।। दक्षा वैदकर।।
एक लड़की कार चला रही थी. पास में उसके पिताजी बैठे थे. राह में एक भयंकर तूफान आया. लड़की ने पिता से पूछा, ‘अब हम क्या करें?’ पिता ने जवाब दिया, ‘कार चलाते रहो’. लड़की के लिए तूफान में कार चलाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था. तूफान और भयंकर होता जा रहा था. लड़की घबरा गयी. उसने पिताजी से दोबारा पूछा, ‘अब मैं क्या करूं?’ ‘कार चलाते रहो’, पिता ने शांत भाव से पुन: कहा.
थोड़ा आगे जाने पर लड़की ने देखा की राह में कई वाहन तूफान की वजह से रुके हुए थे. उसने फिर अपने पिता से कहा, ‘मुङो कार रोक देनी चाहिए. मैं मुश्किल से देख पा रही हूं. यह भयंकर है और सभी ने अपना वाहन रोक दिया है’. उसके पिता ने फिर निर्देशित किया,‘ कार रोकना नहीं. बस चलाते रहो’. अब तूफान ने बहुत ही भयंकर रूप धारण कर लिया था, किन्तु लड़की ने कार चलाना नहीं रोका और अचानक ही उसने देखा कि सब कुछ साफदिखने लगा है. कुछ किलोमीटर आगे जाने के पश्चात लड़की ने देखा कि तूफान थम गया और सूर्य निकल आया है. अब उसके पिता ने कहा, ‘अब तुम कार रोक सकती हो और बाहर आ सकती हो. लड़की ने पूछा, ‘पर अब क्यों?’ पिता ने कहा, ‘जब तुम बाहर आओगी तो देखोगी कि जो राह में रु क गये थे, वे अभी भी तूफान में फंसे हुए हैं. चूंकि तुमने कार चलाने का प्रयत्न नहीं छोड़ा, तुम तूफान से बाहर आ गये हो.’
दोस्तों हम सभी के साथ कभी न कभी इस तरह की परिस्थितियां आती हैं, जब हम किसी बड़ी मुसीबत में फंस जाते हैं और उससे लड़ने के बजाय हार मान लेते हैं. हम यकीन कर लेते हैं कि इस मुसीबत से निकलने का कोई रास्ता नहीं है, इसलिए प्रयास करना बेकार है. जबकि सच तो यह है कि मुसीबत के वक्त हमें बिल्कुल भी रुकना नहीं चाहिए. गति भले ही धीमी हो, लेकिन आगे बढ़ने का प्रयास करना जारी रखना चाहिए. यह कहानी बताती है कि प्रयास जारी रखो, निश्चित ही जिंदगी का कठिन समय गुजर जायेगा और सुबह के सूर्य की भांति चमक आपके जीवन में पुन: आयेगी.
बात पते की..
यह किस्सा उन लोगों के लिए एक प्रमाण है, जो कठिन समय से गुजर रहे हैं. ऐसी स्थिति में गलती से भी प्रयास न छोड़े, वरना आप फंस जायेंगे.
जब आप मजबूती से अपने विचारों पर अड़े रहते हैं और लड़ते हैं, तो बड़े-से-बड़ा तूफान भी आपके सामने घुटने टेक देता है.