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अब किन्नरों के लिए अलग पब्लिक टॉयलेट

कोलकाता: राज्य सरकार ने किन्नरों के लिए अलग टॉयलेट बनाने की घोषणा की है, हालांकि किन्नरों के संगठन एसोसिएशन अॉफ ट्रांसजेंडर/हिजड़ा इन बंगाल (एटीएचबी) ने फैसले का स्वागत किया, लेकिन मांग की कि केवल टॉयलेट बनाने से किन्नरों का कोई विकास नहीं होगा और न ही उन्हें कुछ ज्यादा सुविधा होगी. राज्य सरकार उन लोगों […]

कोलकाता: राज्य सरकार ने किन्नरों के लिए अलग टॉयलेट बनाने की घोषणा की है, हालांकि किन्नरों के संगठन एसोसिएशन अॉफ ट्रांसजेंडर/हिजड़ा इन बंगाल (एटीएचबी) ने फैसले का स्वागत किया, लेकिन मांग की कि केवल टॉयलेट बनाने से किन्नरों का कोई विकास नहीं होगा और न ही उन्हें कुछ ज्यादा सुविधा होगी. राज्य सरकार उन लोगों की मुख्य मांगों को पूरा करे.
मंत्री शशि पांजा ने दी जानकारी
राज्य के महिला व शिशु कल्याण मामलों की मंत्री डॉ शशि पांजा ने बताया कि राज्य सरकार ने किन्नरों के कल्याण के लिए वेस्ट बंगाल वेलफेयर बोर्ड का गठन किया है और उसकी लगातार बैठकें होती हैं. उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार की समाज के अन्य वर्गों की तरह की किन्नरों को भी समानता का अधिकार मिले. उसके मद्देनजर कई कदम उठाये हैं.
उन्होंने शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी को पत्र लिख कर पाठ्यपुस्तकों में किन्नरों को शामिल करने का प्रस्ताव दिया है. फिलहाल पाठ्य पुस्तकों में पुरुष और महिला का ही जिक्र होता है, किन्नरों का कोई जिक्र नहीं होता है. उन्होंने कहा कि फिलहाल विधानसभा अधिवेशन चल रहा है. उसके बाद इस बाबत शिक्षा मंत्री से वह बात करेंगी. इस बीच, उन लोगों ने निर्णय लिया है कि किन्नरों के लिए अलग टॉयलेट बनाया जायेगा. लोकनिर्माण विभाग को प्रस्ताव दिया गया है. प्रत्येक जिले में अलग टॉयलेट बनाया जायेगा. उन्होंने कहा कि यह बहुत ही छोटा कदम है. केवल एक-दो पब्लिक टॉयलेट ही बनाये जायेंगे, लेकिन इससे विजिविलिटी बढ़ेगी.
प्रस्ताव का स्वागत, लेकिन मांगों पर भी ध्यान दे सरकार
दूसरी ओर, एसोसिएशन अॉफ ट्रांसजेंडर/हिजड़ा इन बंगाल (एटीएचबी) की सचिव व किन्नर कल्याण बोर्ड की सदस्य रंजीता सिन्हा ने राज्य सरकार के प्रस्ताव का स्वागत किया है. लेकिन उन्होंने कहा कि चूंकि सरकार के पास पैसे हैं, वह एक पब्लिक टॉयलेट का निर्माण करवा ही सकती हैं. वैसे वे लोग महिलाओं के टॉयलेट का इस्तेमाल करती हैं और कोई महिला अापत्ति भी नहीं करती है. लेकिन उन लोगों की जो ज्वलंत मांगें हैं. उन पर कोई निर्णय नहीं लिया जा रहा है. बेरोजगारी की एक बड़ी समस्या है, लेकिन उस बारे में सरकार कोई काम नहीं कर रही है. अस्पतालों में उन लोगों के लिए एक बेड तक आरक्षित नहीं हैं और न ही उन लोगों के लिए कोई अलग से वार्ड है. यदि उन लोगों को घर से बाहर निकाल दिया जाये, तो उन लोगों के लिए कोई रहने का ठिकाना या शेल्टर नहीं है. न ही रोजगार की कोई व्यवस्था हो रही है और ही पेंशन का ही कोई प्रावधान किया जा रहा है. हाल में ही उन्हें एक बार में जाने से रोक दिया गया, तो सवाल उठता है कि सर्वोच्च न्यायालय ने समानता का निर्देश दिया था. उसका पालन कहां हो रहा है. उन लोगों के अधिकारों का हनन हो रहा है. इस पर रोक लगायी जाये.

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