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दक्षिण बेरूबाड़ी में ‘एडवर्स’ गांवों को लेकर विपक्ष एकजुट
जलपाईगुड़ी. बुधवार को मुख्यमंत्री की सिंगूर यात्रा के दिन ही जलपाईगुड़ी के दक्षिण बेरूबाड़ी के ‘एडवर्स लैंड’ के चार गांवों के विकास के लिए आर्थिक पैकेज की मांग को लेकर वाम, कांग्रेस और भाजपा एक मंच पर आ गये हैं. इसे सिंगूर से बड़ा जमीन आंदोलन बताया जा रहा है. बुधवार की शाम को दक्षिण […]
जलपाईगुड़ी. बुधवार को मुख्यमंत्री की सिंगूर यात्रा के दिन ही जलपाईगुड़ी के दक्षिण बेरूबाड़ी के ‘एडवर्स लैंड’ के चार गांवों के विकास के लिए आर्थिक पैकेज की मांग को लेकर वाम, कांग्रेस और भाजपा एक मंच पर आ गये हैं. इसे सिंगूर से बड़ा जमीन आंदोलन बताया जा रहा है. बुधवार की शाम को दक्षिण बेरूबाड़ी के मानिकगंज में शासक विरोधी दल एकजुट होकर आंदोलन में उतरेंगे. यह आंदोलन एक गैर राजनैतिक बैनर ‘बेरूबाड़ी प्रतिरक्षा कमिटी और सीमांत उन्नयन संग्राम कमिटी’ के तहत होगा.
देश के बंटवारे के बाद दक्षिण बेरूबाड़ी के चार सीमांत गांव चिलाहाटी, बड़शशी, काजलदिघी और नाउतारी देवोत्तर भारत की मुख्यभूमि (मेनलैंड) से लगे होने के बावजूद इन्हें बांग्लादेश के नक्शे में दिखाया गया था. तत्कालीन भारत सरकार बेरूबाड़ी का आधा हिस्सा तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को देना चाहती थी. लेकिन इसके खिलाफ सीमांतवासियों ने 1958 से 1960 तक बेरूबाड़ी आंदोलन चलाया, जिसका नारा था- ‘रक्त देबो प्राण देबो, बेरूबाड़ी देबोना’. उसी समय बेरूबाड़ी के लोगों ने बेरूबाड़ी का आधा हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान को न देने को लेकर कोलकाता हाइकोर्ट में मामला किया. लेकिन यह मामला सुप्रीम कोर्ट गया. सुप्रीम कोर्ट ने उस समय भारत सरकार को देश के संविधान में संशोधन कर बेरूबाड़ी को देश का अभिन्न अंग मानकर पाकिस्तान को नहीं सौंपेने का निर्देश दिया. इसके बाद देश के संविधान में संशोधन हुआ और उसका आधा हिस्सा पाकिस्तान में जाने से बच गया. सन 1961 में इसे लेकर सीमांतवासियों ने बेरूबाड़ी में संकल्प वेदी की स्थापना की.
बरूबाड़ी प्रतिरक्षा कमिटी और सीमांत उन्नयन संग्राम कमिटी के उप सलाहकार तथा पूर्व विधायक गोविंद राय ने बताया कि सिंगुर के लिए राज्य सरकार ने जो किया, उससे कहीं ऐतिहासिक बेरूबाड़ी आंदोलन के लिए देश के संविधान में संशोधन था. बेरूबाड़ी के विकास के लिए राज्य और केंद्र का ध्यान खींचने के लिए इस कमिटी के आंदोलन में वह शामिल हो रहे हैं. दक्षिण बेरूबाड़ी के उक्त चारों गांवों को दोनों देशों के बीच एक समझौते के बाद भारत के नक्शे पर जगह मिल गयी है. छीटमहलों के साथ इन एडवर्स गांवों के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 3700 करोड़ रुपये आर्थिक पैकेज की घोषणा हुई थी. लेकिन छीटमहलों के लिए धन आवंटित हो गया, पर एडवर्स गांवों के विकास के लिए एक रुपया आवंटित नहीं हुआ. उन्होंने मांग की कि बेरूबाड़ी के चार गांवों के आठ हजार लोगों के लिए अविलंब आर्थिक पैकेज का एलान करना होगा. इसी मांग को लेकर बुधवार को मानिकगंज में बेरूबाड़ी की संकल्प बेदी पर कमिटी की ओर से आम सभा का आयोजन किया गया है. कमिटी की ओर से बांग्लादेश के हाईकमिश्नर, राज्य और केंद्र सरकार के गृह सचिवों, कूचबिहार के जिला अधिकारी के पास चार गांवों के आर्थिक पैकेज के लिए लिखित मांग की जायेगी. मांग नहीं पूरी होने पर नवंबर के दूसरे सप्ताह में दिल्ली मार्च किया जायेगा.
कमिटी से जुड़े एक और सलाहकार जलपाईगुड़ी के विधायक डॉ सुखविलास वर्मा ने बताया कि एडवर्स गांवों के लिए अविलंब पैकेज की घोषणा करनी होगी. हम लोग अराजनैतिक रूप से इस आंदोलन में शामिल हो रहे हैं. बुधवार को आंदोलन की रूपरेखा की घोषणा सभा के मंच से की जायेगी. इस बारे में जलपाईगुड़ी जिला भाजपा के अध्यक्ष द्वीपेन प्रामाणिक ने कहा कि बेरूबाड़ी का आंदोलन ऐतिहासिक था. सिंगूर पर बहुत बात होती है, लेकिन कानूनी मंजूरी के बावजूद एडवर्स गांवों के लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा क्यों नहीं हो रही.
प्रतिरक्षा कमिटी में शामिल होने के बावजूद तृणमूल इस नवगठित कमिटी में नहीं है. तृणमूल की दक्षिण बेरूबाड़ी अंचल कमिटी के अध्यक्ष नृपतिभूषण राय ने कहा कि उनकी पार्टी ने भी इन चारों गांवों के लिए आर्थिक पैकेज की मांग की है. लोकसभा में जलपाईगुड़ी के पार्टी सांसद विजय चंद्र वर्मन के माध्यम से यह मामला उठाया गया है.
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