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ड्रग्स की लत में फंसे लोगों को भीख मांगना भी है मंजूर

एक वर्ष में ड्रग्स बेचने के आरोप में सात महिलाएं गिरफ्तार स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थियों पर ड्रग्स बेचनेवालों की नजर अमित शर्मा कोलकाता : चरस, गांजा, अफीम, हेरोइन या कोकिन का नशा समाज के लिए खतरनाक है. यह समाज का सबसे बड़ा ‘डार्क साइड’ भी है. दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह महानगर में भी इसका […]

एक वर्ष में ड्रग्स बेचने के आरोप में सात महिलाएं गिरफ्तार
स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थियों पर ड्रग्स बेचनेवालों की नजर
अमित शर्मा
कोलकाता : चरस, गांजा, अफीम, हेरोइन या कोकिन का नशा समाज के लिए खतरनाक है. यह समाज का सबसे बड़ा ‘डार्क साइड’ भी है. दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह महानगर में भी इसका जाल फैला हुआ है. ड्रग्स बेचनेवालों के खिलाफ कोलकाता पुलिस समय-समय पर अभियान चलाती है, लेकिन नशे के सौदागर तू डाल-डाल, मैं पात-पात वाली कहावत को चरितार्थ करने में लगे रहते हैं.
ड्रग्स यानी धीमा जहर, जो जीवन को तबाह कर देता है. पुलिस की नजर से बचने के लिए इस कारोबार में बच्चों और महिलाओं तक का इस्तेमाल किया जाता है. बच्चों को गोद में लेकर महिलाएं ड्रग्स बेचतीं गिरफ्तार भी की जा चुकी हैं. छोटे बच्चों की मासूमीयत ड्रग्स बेचनेवाले गिरोह के सबसे बेहतरीन मोहरा होती है. यानी बच्चों के जरिये भी ड्रग्स बेचे जा रहे हैं. साधारणत: बच्चों और महिलाओं पर जल्दी संदेह नहीं होता है, इसलिए ड्रग्स के कारोबारी उन्हें अपनी ढाल बनाते हैं.
स्कलू-कॉलेज विद्यार्थियों को बनाते हैं शिकार
ड्रग्स बेचनेवाले गिरोह के प्रमुख शिकार स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थी होते हैं. सिगरेट व नशा के अन्य साधन के माध्यम से किशोरों व युवाओं को नशे की लत लगायी जाती है. नशा का आदी बनने के बाद ड्रग्स के लिए युवा कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं.
क्या अभिभावक अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं :
मनोवैज्ञानिक ने कहते हैं कि भावनात्मक संकट (इमोशन क्राइसिस) युवाओं के ड्रग्स के चंगुल में फंसने का सबसे बड़ा कारण है. अभिभावक अपने बच्चों को सफल इनसान बनाना चाहते हैं. इसके लिए सारी जरूरतें पूरी करते हैं, लेकिन भावनात्मक सहयोग नहीं मिलने पर वे किसी ऐसे व्यक्ति के करीब जाना चाहते हैं, जो उन्हें समझे. इसी का फायदा ड्रग्स बेचनेवाले गिरोह के लोग उठाते हैं. यानी वे ड्रग्स देकर उन्हें समझाने की कोशिश करते हैं कि इससे उनका दर्द दूर होगा. इस प्रकार धीरे-धीरे ड्रग्स के चंगुल में फंसनेवाला उनकी अंगुलियों की कठपुतली बन जाता है.
भीख मांगना अंतिम चरण :
रिसर्च के दौरान श्यामबाजार, रासबिहारी, बड़ाबाजार, नॉर्थ पोर्ट के फूल बागान, इकबालपुर का दौरा किया गया. वहां कई ऐसे लोगों को पाया गया, जो ड्रग्स के लिए भीख मांग रहे थे.
मनोवैज्ञानिक श्री हंस ने कहा कि जब ड्रग्स के लिए रुपये नहीं जुटते हैं, तो नशे की लत में फंसा व्यक्ति चोरी से लेकर बड़ा अपराध भी कर सकता हैं. उसका मनोभाव कुछ ऐसा हो जाता है कि उसे भीख मांगना भी गलत नहीं लगता.
पुनर्वास सेंटर जाना जरूरी :
नशे की लत छुड़ाने के लिए परिजनों का सहयोग काफी जरूरी होता है. ड्रग्स की लत में फंसे व्यक्ति को कम से कम तीन से छह महीने पुनर्वास सेंटर में रहना जरूरी होता है. मनोचिकित्सक की निगरानी व कुछ दवाइयों के जरिये पीड़ित का इलाज किया जाता है.
गार्डेनरीच, मटियाबुर्ज, बेलियाघाटा, सियालदह रेलवे स्टेशन के आसपास, वाटगंज, साउथ पोर्ट, राजाबाजार, जोड़ासांको, बालीगंज रेलवे स्टेशन के आसपास, गरियाहाट के गरचा इलाके समेत महानगर के कई इलाकों में ड्रग्स बेची जाती है. बताया जा रहा है कि एक पुड़िया ड्रग्स की कीमत तीन महीने पहले लगभग 50 से 60 रुपये थी, जो अब 100 से 110 रुपये में बिकती है. एक पुड़िया बेचने के एवज में बच्चों और महिलाओं को 20 से 30 रुपये मिलते हैं. कुछ बच्चे अपने अभिभावक के कहने पर धंधा करते हैं, क्योंकि उन्हें रुपयों की जरूरत होती है.
नशे की लत छुड़ाना अहम : कोलकाता पुलिस के अतिरिक्त आयुक्त (5) विशाल गर्ग ने कहा कि ड्रग्स बेचनेवाले गिरोह के लोगों को गिरफ्तार करने के लिए समय-समय पर पुलिस की ओर से विशेष अभियान चलाया जाता है.
स्कूल-कॉलेज के आसपास भी अभियान चलाये जाते हैं. ड्रग्स बेचनेवालों की गिरफ्तारी के अलावा ड्रग्स के चंगुल में जकड़े लोगों की लत छुड़ाना भी महत्वपूर्ण है. इसके लिए पुलिस विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के साथ जागरूकता अभियान चलाती है.
स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थियों को ड्रग्स के नुकसान के बारे में बताया जाता है. पुनर्वास सेंटर के जरिये कई लोगों की नशे की लत को छुड़ाना संभव भी हुआ है. वर्ष 2016 में महानगर में ड्रग्स बेचने के 63 मामले दर्ज हुए. लगभग 79 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें सात महिलाएं थीं.
क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक : मनोवैज्ञानिक अभिषेक हंस कहते हैं कि वर्ष 2012 में कोलकाता पुलिस और कलकत्ता विश्वविद्यालय की ओर से किये गये एक रिसर्च में वे भी शामिल थे. रिसर्च के आधार पर उनका मानना है कि चरस, गांजा, अफीम, हेरोइन की तरह ही सिगरेट और शराब को भी ड्रग्स की श्रेणी में रखना उचित होगा. इसकी वजह से ही स्कूल-कॉलेज के काफी विद्यार्थी इसकी लत में पड़ते जा रहे हैं.
वर्ष 2016 में महानगर में ड्रग्स बेचने के मामले और गिरफ्तारी
महीना कुल मामले गिरफ्तारी
जनवरी 2 2
फरवरी 5 5
मार्च 7 8
अप्रैल 5 6
मई 4 4
जून 6 10
जुलाई 5 8
अगस्त 4 7
सितंबर 4 5
अक्तूबर 4 5
नवंबर 5 6
दिसंबर 12 13

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