"जब तक मनु भाकर 18 साल की होगी, तब तक तो मेरी नौकरी बस छूटी ही समझो…"
मेक्सिको में चल रहे इंटरनेशनल शूटिंग स्पोर्ट्स फेडरेशन (ISSF) में भारत के लिए दो गोल्ड जीतने वालीं मनु भाकर के पिता राम किशन भाकर इतना कहते ही जोर से हंस देते है.
वे कहते हैं, "मैं पेशे से मरीन इंजीनियर हूं. लेकिन पिछले दो साल में बस तीन महीने के लिए ही शिप पर गया हूं."
उनकी हंसी में एक गर्व का अहसास तो था, लेकिन नौकरी छूटने का ज़रा भी मलाल नहीं था.
सबसे कम उम्र की महिला खिलाड़ी
पहला गोल्ड मनु ने 10 मीटर एयर पिस्टल (महिला) कैटेगरी में जीता है और दूसरा गोल्ड 10 मीटर एयर पिस्टल (मिक्स इवेंट) में हासिल किया है.
एक दिन में शूटिंग में दो गोल्ड जीत कर 16 साल की मनु ने नया रिकॉर्ड बनाया है. ऐसा करने वाली वो सबसे कम उम्र की महिला खिलाड़ी हैं.
बीबीसी से बातचीत में राम किशन भाकर अपनी नौकरी छूटने की वजह भी बताते हैं.
उनके मुताबिक, मुन ने कई खेलों पर हाथ आज़माने के बाद 2016 में शूटिंग यानी निशानेबाज़ी करने का फ़ैसला किया.
लाइसेंसी पिस्टल के साथ
पहली बार में ही स्कूल में जब उसने एक इवेंट में उसने हिस्सा लिया तो निशाना इतना सटीक लगाया कि स्कूल के टीचर दंग रह गए.
फिर थोड़ी प्रैक्टिस और ट्रेनिंग के बाद जगह जगह आयोजित प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने का सिलसिला शुरू हुआ.
लेकिन समस्या ये थी कि मनु लाइसेंसी पिस्टल के साथ सार्वजनिक यातायात के वाहन में सफर कर नहीं सकती थी.
और बालिग नहीं होने की वजह से वो खुद भी गाड़ी चला कर शूटिंग इवेंट में हिस्सा लेने नहीं जा सकती थी. इस समस्या का तोड़ राम किशन भाकर ने कुछ ऐसे निकाला.
बेटी के लिए नौकरी छोड़ दी…
बेटी के सपनों को साकार करने के लिए उन्होंने अपना सपना छोड़ दिया. पिछले डेढ़ साल से राम किशन भाकर नौकरी छोड़ बेटी के साथ-साथ हर शूटिंग इवेंट में घूम रहे हैं.
राम किशन भाकर कहते हैं, "शूटिंग बहुत मंहगा इवेंट है. एक एक पिस्टल दो-दो लाख की आती है. अब तक मनु के लिए तीन पिस्टल हम खरीद चुके हैं. साल में तकरीबन 10 लाख रुपए हम केवल मुन के गेम पर खर्च करते हैं."
नौकरी नहीं है फिर भी पैसों का इंतजाम कैसे हो जाता है? इस पर वो कहते हैं, "कभी दोस्तों से कभी रिश्तेदारों से मदद मिल जाती है."
मनु का परिवार
मनु की मां स्कूल में पढ़ाती हैं. परिवार चलाने में उनका थोड़ा साथ मिल जाता है. मुन का एक बड़ा भाई है, फिलहाल वो आईआईटी की तैयारी कर रहा है.
मनु हरियाणा के झज्जर ज़िले के गोरिया गांव की रहने वाली है.
बहुत कम लोग जानते हैं कि जिस पिस्टल से निशाना साधकर मनु ने भारत को दो गोल्ड मेडल जिताये हैं, उस पिस्टल के लिए लाइसेंस लेने के लिए उसे ढाई महीने लंबा इंतंज़ार करना पड़ा था.
विदेशी पिस्टल
आम तौर पर ये लाइसेंस खिलाड़ियों को एक हफ्ते में मिल जाता है.
उस घटना को याद करने हुए राम किशन भाकर कहते हैं, "साल 2017 में मई के महीने में मैंने विदेश से पिस्टल मंगवाने के लिए अर्जी दी थी. लेकिन झज्जर ज़िला प्रशासन की तरफ से मेरा आवेदन रद्द कर दिया गया था."
फिर मामला मीडिया में आया, और उसके बाद पता चला कि आवेदन करते वक्त लाइसेंस के लिए वजह में ‘सेल्फ डिफेंस’ लिख दिया गया था.
फिर ज़िला प्रशासन की तरफ से मामले में फौरन जांच बिठाई गई और फिर सात दिन के अंदर लाइसेंस जारी कर दिया गया.
डॉक्टर बनने का सपना
खेल-कूद में आगे मनु, पढ़ाई में भी काफी दिलचस्पी रखती हैं. फिलहाल वो झज्जर के यूनिवर्सल स्कूल में ग्यारवीं में साइंस की छात्रा है.
मनु का सपना डॉक्टर बनने का भी रहा है. लेकिन शूंटिग के दो-दो गोल्ड हासिल करने के बाद अब मनु को भी अहसास है कि पढ़ाई और खेल दोनों साथ साथ नहीं चल सकते.
हालांकि मनु की पढ़ाई बीच में ब्रेक न हो, इसके लिए स्कूल से मनु को काफी मदद मिली है.
‘ऑल राउंडर’
मनु को स्कूल में उसके साथी ‘ऑलराउंडर’ कहकर पुकारते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि मनु ने बॉक्सिंग, एथलेटिक्स, स्केटिंग, जूडो कराटे सभी खेलों में हाथ आज़माया है.
इसलिए जब पहली बार पिस्टल खरीदने की ज़िद मनु ने की, तो पिता का सबसे पहला सवाल था – कम से कम दो साल तो ये खेल खेलोगी न?
हालांकि मनु की तरफ से उस वक्त कोई ठोस भरोसा उन्हें नहीं मिला था, लेकिन बावजूद इसके, पिता ने पिस्टल खरीद दी.
उस पल को याद करते हुए राम किशन भाकर भावुक हो कर कहते हैं, "इस साल 24 अप्रैल को मनु को शूटिंग को बतौर खेल प्रैक्टिस करते हुए दो साल होंगे. उससे पहले बेटी ने इतना नाम कर दिया और साथ ही मुझे मेरे सवाल का जवाब भी मिल गया."
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