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घर के बरामदे पर ब्यूटी पॉर्लर खोल हुईं आत्मनिर्भर

घर का बरामदा ऐसी जगह नहीं होती, जिससे पैसा कमाये जा सके. घर में भी उसकी हैसियत हल्की-फुल्की होती है. एक ऐसी जगह जहां किसी को बैठा दो, इंतजार करा लो या कोई भी सामान रख दो. पर, अगर कोई सूझ-बूझ वाला शख्स हो तो उसे भी वह अपनी आय व आत्मनिर्भरता का जरिया बना […]

घर का बरामदा ऐसी जगह नहीं होती, जिससे पैसा कमाये जा सके. घर में भी उसकी हैसियत हल्की-फुल्की होती है. एक ऐसी जगह जहां किसी को बैठा दो, इंतजार करा लो या कोई भी सामान रख दो. पर, अगर कोई सूझ-बूझ वाला शख्स हो तो उसे भी वह अपनी आय व आत्मनिर्भरता का जरिया बना सकता है. ऐसी ही एक उदाहरण हैं रांची के सिल्ली के शिवली इंद्रा का.

वे झारखंड के कस्बों व गांवों में तेजी से आर्थिक स्वावलंबन हासिल कर रही महिलाओं की प्रतिनिधि हैं. शिवली सिल्ली बाजार में फैशन लेडीज ब्यूटी पार्लर एवं लेडीज कॉर्नर का संचालन करती हैं. रूडसेट नामक संस्था से प्रशिक्षण हासिल कर उन्होंने अपने घर के बरामदे को घेर कर उसी में ब्यूटी पॉर्लर का काम शुरू किया और आज उसे अच्छी आय का जरिया बना लिया है. उनकी दुकान पर सिल्ली कस्बे सहित आसपास की ग्रामीण महिलाएं पहुंचती हैं.

शिवली इंद्रा इस सवाल पर की कितनी कमाई हो जाती है, बस मुस्कुराते हुए कहती हैं : अच्छी कमाई हो जाती है. उनकी इच्छा है कि वे अपने काम हो आगे बढ़ायें. इसके लिए उन्हें किसी बैंक से आर्थिक सहायता की जरूरत है. इस संवाददाता से बातचीत के क्रम में वह पूछ बैठती हैं कि बैंक से लोन कैसे मिलेगा. उनका कहना है कि अगर बैंक उन्हें कर्ज दे तो वे अपने ब्यूटी पॉर्लर व अपनी दुकान को बढ़ा सकती हैं, जिससे उनकी आय और बढ़ जायेगी.

वे बताती हैं कि फिलहाल उनके पास जो जमा पैसे थे, उसी से उन्होंने दुकान खोली. सिल्ली के रूडसेट केंद्र पर उन्होंने डेढ़ महीने तक ब्यूटीशियन की ट्रेनिंग ली. घर के एक हिस्से में ब्यूटी पार्लर होने के कारण वे घर का काम करते हुए उसका संचालन करती हैं. एक बेटा है, जो इंटर में पढ़ाई कर रहा है. महिलाओं की तरक्की कैसे होगी, जैसे सवाल पर उनका जवाब होता है : महिलाओं को घर से बाहर निकलना होगा. जब वे घर से बाहर निकलेंगी और पांच लोगों से मिलेंगी तो कई नयी चीजें सीखेंगी. वे कहती हैं कि रूडसेट ने उनके जीवन को प्रभावित किया है और वहां से कई अच्छी चीजें सीखी हैं. उनका आत्मविश्वास भी उस संस्था से जुड़ने से बढ़ा है.

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