टाटा की विश्वसनीयता बेहद अधिक है. उदाहरण स्वरूप बताया कि टाटा की फिनांस की एक कंपनी खस्ता हाल में थी. जरूरी नहीं होने पर भी महज टाटा का नाम जुड़ा होने के कारण अन्य सभी टाटा की कंपनियों ने सहयोग कर शेयर धारकों को खस्ताहाल स्थिति से उबारा. जेआरडी टाटा को अपनी प्रेरणा बताते हुए डॉ इरानी ने कहा कि जेआरडी ने कभी निजी संपत्ति नहीं बनायी. टिस्को में भी उनकी हिस्सेदारी महज तीन फीसदी थी, जबकि जीडी बिड़ला की पांच फीसदी थी. हर एजीएम के पहले जीडी बिड़ला जरूरी कागजात पर हस्ताक्षर करके जेआरडी को उसे सौंप देते थे और अपनी मरजी के मुताबिक हर फैसला लेने को कहते थे.
लेकिन आजकल देखा जाता है कि कई बार 30 फीसदी हिस्सेदारी रहने पर भी मुश्किल पेश आने लगती है. टिस्को के विदेशी अधिग्रहण को गलती करार देते हुए डॉ इरानी ने कहा कि कंपनी को विदेशी सलाहकार ने इसकी सलाह दी थी. हालांकि अधिग्रहण के बाद वह दिखायी नहीं दिये. हालांकि टाटा मोटर्स के विदेशी अधिग्रहण सफल रहे. डॉ इरानी ने कहा कि यह देखकर उन्हें बेहद अफसोस होता है कि मेधावी विद्यार्थी इंजीनियरिंग पढ़ने के बाद फिनांस आदि स्ट्रीम में चले जाते हैं. उनका मानना है कि करियर के पहले दो-तीन वर्ष वही काम करना चाहिए, जिसकी पढ़ाई की गयी है.
जिसके लिए सरकार ने पैसे खर्च किये हैं. अमेरिका व यूरोप में ऐसा ही होता है. अब मौजूदा चलन भारत में वापसी का है. अमेरिका को मजबूत बनाने में भारतीय मेधा का बहुत बड़ा हाथ है. लेकिन भारत की स्थिति में भी सुधार होनी चाहिए. वह बताते हैं कि 1970 के दशक में स्टील मंत्री ने कहा था कि जल्द ही भारत 100 मिलियन टन स्टील का उत्पादन करने लगेगा. वह स्थिति आज तक नहीं हो सकी है. कंपनी के युवा कर्णधारों के हाथों में कंपनी का भविष्य छोड़ देने की वकालत करनेवाले डॉ इरानी कहते हैं कि वह खुद जमशेदपुर में रहते हैं लेकिन अनुरोध पर भी अपनी पूर्व कंपनी से संबंधित कोई भी फैसला वह कंपनी के मौजूदा अधिकारियों को ही लेने की सलाह देते हैं.