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कंटिन्यूइंग मेडिकल एजुकेशन में बंगाल पीछे
कोलकाता : भारत में मरीजों की संख्या के हिसाब से चिकित्सक काफी कम है. देश भर में करीब 15 लाख पंजीकृत डॉक्टर हैं. डॉक्टरों की संख्या को बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार व विभिन्न राज्य सरकार प्रयास कर रही है. अगर पश्चिम बंगाल की बात की जाये तो राज्य में एमबीबीएस पाठ्यक्रम में लगभग 2500 […]
कोलकाता : भारत में मरीजों की संख्या के हिसाब से चिकित्सक काफी कम है. देश भर में करीब 15 लाख पंजीकृत डॉक्टर हैं. डॉक्टरों की संख्या को बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार व विभिन्न राज्य सरकार प्रयास कर रही है. अगर पश्चिम बंगाल की बात की जाये तो राज्य में एमबीबीएस पाठ्यक्रम में लगभग 2500 मेडिकल सीट हैं.
सीमित संसाधनों के बीच राज्य सरकार भी मेडिकल सीट बढ़ाने की कोशिश कर रही है. इस बीच केंद्र की एक निर्देशिका ने पश्चिम बंगाल सरकार की नींद उड़ा दी है. केंद्र सरकार ने मेडिकल पास डॉक्टरों के नॉलेज को टेस्ट करने के लिए परीक्षा लेने का फैसला लिए है. देश के सभी चिकित्सकों को इस परीक्षा में अनिवार्य रूप से बैठना होगा. परीक्षा में असफल रहनेवाले चिकित्सकों की रजिस्ट्रेशन नंबर रद्द हो सकती है. केंद्र के इस फैसले से इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) भी सकते हैं.
आईएमए का दावा है कि डॉक्टरों को चिकित्सा से जुड़े जानकारियों से अपडेट करने के लिए विभिन्न राज्य सरकारों व आईएमए के संयुक्त तत्वावधान में कंटिन्यूइंग मेडिकल एजुकेशन (सीएमई) कोर्स कराया जा रहा है. इसके तहत मान्यता प्राप्त विभिन्न चिकित्सक संगठनों द्वारा कराये जाने वाले सेमिनार में हिस्सा लेना होता है. पांच वर्ष में करीब 1500 घंटे के सेमिनार में हिस्सा लेना होता है. आईएमए के पूर्व राज्य अध्यक्ष डॉ प्रदीप कुमार नेमानी ने बताया कि 2010 से इस सीएमई को चालू किया गया है, लेकिन बंगाल के चिकित्सक इसमें रुचि नहीं दिखा रहे हैं.
उन्होंने बताया कि बंगाल में करीब 52 हजार पंजीकृत चिकित्सक हैं, लेकिन मात्र 15 से 16 हजार चिकित्सक ही सीएमई के लिए अपना नाम दर्ज करवाये हैं. वहीं मध्य प्रदेश, उत्तराखंड व महाराष्ट्र की स्थिति काफी बेहतर है.उन्होंने कहा कि केंद्र को परीक्षा की जगह सीएमई पर जोर देना चाहिए, क्योंकि देश के 15 लाख चिकित्सकों को उपरोक्त परीक्षा में बैठाना संभव नहीं.
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