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दूसरे की लापरवाही की भेंट चढ़ते परिवार
आत्ममंथन डाॅ सुरेश सैनी 22 मार्च 2017 को एक हृदय विदारक हादसा रेलवे सुरक्षा बल परिवार में हुआ. सुबह कार्यालय में पहुंचने के साथ ही ज्ञात हुआ कि रेलवे सुरक्षा बल के हावड़ा मंडल में कार्यरत निरीक्षक राजन कुमार और पूर्व मध्य रेल आयुक्त के कमांडेट शेषनाथ सिंह परिवार सहित बर्दवान के समीप एक सड़क […]
आत्ममंथन
डाॅ सुरेश सैनी
22 मार्च 2017 को एक हृदय विदारक हादसा रेलवे सुरक्षा बल परिवार में हुआ. सुबह कार्यालय में पहुंचने के साथ ही ज्ञात हुआ कि रेलवे सुरक्षा बल के हावड़ा मंडल में कार्यरत निरीक्षक राजन कुमार और पूर्व मध्य रेल आयुक्त के कमांडेट शेषनाथ सिंह परिवार सहित बर्दवान के समीप एक सड़क हादसे का शिकार हो गये. कुल 7 सदस्य कार में सवार थे.
राजन के साथ उनकी पत्नी, 2 बेटियां और बेटा तथा उनके पिता शेषनाथ सिंह और उनकी पत्नी यानि राजन की माताजी, कोई भी नहीं बच पाया. घटना की सूचना पाते ही पुलिस व रेलवे सुरक्षा बल के वरिष्ठ अधिकारी और जवान घटनास्थल पर पहुंचे और बचाव कार्य को देखा लेकिन करने के लिए कुछ भी नहीं बचा था. यह रेलवे सुरक्षा बल के लिए अपूरणीय क्षति थी. शेषनाथ सिंह, राजन व परिवार के दिवंगत सदस्यों को श्रद्धांजलि, किंतु श्रद्धांजलि देने मात्र से हमारा कर्तव्यपूर्ण नहीं होगा, जब तक कि इस सड़क हादसे से संबंधित पहलुओं का विश्लेषण न कर दिया जाय.
हमारे यहां नयी परिवहन नीति के पश्चात ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने का काम सख्त है, किंतु पहले से जारी ड्राइविंग लाइसेंस व ड्राइवरों की सही ड्राइविंग और उनकी कुशलता के बारे में जांच की जाय, ऐसा कुछ नहीं हुआ. हमें ड्राइविंग की तह में जाना पड़ेगा. दो तरह के व्यक्ति ड्राइविंगलाइसेंस के लिए आवेदन करते हैं. एक तो वे जो अपनी गाड़ी स्वयं चलाने के इच्छुक हैं, वह मोटरसाइकिल से लेकर कार तक कुछ भी हो सकती है. दूसरे लोग वे, जो ट्रक व बसों के ड्राइवर बनने के इच्छुक होते हैं. सभी को पहले शिक्षार्थी लाईसेंस जारी किया जाता है.
उसके बाद पुनः ड्राइविंग परीक्षा देने पर पक्का लाइसेंस जारी किया जाता है. मुझे तो यह लगता है कि हर तरह के ड्राइवर के लिए भी शपथ लेना अनिवार्य कर देना चाहिए कि वह अपनी गाड़ी को ‘बेहद सावधानी से कुशलतापूर्वक बिना नशे पत्ते के, दिल व दिमाग को शरीर के साथ रख कर गाड़ी चलायेगा ‘और अगर ड्राइवर दो बार गलती करता है तो ऐसी स्थिति में उसकी ड्राइविंग लाइसेंस जब्त कर लेना चाहिए. फिर कभी भी ड्राइवर लाइसेंस जारी नहीं होनी चाहिए. सड़कों पर निर्दोषों की जान से खेलने का किसी को भी हक नहीं है. इस दुर्भाग्यपूर्ण भीषण दुर्घटना का यदि हम संक्षेप में विश्लेषण करें तो हमें कई सबक सीखने को मिलते हैं. सर्वप्रथम जितना प्रत्यक्षदर्शियों से अनौपचारिक रूप से ज्ञात हुआ कि शेषनाथ सिंह की गाड़ी टेंकर को बांयी ओर से ओवरटेक कर रही थी. साइड देने के लिए हाॅर्न बजाना सामान्य बात है. अचानक टेंकर के सामने कुछ आ जाने से उसने ब्रेक लगाये और पीछे से तेजगति से आ रहे एक डंपर या किसी ट्रक ने अलकतरे से भरे टेंकर को टक्कर मारी, जिसमें वह अनियंत्रित होकर डिवाइडर से टकराया और इसी बीच टेंकर के समानांतर आ पहुंची नयी स्विफ्ट डिजायर गाड़ी पर पलट गया.
