राधेश सिंह राज
कहते हैं अगर संकल्प मजबूत हो तो बड़ी से बड़ी आंधी व विपदा भी व्यक्ति के मंसूबे के आगे बौनी साबित हो जाती है. इसी मान्यता को सच करने के जद्दोजहद में लगे हैं, झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम के मनोहरपुर प्रखंड के बारंगा गांव में रहने वाले गुलशन लोहार. गुलशन ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपने अटल इरादों से पायी सफलता की बदौलत ऊंचाई को छू लिया है. जन्म से नि:शक्त होते हुए भी खुद को संसार के समक्ष साबित करने के लिए वे कड़ी मेहनत किया और अपने दृढ़ निश्चय के बल पर उन्होंने बहुत हद तक अपने सपने को सच कर दिखाया है. दोनों हाथों से गुलशन सौ फीसदी नि:शक्त हैं. इसके बावजूद उन्होंने जीवन के संघर्ष एवं चुनौतियों को स्वीकार करते हुए पैरों को ही अपने हाथ का विकल्प बना लिया, तो लोग आश्चर्यचकित रहे गये.
पिछले साल 14 दिसंबर को जिला समाहरणालय में गुलशन को उपायुक्त अबूबकर सिद्दीकी द्वारा सेल में नौकरी दिलाने का आश्वासन दिया गया था. इसके तहत सेल के वरिष्ठ उप महाप्रबंधक ललीत नारायण पांडेय, सुमन कुमार व विवेकानंद पाठक, प्रखंड साधन समन्यवक यशवंत कटियार के द्वारा गुलशन को उत्क्रमित उच्च विद्यालय में योगदान दिलवाया गया. प्रधानाध्यापक रायसिंह हेम्ब्रम द्वारा गुलशन लोहार का योगदान बतौर हाइ स्कूल शिक्षक के तौर पर लिया गया. मौके पर सेल के श्री पांडेय ने बताया कि गुलशन लोहार को वर्तमान में सेल के द्वारा अस्थायी रूप से उत्क्रमित उच्च विद्यालय, बारंगा में प्रतिनियुक्त किया गया है. जिसे मानदेय स्वरूप लगभग आठ हजार रुपये प्रतिमाह सेल के साइडिंग स्थित कार्यालय से दिया जायेगा.
दिसंबर 2011 में गुलशन को सेल ने लिया है गोद
मनोहरपुर प्रखंड के छोटानागरा गांव में आयोजित एक कार्यक्र म के दौरान बारंगा के गुलशन लोहार को सेल के महाप्रबंधक आरएन झा ने गोद लेने की घोषणा की थी. उन्होंने घोषणा की थी कि गुलशन के शिक्षण में होने वाले खर्च सेल वहन करेगी. हालांकि इस दौरान गुलशन की पढ़ाई में सेल कोई सहायता नहीं कर पायी. परंतु एक अप्रैल को गुलशन को अस्थाई रूप में शिक्षक की नौकरी प्रदान की गयी. गौरतलब है कि गुलशन के छह बड़े भाई दैनिक मजदूरी कर किसी तरह अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं. आर्थिक कठिनाई के कारण वर्तमान में गुलशन अपने मामा के घर सोनुवा में रह रहे हैं. सेल के द्वारा नौकरी मिलने के बाद वह अपने परिवार वालों के साथ बरंगा में ही रहेंगे.
पंचायतनामा से गुलशन ने साझा किया अनुभव
मनोहरपुर के बारंगा निवासी गुलशन लोहार जिले के उपायुक्त की मदद से सेल की ओर से आठ हजार के वेतनमान पर मिली शिक्षक की नौकरी से बेहद खुश हैं. उन्होंने अपने शिक्षण काल में आ रही दिक्कतों से संघर्ष को प्रभात खबर में प्रकाशित होने से मिलने वाले सहयोगों को याद करते हुए अपने बीते दिनों की बात याद की, जिसे पंचायतनामा के साथ उन्होंने साझा किया. प्रस्तुत है, उनकी बातें उन्हीं के शब्दों में :
मैं जन्म से ही दोनों हाथों से नि:शक्त हूं. बिना हाथ के व्यक्ति क्या-क्या नहीं कर सकता है. इसका अंदाजा तो मुङो बालपन में ही हो गया था. हर कदम पर उपेक्षा, मुश्किलों के बावजूद तय कर लिया था कि बगैर हाथ के भी दूसरों के लिए मार्ग प्रशस्त करने के लिए निरंतर प्रयास जारी रखूंगा. मैं अपने भाइयों में सातवें नंबर पर व सबसे छोटा हूं. जिस कारण बचपन में बिना हाथ के भाई का सहारा लेता था. हमारे पिता का स्वर्गवास हुए हाल ही में दो वर्ष बीते हैं. इससे पूर्व पिता ने मेरी लगन व शिक्षा के संकल्प को देखते हुए मेरे शिक्षण को निरंतर जारी रखा. बिना हाथ के मैंने बालपन से ही अपने पैरों को अपना सबसे अच्छा दोस्त बनाया. उसके सहारे मैंने अपने शैक्षणिक जीवन का पहला पड़ाव पार किया. वर्ष 2003 में मैट्रिक की परीक्षा 50 प्रतिशत अंकों के साथ पास की. प्रतिशत कम आने की वजह से मनोबल में थोड़ा कमजोर हुए, इसके बावजूद अपने निश्चय की बदौलत आगे निकलता ही गया.
मैंने अपनी मेहनत की क्षमता और विकसित की. वर्ष 2005 में इंटर की परीक्षा में 64 प्रतिशत अंक प्राप्त किया. अपने पैरों से लिख कर प्रथम श्रेणी से पास होने पर मेरा मनोबल और ऊपर उठा. स्नातक की डिग्री मैंने वर्ष 2008 में राजनीतिशास्त्र विषय आर्नस की डिग्री प्राप्त की. स्नातक में मुङो 54 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए. जैसा कि मैंने निश्चय कर रखा था कि हाथ नहीं होने के बावजूद दूसरों के लिए मार्ग प्रशस्त करना है. दूसरों को दिशा दिखानी है. इसके लिए मैंने शिक्षा को कैरियर चुनने का फैसला लिया. ताकि मैं अपने अंदर का ज्ञान दूसरों को देकर उनके जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकूं. शिक्षा के क्षेत्र में जाने के लिए प्रशिक्षण अनिवार्य है. आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण मेरा चयन बीएड की डिग्री के लिए हुआ.
तत्कालीन सरकार के मुखिया शिबू सोरेन से जाकर उनके आवास पर मिला. मेरी स्थिति को देखते हुए उन्होंने बीएड के लिए 25 हजार रुपये दिये. जिससे मैं रांची विश्वविद्यालय के अधीन बीएड की डिग्री ली. मैं द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण हुआ. मेरे शैक्षणिक जीवन काल में मेरे दोस्तों, सीनियर व शुभचिंतकों का बड़ा योगदान रहा है. जिनकी वजह से मैं वो शिक्षा की ज्योत अपने अंदर समेट पाया हूं, जिससे आने वाले समय में कइयों के जीवन में उजियारा लाने की चाह रखता हूं. आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद मैं कभी भी अपने परिवारवालों में भरण-पोषण का बोझ नहीं आने दिया. इसके लिए मैं सदा ही बच्चों को टय़ूशन देकर उससे काम चला लेता था. सेल से मिली मदद के बाद आज मैं कह सकता हूं कि मैं अपने दोनों पैरों की बदौलत अपने पैरों पर खड़ा हो पाया हूं.