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अपनी ही समस्याओं से परेशान हैं पद्मश्री करीमुल हक

जलपाईगुड़ी. अपने बाइक एम्बुलेंस की बदौलत रोगियों को नि:शुल्क अस्पताल पहुंचाने वाले करीमुल हक की पद्मश्री सम्मान पाने के बाद भी अपनी समस्याएं हल नहीं हुई हैं. उनके राशन कार्ड को आज तक बीपीएल राशन कार्ड में तब्दील नहीं किया जा सका है. जबकि वह मात्र चार हजार रुपये महीने की तनख्वाह पर एक चाय […]

जलपाईगुड़ी. अपने बाइक एम्बुलेंस की बदौलत रोगियों को नि:शुल्क अस्पताल पहुंचाने वाले करीमुल हक की पद्मश्री सम्मान पाने के बाद भी अपनी समस्याएं हल नहीं हुई हैं. उनके राशन कार्ड को आज तक बीपीएल राशन कार्ड में तब्दील नहीं किया जा सका है. जबकि वह मात्र चार हजार रुपये महीने की तनख्वाह पर एक चाय बागान में काम करते हैं.

चाय श्रमिक होने के बाद भी उनके पास एपीएल राशन कार्ड है. उन्होंने कई बार एपीएल राशन कार्ड को बीपीएल में तब्दील कराने की कोशिश की, लेकिन इसका लाभ नहीं हुआ. आलम यह है कि पद्मश्री करीमुल हक के घर रसोई गैस का कनेक्शन तक नहीं है. केंद्र सरकार गरीबों के घर में मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन देने का दावा जोर-शोर से कर रही है, जबकि पद्मश्री करीमुल हक के घर वाले अभी तक रसोई गैस कनेक्शन लिए तरस रहे हैं. टूटे-फूटे काठ के घर में ही करीमुल हक तथा उनके परिवार वालों की जिंदगी चल रही है.

इतना ही नहीं, दूसरों की मदद करने वाले करीमुल स्वयं अपनी मदद के लिए तरस रहे हैं. उनका पोता साढ़े तीन साल का फरहान हक ब्लड कैंसर से पीड़ित है. उसकी चिकित्सा के लिए भी काफी पैसे की जरूरत है. इन तमाम समस्याओं के बावजूद करीमुल अपने इलाके के गरीब लोगों की ही सोचते हैं. उन्होंने अपने इलाके में दो प्राइमरी अस्पतालों को विकसित करने तथा चेल नदी पर पक्का पुल बनाने की मांग सरकार से की है. पद्श्री सम्मान मिलने के बाद उन्हें एक संगठन की ओर से नया बाइक एम्बुलेंस दिया गया है. अपने पुराने बाइक को उन्होंने अपने बेटे को दे दिया है. श्री हक ने बताया है कि उनके घर से पांच किलोमीटर की दूरी पर राजाडांगा तथा आठ किलोमीटर की दूरी पर सारीपोखरी प्राइमरी अस्पताल है. इन दोनों अस्पतालों तक पहुंचने के लिए सड़क की व्यवस्था नहीं है.

लोगों को बाध्य होकर 45 किलोमीटर दूर जलपाईगुड़ी सदर अस्पताल जाना पड़ता है. करीमुल की पत्नी अंजूरा बेगम भले ही अपने पति की समाज सेवा का समर्थन करती हों और उनकी मदद भी करती हैं, लेकिन उनके मन में एक आक्षेप भी है. वह दबे मन से इस बात को कह भी देती हैं कि उनके पति सारी दुनिया का दुख दूर कर रहे हैं, लेकिन अपने ही घर की समस्या दूर नहीं कर पाते. कई बार आवेदन करने के बाद भी सरकार की ओर से रसोई गैस का कनेक्शन नहीं मिला. अपने दम पर रसोई गैस कनेक्शन लेने का उनके पास पैसा नहीं है. मिट्टी के चूल्हे में लकड़ियों की सहायता से अभी भी वह खाना पका रही हैं.

उन्होंने सुना है कि केंद्र सरकार ग्रामीण इलाकों में गरीब महिलाओं को रसोई गैस का कनेक्शन दे रही है. उन्हें रसोई गैस कर कनेक्शन मिल जाये, इसी उम्मीद में हैं. करीमुल का कहना है कि उन्हें चार हजार की तनख्वाह मिलती है. उसमें से भी अधिकांश पैसा बाइक एम्बुलेंस से रोगियों को अस्पताल पहुंचाने में खर्च हो जाता है. राज्य खाद्य एवं आपूर्ति विभाग ने इतनी कम तनख्वाह होने के बाद भी बीपीएल कार्ड देने से इनकार कर दिया है.

वह पंचायत प्रधान से लेकर कई बार विभागीय अधिकारियों का चक्कर काट चुके हैं, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ है. बीपीएल कार्ड बन जाने से सरकारी सुविधा लेने में थोड़ी सुविधा मिलती. उन्होंने आगे कहा कि वह पैसे के अभाव में ब्लड कैंसर पीड़ित अपने पोते की ही चिकित्सा नहीं करा पा रहे हैं. स्थानीय केबल नेटवर्क से उन्हें 50 हजार रुपये की सहायता दी गयी थी. इसके अलावा किसी ने उनकी कोई सहायता नहीं की. करीमुल के बेटे राजू के पास भी कोई नौकरी नहीं है. वह पान दुकान चलाकर अपने परिवार की सहायता करता है. करीमुल का परिवार इतना गरीब है कि पर्व-त्योहार में अपने लिए नये कपड़े तक की व्यवस्था तक नहीं कर पाता.

जब से बाइक एम्बुलेंस की सुविधा देने के लिए उन्हें पद्मश्री सम्मान देने की घोषणा हुई है, तब से उनका नाम काफी हो गया है. लेकिन उनके पारिवारिक स्थिति की जानकारी बाहर के लोगों को शायद ही होगी. उसके बाद भी करीमुल आजीवन बाइक एम्बुलेंस सेवा जारी रखना चाहते हैं. इधर, माल महकमा सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, चेल नदी पर पक्का पुल बनाने के लिए उत्तर बंगाल विकास मंत्रालय को एक प्रस्ताव सौंपा गया है. करीमुल हक द्वारा बताये गये दोनों प्राइमरी अस्पतालों की सुविधाएं भी बढ़ायी जायेंगी. स्वास्थ्य मंत्रालय को भी इस संबंध में एक रिपोर्ट भेज दिया गया है. प्रशासन ने करीमुल की समस्याएं दूर करने का आश्वासन भी दिया है.

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