इकट्ठा की जाती है और साथ ही स्थानीय जन-समुदाय की रजामंदी भी इसके लिए जरूरी होती है. नामांकन की प्रक्रिया इसके बाद शुरू होती है. राष्ट्रीय सरकारें यूनेस्को को नामांकन पत्र तैयार कर भेजती हैं.

इस नेटवर्क का हिस्सा बनने के बाद देशों को कई तरह के लाभ मिलते हैं. पारिस्थितिक-तंत्र को स्थायी तौर पर बनाये रखने के लिए वैज्ञानिक शोधों, विकास और संरक्षण का तमाम ज्ञान और प्रयास सदस्य देश एक-दूसरे से साझा करते हैं. इस तरह, सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि सदस्यों के पास काफी अधिक जानकारी और नयी तकनीक व शोध पहुंच जाते हैं.

मानवता के साथ प्रकृति के रिश्तों को सुलझाने और सुधारने पर जोर देने की वजह से ही ‘मैब’ कार्यक्रम धीरे-धीरे न केवल यूनेस्को का, बल्कि संयुक्त राष्ट्र का भी ‘फ्लैगशिप’ कार्यक्रम बन गया है. इसे कई महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं की प्रतिक्रिया के तौर पर भी देखा जाता है. 1990 के दशक के बाद से ही ‘मैब’ के तहत लगभग 14 बड़ी शोध-परियोजनाएं चल रही हैं, जिनमें पारिस्थितिक-तंत्रों, जैसे पहाड़ या रेगिस्तान इत्यादि, के प्रबंधन पर काम होता है.

दृष्टिकोण में बदलाव

शुरुआती वर्षों में बायोस्फेयर रिजर्व का मतलब शोध और पर्यावरण संरक्षण के सवालों पर केंद्रित होना होता था, लेकिन 90 के दशक से यह दृष्टिकोण बदलने लगा. अब जोर स्थायी विकास के संदर्भ में मनुष्य और प्रकृति के आंतरिक संबंध को बढ़ाने पर दिया जाने लगा. मनुष्य और प्रकृति को अलग न मान कर अब एक इकाई मानने पर जोर दिया जाने लगा.

अब प्रकृति को मनुष्य से अलग नहीं किया गया, बल्कि आय बढ़ाने, गरीबी घटाने और विकास करने में दोनों को दो ध्रुवों के बजाय दो पहियों की तरह देखा जाने लगा. अब प्रकृति का इस्तेमाल कर उसके संरक्षण पर जोर दिया जाने लगा.

बायोस्फेयर रिजर्व की विशेषता
1. यह संरक्षण, विकास और संसाधनगत समर्थन के तीन आपस में जुड़े कामों को बढ़ावा देता है.
2. पारंपरिक तौर पर परिभाषित अभयारण्य के क्षेत्रों को उचित योजना द्वारा जोन्स में बांटना. मुख्य (कोर) जोन को ऐसे इलाकों से जोड़ना, जहां स्थानीय लोग और उद्यम कल्पनाशील तरीकों से विकास को गति दे सकें.
3. कई साझीदारों वाली प्रक्रिया अपनाना, और प्रबंधन में खास जोर स्थानीय समुदाय की सहभागिता पर देना.
4. प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल को लेकर विवाद की दशा में वार्ता पर जोर देना.
5. सांस्कृतिक और जैव-विविधता में घनिष्ठ संबंध स्थापित करना और उसे बनाये रखना. खास तौर पर, पारिस्थितिक-तंत्र के प्रबंधन में पारंपरिक ज्ञान पर जोर देना.
6. शोध और निरीक्षण पर आधारित स्थायी विकास की नीतियों और व्यावहारिक प्रक्रिया को अमल में लाना.
7. शिक्षा और प्रशिक्षण के उत्कृष्ट केंद्रों के तौर पर काम करना।
8. वैश्विक नेटवर्क में काम करना और योगदान देना.

बायोस्फेयर रिजर्व की संरचना

1995 में बायोस्फेयर रिजर्व की दूसरी वैश्विक कांफ्रेंस हुई. इसमे संभावित बायोस्फेयर रिजर्व की पहचान के लिए उद्देश्यों और प्रक्रियाओं को चिह्न्ति किया गया. इस कांफ्रेंस में इनकी पहचान के लिए मानकों को भी गढ़ा गया. इसी वजह से 70 और 80 के दशक में शामिल किये गये कई रिजर्व को या तो वापस ले लिया गया, या फिर उन्हें नयी तरह से परिभाषित किया गया, ताकि वे नयी सदी में भी प्रासंगिक बने रहें.

मैब के कार्यक्रमों के सारे निर्णय अंतर-सरकारी समिति के सदस्य लेते हैं. इसका नाम अंतरराष्ट्रीय समन्वय परिषद (आइसीसी) है, जिसके 38 सदस्य हैं और जिनका चुनाव चार वर्षों के कार्यकाल के लिए होता है. फिलहाल, बायोस्फेयर रिजर्व का वैश्विक नेटवर्क 117 देशों में है, जिनमें कुल 621 बायोस्फेयर रिजर्व हैं. इनमें 12 अंतर-सीमाई (ट्रांस-बाउंडरी) जगहें भी हैं.

भारत के बायोस्फेयर रिजर्व

भारत में कुल 18 जीव मंडल यानी बायोस्फेयर रिजर्व अधिसूचित किये गये हैं. ग्रेट निकोबार द्वीप समूह को यूनेस्को द्वारा बायोस्फेयर के वैश्विक नेटवर्क में शामिल करने के बाद भारत के वैश्विक बायोस्फेयरों की संख्या बढ़ कर नौ हो गयी है.

ये बायोस्फेयर रिजर्व हैं-तमिलनाडु का नीलगिरि और मन्नार की खाड़ी, पश्चिम बंगाल का सुंदरबन, उत्तराखंड का नंदादेवी, मेघालय का नॉरकेक, मध्य प्रदेश का पचमढ़ी, ओड़िशा का सिमलीपाल, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश का अचानकमार-अमरकंटक और अब अंडमान निकोबार द्वीप समूह के भीतर ग्रेट निकोबार द्वीप समूह.

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