सिलीगुड़ी. 13 साल की छोटी-सी उम्र में जिंदगी की जंग लड़ने को मजबूर है दीया विश्वकर्मा. गरीबी की मार और डॉक्टरों की लापरवाही के चलते उसका यह हाल हुआ है. दीया दार्जिलिंग जिले के कर्सियांग के कालीमाटी गयाबाड़ी की रहनेवाली है. पिता देवराज विश्वकर्मा पेशे से ड्राइवर हैं और मां शशि विश्वकर्मा गयाबाड़ी चाय बागान में श्रमिक हैं. दीया कर्सियांग के डेब जोवल एकेडेमी में सातवीं की छात्रा है. वह बचपन से ही काफी होनहार है. अपनी लाडली को बचाने की कोशिश में जिंदगी की पूरी जमापूंजी गंवा चुके दीया के मां-बाप अब किसी हमदर्द की राह ताकने को मजबूर हैं.
भीगी आंखों से अपनी बेटी की दर्दभरी कहानी शशि देवी ने प्रभात खबर प्रतिनिधि के साथ बयां की. उन्होंने बताया कि फरवरी महीने के अंतिम सप्ताह में अचानक दीया के कमर में एक घाव हो गया. मार्च में उसका इलाज कर्सियांग के एक डॉक्टर से कराया. मई महीने तक उस डॉक्टर का इलाज चला. इस बीच दीया की हालत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती चली गयी. दीया की बीमारी डॉक्टर पकड़ नहीं सका और उसकी लापरवाही व गलत दवाइयों के सेवन से रीएक्शन हो गया. दीया के कमर पर उभरा घाव पूरे शरीर में फैल गया और सिर से पांव तक पूरे शरीर में सूजन हो गयी. दीया की बिगड़ती हालत देख डॉक्टर ने हाथ खड़े कर दिये और सिलीगुड़ी में किसी अच्छे डॉक्टर से इलाज कराने की सलाह दी.
बाद में सिलीगुड़ी के एक हौमियोपैथिक डॉक्टर से भी दीया का इलाज कराया. लेकिन फायदा नहीं हुआ. इस दौरान झाड़-फूंक के चक्कर में भी पड़ना पड़ा, लेकिन दीया की हालत बिगड़ती ही चली गयी. साथ ही हमारी माली हालत भी. शशि देवी का कहना है कि उनकी और उनके पति की मामूली आमदनी है. उसमें पूरे परिवार का भरण-पोषन करना ही मुश्किल है, तो बेटी का अच्छे डॉक्टरों से इलाज कैसे करायें. शशि देवी ने बताया कि जिंदगी भर की जो भी जमापूंजी थी, वह भी बेटी के इलाज में खत्म हो गयी. शशि ने बताया कि हर जगह से हार जाने के बाद, किसी की सलाह पर उन्होंने अपनी बेटी का सिलीगुड़ी के प्रधाननगर स्थित निवेदिता नर्सिंग होम में इलाज कराया. चेकअप में उसके पीलिया (जोंडिस) से ग्रस्त होने की पुष्टि हुई. डॉक्टर ने दीया के पुराने प्रेसक्रिप्शन देखकर बताया कि उसका अबतक गलत इलाज हुआ है. दीया काफी पहले से ही पीलिया से ग्रस्त है.
डॉक्टर ने अच्छे इलाज के लिए दीया को जल्द नर्सिंग होम में भरती करने की सलाह दी है. शशि देवी का कहना है कि अब उनके पास इतनी भी रकम नहीं है कि बेटी को नर्सिंग होम में भरती करा सकें. दीया के मां-बाप अब उसे उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में भरती कराना चाह रहे हैं. मां शशि देवी का कहना है कि दीया के इलाज के लिए समय देने की वजह से मेरा चाय बागान का काम और पति के ड्राइवर का काम भी प्रभावित हो रहा है. इस वजह से आर्थिक तंगी और अधिक बढ़ गयी है. अगर दीया के इलाज के लिए कोई हमदर्द आगे आता है और उसके इलाज का खर्च वहन करता है, तो उनकी बेटी की जिंदगी बच सकती है. हम उनके बहुत आभारी होंगे.