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आजादी के बाद पहली बार सत्तारूढ़ दल का विधायक नहीं

मालदा: आजादी के बाद यह पहली बार है जब मालदा जिले में सत्तारूढ़ दल का कोई विधायक नहीं है. लगभग तीन दशक के बाद ऐसा होगा जब मालदा जिले से कोई मंत्री नहीं बनेगा. जिले से कोई मंत्री नहीं होने से इलाके का विकास कैसे होगा, इसे लेकर चर्चाओं और अटकलों का दौर शुरू हो […]

मालदा: आजादी के बाद यह पहली बार है जब मालदा जिले में सत्तारूढ़ दल का कोई विधायक नहीं है. लगभग तीन दशक के बाद ऐसा होगा जब मालदा जिले से कोई मंत्री नहीं बनेगा. जिले से कोई मंत्री नहीं होने से इलाके का विकास कैसे होगा, इसे लेकर चर्चाओं और अटकलों का दौर शुरू हो गया है. मर्चेंट चेंबर ऑफ कॉमर्स के जिला अध्यक्ष जयंत कुंडू का कहना है कि इंगलिशबाजार सीट के निर्दलीय विधायक निहार घोष को मंत्री बनाया जाना चाहिए.

वह किसी राजनीतिक पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े नहीं थे. ममता बनर्जी चाहें तो उन्हें कोई बड़ा दायित्व दे सकती हैं. इससे जिले के लोगों को सुविधा होगी. दशकों बाद जिला मंत्री विहीन रहेगा, यह सोचकर ही अजीब लगता है. हम लोग मुख्यमंत्री के पास अपनी मांग रखेंगे. किसी एक को तो दायित्व देना ही होगा. मुख्यमंत्री खुद भी मालदा पर नजर रखें.


श्री कुंडू ने कहा कि मालदा से जो भी मंत्री रहता था, चाहे वह किसी भी दल से हो, हम उसके पास पहुंचते थे. किसी भी संकट में हमें सहायता मिलती थी. लेकिन अब क्या होगा? हम किसके पास जायेंगे? सत्तारूढ़ दल का एक भी विधायक जीता नहीं है. अब हमें निर्दलीय विधायक निहार रंजन घोष से ही उम्मीद है. चूंकि वह किसी पार्टी से नहीं जीते हैं इसलिए ममता दीदी चाहे तो उन्हें मंत्री की जिम्मेदारी दे सकती हैं.

हालांकि इस बारे में निहार रंजन घोष ने कहा कि लोगों की मांग हो सकती है. इसमें मेरे लिए बोलने को क्या है. लोगों को पहले तो इस तरह की मांग करने का हक नहीं था. इसलीए तो वोट देकर लोगों ने मुझे जिताया है. अब लोग ऐसा बोल पा सकते हैं.

इधर जिले का इतिहास बताता है कि आजादी के बाद से ऐसा कभी नहीं हुआ था कि जिले में सत्तारूढ़ दल का कोई विधायक न रहा हो. 1951 के पहले विधानसभा चुनाव से लेकर 2011 के चुनाव तक हमेशा सत्तारूढ़ दल का कोई न कोई चुनाव जीता ही. मंत्रिमंडल में भी मालदा को जगह मिलती रही है. इतना ही नहीं, मालदा ने राज्य को मुख्यमंत्री भी दिया है. 1972 के चुनाव में मालदा विधानसभा सीट से निर्वाचित होकर सिद्धार्थ शंकर राय मुख्यमंत्री बने थे. उसी बार गनीखान चौधरी पहली बार राज्य के सिंचाई और बिजली विभाग के मंत्री बने थे. इससे पहले मालदा जिले से ही चुनाव जीतकर 1962 से 1967 तक कांग्रेस के सौरेंद्र मोहन मिश्र शिक्षा राज्यमंत्री रहे थे. वहीं 1967 से 1970 तक राज्य मंत्रिमंडल में गुलाम इयाजदानी को जगह मिली. इसके बाद 1970 में कुछ महीनों के लिए स्वतंत्र पार्टी के लिए राजेंद्र सिंह सिंही मंत्री रहे. फिर वाम शासन आया. वाम शासन के समय 1977 से 1982 तक मालदा से कोई मंत्री नहीं रहा. लेकिन तब मालदा से सत्तारूढ़ दल के पांच विधायक थे. 1982 से 1987 तक सीपीएम के शैलेन सरकार नगर विकास राज्यमंत्री रहे. 1987 से लेकर 1991 तक जिले में वाम मोरचा के 10 विधायक रहे, लेकिन गुटबाजी की वजह से इनमें से किसी को मंत्री नहीं बनाया गया.

1991 से 1996 तक सीपीएम के सुबोध चौधरी परिवहन राज्यमंत्री थे. 1996 से 2001 तक फारवर्ड ब्लॉक के बीरेन मैत्र कृषि विपणन मंत्री रहे. 2001 में शैलेन सरकार एक बार फिर मंत्री बने. उन्हें खाद्य प्रसंस्करण एवं बागवानी विभाग दिया गया था. 2011 में तृणमूल सत्ता में आयी और मालदा जिले से सावित्री मित्र को नारी, शिशु एवं समाज कल्याण मंत्री बनाया गया. 2012 में कृष्णेंदु चौधरी भी मंत्रिमंडल में शामिल कर लिये गये. पहले उन्हें पर्यटन विभाग का मंत्री बनाया गया और बाद में उन्हें खाद्य प्रसंस्करण एवं बागवानी विभाग की जिम्मेदारी दी गयी.


2016 के विधानसभा चुनाव में मालदा जिले में सत्तारूढ़ दल का कोई विधायक निर्वाचित नहीं हुआ है. परिणामस्वरूप कोई मंत्री नहीं बनेगा. इस बारे में सीपीएम के जिला सचिव अंबर मित्र कहते हैं, यह दुर्भाग्यपूर्ण है. लेकिन इससे क्या? विरोधी पक्ष के तो 12 विधायक हैं. दो सांसद हैं. यही लोग विकास करेंगे. राज्य सरकार को चाहिए कि इन लोगों के माध्यम से विकास कार्य करवाये.

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