यह 1989 का आम चुनाव था. रामविलास पासवान उन दिनों जनता दल के वरिष्ठ नेता थे, लेकिन संसदीय बोर्ड के सदस्य नहीं बनाये गये थे. उन दिनों टिकट बटवारे में संसदीय बोर्ड की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी. दिल्ली के हरियाणा भवन में राज्य पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक हो रही थी. चुनावी गहमा गहमी के बीच टिकट बंटवारे को लेकर बैठक शुरू हुई और एक नंबर सीट बगहा से उम्मीदवारों के नाम पर सहमति बनती जा रही थी. जब बारी हाजीपुर की आयी, तो पासवान की उम्मीदवारी पर विवाद हो गया.
हाजीपुर से पासवान की उम्मीदवारी तय मानी जा रही थी. 1977 के चुनाव में उन्होंने रिकार्ड वोट से जीत हासिल की थी. 1980 के मध्यावधि चुनाव में भी वह जीते थे. 1984 मे ंइंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में वह करीब एक लाख मतों से कांग्रेस के रामरतन राम से पराजित हो गये थे. इस बार उनकी जीत पक्की मानी जा रही थी. पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष थे रघुनाथ झा. संसदीय बोर्ड के एक सदस्य ने हाजीपुर सीट पर पासवान की जगह री-ओपन का प्रस्ताव दिया. री-ओपेन की बात सुन संसदीय बोर्ड अवाक रह गया. विवाद को देखते हुए पहले दिन की बैठक टाल दी गयी.
अगले दिन फिर बैठक आरंभ हुई. संसदीय बोर्ड में पासवान की जगह रामसुंदर दास को चुनाव लड़ाने की वकालत करने वाले सदस्य का तर्क था कि दास पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं और उन्हें पटना की आस-पास की सीट से लड़ाना ही ठीक रहेगा. संसदीय बोर्ड में गजेंद्र प्रसाद हिमांशु भी सदस्य थे. उन्होंने तर्क दिया कि यदि हाजीपुर की सीट री-ओपेन होगी तो एक नंबर बगहा सीट भी री-ओपेन होगी. उनका तर्क था कि अकेले हाजीपुर में उम्मीदवार बदलना पार्टी के हित में नहीं होगा. सभी सीटों पर दोबारा विचार हो, नहीं तो पासवान को हाजीपुर से टिकट दी जाये. उन्होंने तर्क दिया कि राम सुंदर दास जी के चुनाव लड़ने की बात है तो उन्हें मैं अपने क्षेत्र रोसड़ा ले चलता हूं, जहां उनकी जीत पक्की होगी.
सभी सीटों पर री-ओपेन की जिद से पासवान के विरोधी निरूत्तर हो गये. बोर्ड के एक सदस्य थे रामपूजन पटेल. यूपी से आने वाले पटेल ने रास्ता निकाला. उन्होंने पासवान को रामसुंदर दास से आर्शीवाद लेने की सलाह दी. जानकार बताते हैं कि पासवान गये और रामसुंदर दास से आर्शीवाद लिया. तब जाकर पासवान की उम्मीदवारी तय हो पायी. बोर्ड की बैठक खत्म हुई और पासवान को जब टिकट कटने के प्रस्ताव और फिर जिरह के बाद टिकट मिलने की जानकारी हुई, तो वह गजेंद्र प्रसाद हिमांशु के करीब गये. धन्यवाद देते उनकी आंखे छलक आयी. रामसुंदर दास रोसड़ा से चुनाव नहीं लड़े. वहां से पार्टी ने दसई चौधरी को उम्म्ीदवार बनाया.
चुनाव हुए और जब परिणाम घोषित हुआ तो रामविलास पासवान ने जीत का अपना ही रिकार्ड तोड़ दिया. पासवान को कुल 84.08 प्रतिशत वोट यानि 615129 वोट आये. उनके मुकाबले खड़े कांग्रेस के महावीर पासवान को 110681 वोट मिले. पासवान पांच लाख से अधिक वोट से चुनाव जीत गये. इसके पहले 1977 मे उन्हें चार लाख 24 हजार मतों से जीत मिली थी. उन दिनों यह भी रिकार्ड था. रोसड़ा से दसई चौधरी भी चुनाव जीत गये.
रामविलास पासवान