अलकतरे से लदे भारी भरकम टैंकर के नीचे गाड़ी एकदम पिचक गयी और परिवार के सभी सदस्य उसमें फंस कर दब गये. यह सब क्षणभर में ही हो गया, किसी को सोचने का, बचने का, चिल्लाने का मौका भी नहीं मिला. प्रत्यक्षदर्शियों को भी मदद करने का मौका ही नहीं मिला. बोलपुर जा रहे कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने यह हादसा देखा कि एक बालक बच गया था, किंतु बुरी तरह दबा हुआ था और मदद के लिए चिल्ला रहा था, ‘अंकल बचाओ. ‘प्रत्यक्षदर्शी बोलते हैं कि उन्हें जिंदगी भर इस बात का अफसोस रहेगा कि वे उस बच्चे को नहीं बचा सके.
भारी भरकम टेंकर को जो गर्म अलकतरे से भरा था, हटाना मानव के हाथों के बस की बात नहीं थी. क्रेन आयी और टेंकर हटाने का कार्य शुरू हुआ. बच्चे को बचाने की उम्मीद बंधी. टेंकर ज्योंही उठने लगा कि क्रेन की चेन टूट गयी और भारी भरकम टेंकर वापस गाड़ी पर दोबारा गिर गया, टेंकर का ढक्कन खुल गया और गर्म अलकतरा बहने लगा. बच्चे को नहीं बचाया जा सका. बड़ी क्रेन मंगायी गयी और टेंकर हटाया गया, किंतु बहुत देर हो चुकी थी.
गाड़ी में फंसे मानव शरीरों को निकालना खासतौर पर जब अपनों के हो, बेहद हृदय विदारक होता है. हमारे देश में उच्च राजमार्गों पर अब भी प्रभावी अपदा प्रबंधन टीमें और साजो सामान्य बिना देर किये हुए उपलब्ध नहीं होते, जबकि रेलवे में दुर्घटना राहत ट्रेन हमेशा तैयार रहती है और जब भी इस प्रकार की घटना होती है तो बिना समय गंवाये घटना स्थल पर पहुंच जाती है और बचाव कार्य में लग जाती हैं. ड्राइविंग करते समय हमारा शरीर ड्राइविंग सीट पर होता है, आखें भी सामने देख रही होती हैं पर दिमाग कहीं दूर किसी समस्या में उलझा होता
है. फलतः आंखें होते हुए भी हम अंधों की तरह व्यवहार कर बैठते हैं और दुर्घटना हो जाती है. ड्राइविंग बेहद जिम्मेदारी का काम है. आपके हाथों में आपकी ही नहीं, सड़क पर चल रहे निर्दोष मुसाफिरों की भी जान है.
इसलिए दिमाग और शरीर को साथ रख कर बेहद सावधानी से नियंत्रित गति से गाड़ी चलायें. अच्छा ड्राइवर वही होता है जो स्वयं तो गलती ना ही करे. साथ ही सामनेवाले की गलती से भी स्वयं के वाहन को बचाये. यह शिक्षा ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने से पहले प्रशिक्षु ड्राइवरों को बाकायदा कक्षाएं लगा कर घोट-घोट कर पिलानी चाहिए.
(लेखक पूर्व रेलवे के डीआइजी हैं.)
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