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खुदकुशी में भारत दुनिया में 43 वें स्थान पर, हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति करता है आत्महत्या

खुदकुशी के मामले में विश्व में भारत 43 वें स्थान पर एक लाख लोगों में से 11 करते हैं आत्महत्या 33 प्रतिशत जहर खाकर व 31 प्रतिशत फांसी लगा कर देते हैं जान कोलकाता : भारत में आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं. खासकर युवाओं में आत्महत्या की मनोवृत्ति तेजी से बढ़ रही है. इसकी […]

खुदकुशी के मामले में विश्व में भारत 43 वें स्थान पर
एक लाख लोगों में से 11 करते हैं आत्महत्या
33 प्रतिशत जहर खाकर व 31 प्रतिशत फांसी लगा कर देते हैं जान
कोलकाता : भारत में आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं. खासकर युवाओं में आत्महत्या की मनोवृत्ति तेजी से बढ़ रही है. इसकी वजह मानसिक अवसाद को बताया जा रहा है. आत्महत्या भारत समेत पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बनी हुई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार हरेक साल करीब एक मिलियन लोग आत्महत्या करते हैं, जबकि 20 मिलियन लोग खुदकुशी की कोशिश करते हैं. विश्व में प्रत्येक 40 सेकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है, जबकि प्रत्येक तीन सेकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या की कोशिश करता है.
1998 तक विश्व में 1.8 फीसदी लोग आत्महत्या करते थे, लेकिन 2020 तक यह बढ़ कर 2.4 फीसदी तक पहुंच सकता है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, आत्महत्या के मामले में भारत का विश्व में 43वां स्थान है. भारत में प्रत्येक एक लाख की आबादी में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है. आंकड़ों पर जायें तो विश्व में बुजुर्ग अधिक आत्महत्या करते हैं, लेकिन भारत में ठीक उसके उलट मामला है. यहां युवा वर्ग आत्मघाती कदम उठा रहा है. इसकी वजह मानसिक अवसाद को माना जा रहा है. आज के मशीनी युग में मानसिक तनाव नहीं झेल पाने की वजह से युवा वर्ग आत्महत्या कर रहे हैं. भारत में खुदकुशी के मामले क्यों बढ़ रहे हैं, इस पर एसएसकेएम के मनोरोग विशेषज्ञ प्रो. डॉ इंद्रनील साहा ने जानकारी दी.
10 से 44 वर्ष के युवा करते हैं अधिक खुदकुशी
डॉ साहा ने बताया कि अलग-अलग वजह से लोग आमहत्या या ऐसा करने का प्रयास करते हैं. वैश्विक स्तर पर युवा वर्ग अधिक आत्महत्या कर रहे हैं. 15 से 44 वर्ष के लोग अधिक आत्महत्या कर रहे हैं. इस मामले में 10 से 24 वर्ष के लोग दूसरे स्थान पर हैं. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार विश्व में वर्ष 1950 से 1995 के बीच आत्महत्या के मामलों में करीब 60 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
लड़कियां आत्मघाती कदम उठाने में आगे
भारत में छह फीसदी से अधिक लोगों की मौत आत्महत्या करने से होती है. लड़कों की तुलना में लड़कियां ऐसा आत्मघाती कदम उठाने में आगे रहती हैं. प्रेम में विफलता, शादी से पहले गर्भवती होने, एमएमएस के जरिये ब्लैकमेलिंग का शिकार होने, रेप, दहेज प्रथा के कारण लड़कियां आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो रही हैं. शिक्षा के अभाव में भी देश में आत्महत्या करने की मनोवृत्ति बढ़ रही है.
हमेशा मरने के लिए ही नहीं करते आत्महत्या का प्रयास
डॉ साहा के अनुसार लोग हमेशा मरने के लिए ही आत्महत्या का प्रयास नहीं करते हैं. सुसाइड का तरीका और अंदाज पर निर्भर करता है कि आत्महत्या करनेवाला मरना चाहता था या नहीं. कई बार लोग दूसरे को सबक सिखाने, भयभीत करने अथवा पीड़ा देने के मकसद से आत्महत्या करने की कोशिश करते है‍ं. इसे मनोचिकित्सकों की भाषा में डेलिबरेट सेल्फ हार्म (जानबूझकर खुद को नुकसान पहुंचाना) कहते हैं.
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 33 फीसदी लोग विषाक्त पदार्थ खाकर, 31 फीसदी लोग फांसी लगा कर, 6.1 फीसदी नदी में कूद कर और 1.5 फीसदी लोग ऊंचाई से कूद कर अपनी जान दे देते हैं. भारत में डिप्रेशन (मानसिक दबाव), स्क्रीजोफिनिया (एक प्रकार का पागलपन), शराब की लत के कारण लोग आत्महत्या कर रहे हैं. साथ ही बॉर्डर लाइन पर्सनैलिटी डिसॉर्डर, कंडक्ट डिसॉर्डर अादि की वजह से आत्महत्या की कोशिश करते हैं.
अधिकतर मामलों में सुसाइड करनेवाला व्यक्ति पहले एक संकेत देता है. जैसे आत्महत्या की धमकी देना, जीवन से परेशान रहना अादि. लेकिन कई बार युवाओं में ऐसा कोई लक्षण नहीं देखा जाता है. मस्तिष्क में पाया जाने वाला सेरीब्रोस्पाइनल फ्लूइड में 5एचआइएए लेबल कम होने पर आत्महत्या करने की संभावना अधिक रहती है. मानसिक तनाव दूर रखने के लिए स्कूल से ही प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए. मानसिक दबाव दूर रखने के लिए दफ्तर का काम घर में ना करें.
प्रो डॉ इंद्रनील साहा, मनोरोग विशेषज्ञ (एसएसकेएम)

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