जलपाईगुड़ी: आने वाले विधानसभा चुनाव में दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बिमल गुरूंग के नेतृत्व वाली गोजमुमो पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तथा तृणमूल सरकार के साथ दूरी बढ़न के बाद बिमल गुरूंग ने विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी को अधिक से अधिक नुकसान पहुंचाने का ऐलान किया है.
दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में जहां दार्जिलिंग, कालिम्पोंग तथा कर्सियांग में वर्ष 2011 के चुनाव में गोजमुमो उम्मीदवारों की जीत हासिल हुई थी, वहीं डुवार्स के कालचीनी विधानसभा सीट से गोजमुमो के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विल्सन चम्प्रामारी चुनाव जीतने में सफल हुए थे. स्वाभाविक तौर पर न केवल आम लेागों की बल्कि राजनीतिक विश्लेषकों की भी इस सीट पर नजर लगी हुई है. विल्सन चम्प्रामारी एक बार फिर से इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन वह इस बार तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार हैं.
कुछ वर्षोँ पहले ही वह गोजमुमो छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये थे. उसके बाद से ही वह गोजमुमो की नजर में चढ़े हुए हैं. गोजमुमो सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, कालिम्पोंग में जिस प्रकार से हर्क बहादुर छेत्री को हराने के लिए पार्टी दिन-रात एक कर देगी, उसी प्रकार से कालचीनी में विल्सन चम्प्रामारी को भी हराने के लिए जी-जान लगा देंगे. गोजमुमो नेता बिनय तामांग का इस मामले में कहना है कि हर्क बहादुर की तरह ही विल्सन चम्प्रामारी ने भी पार्टी को धोखा दिया है. आने वाले विधानसभा चुनाव में गोरखा जाति के लोग इन दोनों को ही सबक सीखायेंगे. इस बीच, कालचीनी विधानसभा सीट पर तृणमूल कांग्रेस के अलावा अब तक किसी ने भी उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है. वाम मोरचा ने भी अब तक यहां उम्मीदवार तय नहीं किया है. माकपा सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार चालचीनी सीट कांग्रेस के लिए छोड़ दी गई है. फिलहाल विल्सन चम्प्रामारी पूरे मैदान में चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं. लेकिन इतना तय है कि इस बार उनकी राह आसान नहीं है. उन्हें न केवल अपनी पुरानी पार्टी गोजमुमो बल्कि वाम मोरचा, कांग्रेस एवं भाजपा के साथ मुकाबला करना होगा.
माना जा रहा है कि गोजमुमो इस सीट पर भाजपा उम्मीदवार का समर्थन करेगी. विल्सन चम्प्रामारी इस सीट से वर्ष 2009 में गोजमुमो के समर्थन से उक्त चुनाव जीतने में सफल रहे थे. वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में भी गोजमुमो के समर्थन से उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी.
उन्होंने वाम मोरचा के शरीक दल आरएसपी के बिनय भूषण करकेट्टा को 6 हजार से अधिक वोटों से हराया था. वह जिस तृणमूल पार्टी से इस बार चुनाव लड़ रहे हैं वह पार्टी 2011 के चुनाव में चौथे स्थान पर रही थी. तृणमूल कांग्रेस के पवन कुमार लाकड़ा मात्र 27 हजार 662 वोट पाने में कामयाब रहे थे. झामुमो के संदीप एक्का तृणमूल के मुकाबले अधिक वोट लाने में कामयाब रहे थे. वह 36285 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे.
मिला-जुला रहा है परिणाम : कालचीनी विधानसभा सीट पर आम तौर पर कांग्रेस तथा वाम मोरचा की जीत होती रही है. यहां मुख्य मुकाबला इन्हीं दो पार्टियों के बीच होता रहा है. 2011 के चुनाव में कांग्रेस और तृणमूल के बीच गठबंधन था और इस सीट से कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था. आम तौर पर देखा जाये तो 1957 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के देवेन्द्र नाथ बर्मा मंडल की जीत हुई थी. अगली बार 1962 के चुनाव में आरएसपी के ननी भट्टाचार्य ने बाजी मारी. उसके बाद वर्ष 1967 में फिर इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा हो गया. उसके बाद आने वाले चुनाव में कभी कांग्रेस तो कभी आरएसपी की यहां से जीत होती रही. वर्ष 2006 के चुनाव में आरएसपी के मनोहर तिरकी जीते थे. वर्ष 2009 के उप-चुनाव तथा 2011 के आम चुनाव में विल्सन चम्प्रामारी की जीत हुई.