वहां से गुरुवार शाम यह टोली दार्जिलिंग पहुंची.गोरखा रंगमंच भवन में जीटीए और भारतीय गोरखा जनजाति संघर्ष महासंघ ने 11 जातीय समूहों की सांस्कृतिक परंपरा, वेशभूषा और खान-पान की एक झलक दिखाने के लिए यह कार्यक्रम आयोजित किया था. इसमें गोरखा समुदाय की राई, मंगर, गुरूंग, खवास, भुजेल, थामी, याक्खा देवान, सुनवार, प्रधान, जोगी जातियों तथा समतल की धिमाल जाति ने अपनी-अपनी सांस्कृतिक परंपराओं का प्रदर्शन किया. टीम को गोरखा रंगमंच भवन के बाहर लगे इन जातीय समूहों के स्टाल भी दिखाये गये.इस समारोह को संबोधित करते हुए जीटीए चीफ विमल गुरूंग ने कहा कि भारत के विभिन्न राज्यों में रहने वाले गोरखा एवं नेपाली सभी भारतीय गोरखा हैं. जब-जब देश पर समस्या आती है, तब-तब भारतीय गोरखा अपना खून बहाकर देश की सुरक्षा करते आ रहे हैं.
लेकिन इन भारतीय गोरखाओं की संस्कृति व परम्परा दिनोदिन खतरे में पड़ती जा रही है. इसलिए हम इनके लिए जनजाति के दरजे की मांग करते आ रहे हैं. श्री गुरूंग ने बंगाल के गत विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सम्भाषण को स्मरण कराते हुए कहा कि उन्होंने इन जातीय समूहों को अनुसूचित जनजाति में शामिल कराने का वादा किया था. इस मौके पर भिशु मियानी ने कहा कि आप लोगों के प्रेम से मैं ओतप्रोत हूं. आप लोगों ने मुझे जो जानकारी दी है, उसके लिये मैं आप लोगों का आभारी हूं. जीटीए और भारतीय गोरखा जनजाति संघर्ष महासंघ द्वारा तैयार किया गया दस्तावेज जीटीए चीफ विमल गुरूंग ने कमिटी को सौंपा.