।। दक्षा वैदकर।।
दृ श्य 1 : गार्डन में बहुत सारे बच्चे खेल रहे थे. कोई पापा के साथ आया था, तो कोई मम्मी के साथ. कोई पापा-मम्मी दोनों के साथ आया था. तभी बच्चों की लड़ाई हो गयी. शिवम नाम के बच्चे ने दूसरे बच्चों को जमीन पर गिरा दिया और लात मारते हुए गाली दी. बच्चे के मुंह से ऐसी गालियां सुन कर सभी दंग रह गये. दूसरे बच्चे के पिता ने शिवम को डांटते हुए कहा, ‘इतनी गंदी गाली कहां से सीखी तुमने?’ शिवम ने गुस्से से कहा, ‘पापा भी तो मम्मी को ऐसे ही कहते हैं.’ सभी ने शिवम के पापा की तरफ देखा, जो जमीन में गड़े जा रहे थे.
दृश्य 2 : सुनंदा भाभी को उसकी पड़ोसन बिल्कुल पसंद नहीं थी. वजह थी कि वह थोड़ी काली थी. मिलने पर तो वह उससे हंस-हंस कर बात करती थी, लेकिन पीठ पीछे उसे काली बिल्ली कहती थी. जब भी वह कोई चीज उधार मांगने आती, सुनंदा भाभी बड़बड़ाती ‘लो काली बिल्ली फिर से आ गयी उधार मांगने.’ एक दिन दरवाजा उनके तीन साल के बेटे आयुष ने खोला. आंटी ने कहा, मम्मी है क्या बेटा? मुङो थोड़ी शक्कर चाहिए. आयुष चिल्लाता हुआ अंदर भागा. ‘मम्मी, फिर से काली बिल्ली उधार मांगने आ गयी..’ वह यह लाइन लगातार बोल रहा था. सुनंदा की हालत खराब हो गयी. वह भाग कर दरवाजे पर आयी, तब तक पड़ोसन नाराज हो कर वापस जा चुकी थी.
ये दोनों सच्ची घटनाएं हैं. यहां इन्हें बताने का केवल यही मकसद है कि बच्चे बहुत तेजी से सीखते हैं. हमें पता भी नहीं चलता कि कब वे हमारी बुरी आदत को अपना लेते हैं. इसके उदाहरण अकसर हमें देखने को मिलते हैं, लेकिन फिर भी हम सुधरते नहीं हैं. कहीं भी कुछ भी बोल देते हैं, पीठ पीछे लोगों की बुराई करते हैं, छोटे-मोटे झूठ बोलते हैं, चीजें चुरा लेते हैं. हमें लगता है कि इन छोटी-छोटी बातों से भला क्या फर्क पड़ेगा, लेकिन यहीं हम गलत हो जाते हैं. क्योंकि ये सारी चीजें हमारे बच्चे बड़े गौर से देख रहे होते हैं. बेहतर यही है कि हम उन्हीं कामों को करें, जो हम चाहते हैं कि बच्चे सीखें. ऐसा न करने से हमें बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.
बात पते की..
आप जो चीज अपने बच्चों को नहीं करते देखना चाहते हैं, वे खुद भी न करें. क्योंकि जब बच्चे करेंगे, तो आप उन्हें डांटने का हक खो चुके होंगे.
अगर आप चाहते हैं कि बच्चे दूसरों के सामने अनजाने में आपकी इंसल्ट न करवा दें, तो लोगों की पीठ पीछे बुराई करना बंद करें, अपशब्द न कहें.