बंधी अवस्था में ही बहनों के साथ मनाया भैयादूज
सिलीगुड़ी : भैया दूज के दिन भी जंजीर से बंधा रहा 12 वर्षीय शंभू सरकार. बंधी अवस्था में ही उसने अपनी तीन छोटी बहनों के साथ शनिवार को भैयादूज मनाया. सिलीगुड़ी के दार्जिलिंग मोड़ के निकट चेतना कुष्ठ आश्रम में उसका घर है. घर से मात्र 15-20 मीटर की दूरी पर सिलीगुड़ी के विधायक डॉ रुद्रनाथ भट्टाचार्य, पुलिस प्रशासन के आलाधिकारी कमिश्नर जग मोहन, अपंगों की एनजीओ ‘अनुभव’, राउंड टेबल सामाजिक शिक्षा संस्था के प्रतिनिधि, कई समाजसेवी व नेतागण चेतना कुष्ठ आश्रम के कुष्ठ रोगियों के बच्चों के साथ भैया दूज मनाने में व्यस्त थे, लेकिन जंजीर से बंधे शंभू की सुध लेनेवाला कोई नहीं था.
एक छोटी सी कुटिया में शंभू के अलावा उसकी मां मीना सरकार, पिता कृष्णा सरकार, तीन छोटी बहनें व एक छोटा भाई कुल सात सदस्यों का एक भरा-पूरा परिवार एक साथ रहता है. शंभू के पिता भिक्षाटन कर किसी तरह अपना परिवार चलाते हैं. मां मीना ने बताया कि शंभू मानसिक रूप से बीमार है. काफी चंचल भी है. इसलिए उसे जंजीर से बांधकर रखना हमारी मजबूरी है. अगर उसे खुला छोड़ दिया गया, तो वह घर छोड़कर भाग जाता है. कई बार वह हाईवे पर दुर्घटनाग्रस्त भी हो चुका है. अचानक लोगों पर हमला कर देता है. मीना ने बताया कि जब वह एक साल का हुआ उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ती चली गयी. साथ ही उसकी आवाज भी खराब हो गयी. सिलीगुड़ी, जलपाईगुड़ी, कोलकाता के अलावा भी बहुत जगहों पर शंभू का इलाज कराया गया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. उसके इलाज में आर्थिक अभाव भी रोड़ा बना.
जंजीर से बांध कर रखना मां-बाप की मजबूरी
शंभू की मां मीना ने बताया कि विधायक डॉ रुद्रनाथ भट्टाचार्य ने भी उसके इलाज करवाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह भी सफल नहीं हुए. इस बाबत श्री भट्टाचार्य ने कहा कि शंभू को जंजीर से बांध कर रखे जाने की खबर उन्हें पहले से ही है. उसे जिस तरह की बीमारी है उसका कोई इलाज नहीं है. वह मानसिक रूप से काफी कमजोर एवं छटपटाहट जैसी बीमारी से ग्रस्त है. इसके अलावा भी उसे अन्य कई बीमारी है. उसके इलाज के लिए श्री भट्टाचार्य ने काफी कोशिश भी की थी. उन्हाेंने बताया था कि कोलकाता के भी एक विशेषज्ञ से उसकी बीमारी का इलाज करवाने की कोशिश की और सलाह भी ली थी. उसके इलाज के बाद विशेषज्ञ चिकित्सक ने बताया कि इसकी बीमारी अब लाइलाज है. बीमारी अब अंतिम चरण पर है. शंभू को बांध कर रखना उसके परिवार की मजबूरी है. अगर देश से बाहर भी उसकी बीमारी का इलाज संभव है, तो अपने अंतिम सांस तक अपने इलाज कराने का भरोसा श्री भट्टाचार्य ने दिया.