कोलकाता : महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने की जोरदार वकालत करने वाली राजनीतिक पार्टियों में शामिल और एक दूसरे की चिर प्रतिद्वंद्वी तृणमूल कांग्रेस तथा वामपंथी पार्टियां खुद अपने राज्य में इस दिशा में कोई उल्लेखनीय उदाहरण पेश करने में विफल रही हैं. प्रदेश में लोकसभा चुनाव के लिए दोनों पार्टियों द्वारा जारी की गयी उम्मीदवारों की सूची में गिनी चुनी महिलाओं को ही मैदान में उतारा गया है.
तृणमूल कांग्रेस द्वारा लोकसभा चुनाव के लिए घोषित 42 सीटों में से केवल 11 पर महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा गया है जबकि वाम मोर्चे की सूची में यह आंकड़ा मात्र छह तक ही पहुंच पाया है.
विश्व आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहा है और ऐसे में महिलाओं के सशक्तिकरण की मुखर आवाज बुलंद करने वालों के नारों और उनकी जमीनी हकीकत के बीच भेद बहस का मुद्दा हो सकता है. यह भी गौरतलब है कि तृणमूल कांग्रेस की कमान प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी संभाल रही हैं तो वहीं वृंदा करात वाम मोर्चे का एक प्रमुख चेहरा हैं.
हालांकि तृणमूल कांग्रेस ने वाम मोर्चे के मुकाबले अधिक महिलाओं को टिकट दिया है लेकिन वह भी एक तिहाई सीटें महिलाओं को देने में विफल रही हैं. इस मसले पर सफाई देते हुए तृणमूल कांग्रेस महासचिव मुकुल राय ने प्रेट्र से कहा, ‘‘ यह एक सतत प्रक्रिया है तथा महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने का काम धीरे धीरे होगा. पंचायत चुनाव में हमने महिला उम्मीदवारों को 50 फीसदी नामांकन दिया है. लोकसभा में हमने 11 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया है.’’
पश्चिम बंगाल सरकार के 42 सदस्यीय मंत्रिमंडल में भी केवल तीन महिला मंत्री हैं.
दूसरी ओर , माकपा नेतृत्व ने स्वीकार किया कि पार्टी के लोकसभा उम्मीदवारों की सूची में और अधिक महिलाओं के नाम होने चाहिए थे लेकिन उन्होंने इसके लिए आधारभूत स्तर के जिला नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया. वाम नेतृत्व ने स्वीकार किया कि जमीनी स्तर पर नेतृत्व की मानसिकता नहीं बदली है और वह एक अवरोध का काम कर रही है.
पूर्व मंत्री और माकपा केंद्रीय समिति की सदस्य रेखा गोस्वामी ने कहा, ‘‘ हो सकता है कि हम जिला और पंचायत नेतृत्व को अधिक महिला उम्मीदवारों को नामांकित करने के लिए सहमत करने पर विफल रहे हों.’’
पश्चिम बंगाल में वाम राजनीति का प्रमुख महिला चेहरा गोस्वामी इस बात को रेखांकित करती हैं कि राजनीतिक दल और कुछ नहीं हैं बल्कि समाज का आईना हैं और भारतीय समाज अभी भी पुरुष प्रधान है.उन्होंने कहा कि यह भी सचाई है कि राज्य में वाम दलों को कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और इसी को ध्यान में रखते हुए सूची बनायी गयी है.
हालांकि वाम उम्मीदवार और माकपा केंद्रीय समिति की सदस्य सुहासिनी अली महसूस करती हैं कि पार्टी द्वारा छह महिलाओं का नामांकन एक ‘‘अच्छा और स्वागतयोग्य कदम’’ है.अली ने कहा, ‘‘ पार्टी ने एक अच्छा और स्वागतयोग्य कदम उठाया है. पिछली बार वाम दलों ने कम महिलाओं को उम्मीदवार बनाया था.’’
सुहासिनी अली ने तर्क दिया कि माकपा महिला आरक्षण विधेयक की प्रमुख पैरोकार हो सकती है लेकिन यह अभी तक कानून नहीं बना है. इसलिए पार्टी महिलाओं को एक तिहाई सीटों पर उम्मीदवार बनाए जाने के लिए बाध्य नहीं है.अली ने यह भी कहा कि माकपा के पास 42 में से केवल 32 सीटें हैं और बाकी सीटों पर वाम मोर्चे के अन्य सहयोगी दल चुनाव लड़ते हैं.वाम मोर्चा के अध्यक्ष और माकपा के राज्य सचिव बिमान बोस ने कहा कि अगली बार से पार्टी अधिक महिलाओं को टिकट देगी.
यहां यह उल्लेखनीय है कि महिला आरक्षण विधेयक को वर्ष 2010 में राज्यसभा ने अपनी मंजूरी दी थी लेकिन लोकसभा में यह पारित होने में विफल रहा. इस विधेयक में लोकसभा , राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है.हालांकि भाजपा और कांग्रेस कम संख्या में महिला उम्मीदवारों को टिकट दिए जाने के लिए तृणमूल और वाम दलों की आलोचना करती हैं लेकिन अभी तक के चुनाव में इस संबंध में उनका अपना रिकार्ड भी कोई खास नहीं है .
कांग्रेस ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की सूची जारी नहीं की है लेकिन उसका कहना है कि तृणमूल और माकपा की कथनी और करनी में अंतर है.कांग्रेस सांसद मौसम बेनजीर नूर कहती हैं , ‘‘ हमने अन्य मुद्दों पर भी देखा है कि तृणमूल और माकपा अपने दावों के विपरीत जाकर काम करती रही हैं.’’
लोकसभा में राज्य से कांग्रेस की मात्र दो महिलाएं हैं ,इनमें नूर के अलावा दीपा दासमुंशी शामिल हैं. नूर उम्मीद जताती हैं कि पार्टी आलाकमान लोकसभा चुनाव में और अधिक महिला उम्मीदवारों को मौका देगा.
भाजपा पहले ही पश्चिम बंगाल में 17 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर चुकी है लेकिन उसने इन सीटों में से एक भी सीट पर किसी महिला उम्मीदवर को मौका नहीं दिया है.भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य सिद्धार्थ नाथ सिंह ने प्रेट्र से कहा, ‘‘ हम और महिला उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारेंगे. हम महिला आरक्षण को लेकर गंभीर हैं. हम माकपा और तृणमूल कांग्रेस की तरह नहीं है जो महिला आरक्षण के नाम पर घड़ियाली आंसू बहाती हैं. ’’राजनीतिक विश्लेषक उद्यान बंदोपाध्याय महसूस करते हैं कि महिला आरक्षण विधेयक का समर्थन करने वाले राजनीतिक दल खुद इस बारे में गंभीर नहीं हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘ यह मूल रुप से लिंग द्वारा निर्धारित होता है और पार्टी नेतृत्व पर अधिकतर मामलों में पुरुषों का कब्जा है.’’ राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुनंदा मुखर्जी कहती हैं , ‘‘ पुरुष प्रधान वाम दल महिला सशक्तिकरण की बहुत बातें तो करते हैं लेकिन जब उनके अपने दलों में महिला सशक्तिकरण की बात आती है तो ऐसा करने की उनमें इच्छाशक्ति नहीं होती.’’