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जहां बेड के लिए ढीली करनी पड़ती है जेब

शिव कुमार राउत कोलकाता : सरकारी अस्पतालों में अव्यवस्था और भ्रष्टाचार किसी से छिपा नहीं है. मरीज की भरती, बेड दिलाने आदि कामों के लिए रिश्वत देनी पड़ती है. बेड पाने के लिए 100 से 250 रुपये तक देने पड़ते हैं. कॉलेज स्क्वायर स्थित देश का सबसे पुराना अस्पताल कलकत्ता मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल भी […]

शिव कुमार राउत

कोलकाता : सरकारी अस्पतालों में अव्यवस्था और भ्रष्टाचार किसी से छिपा नहीं है. मरीज की भरती, बेड दिलाने आदि कामों के लिए रिश्वत देनी पड़ती है. बेड पाने के लिए 100 से 250 रुपये तक देने पड़ते हैं.

कॉलेज स्क्वायर स्थित देश का सबसे पुराना अस्पताल कलकत्ता मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल भी इससे अछूता नहीं है. करीब 181 वर्ष पुराना यह अस्पताल कभी एशिया में यूरोपियाई चिकित्सा का दूसरा महाविद्यालय हुआ करता था. वर्तमान में कई खामियों की वजह से इसकी छवि धूमिल हो रही है.

किराये पर मिलती है चादर

गंभीर रूप से बीमार मरीज की देखरेख के लिए अस्पताल में उसके एक परिजन को ठहरना पड़ता है. वह मरीज के साथ वार्ड में ठहरते हैं. रात में जमीन पर सोने के लिए ग्रुप डी स्टॉफ अवैध तरीके से उन्हें चादर मुहैया कराते हैं. इसके बदले 20 से 30 रुपये लेते हैं.

जमकर होती है धांधली : समुचित इलाज की आस लिए बंगाल ही नहीं बल्कि बिहार, झारखंड समेत अन्य राज्यों से भी मरीज यहां आते हैं. अस्पताल के कुछ ग्रुप डी कर्मचारियों की मिलीभगत से यहां बेड की कालाबाजारी होती है. मेडिसीन, पेडियाट्रीक एवं आपातकालीन विभाग में बेड के अभाव में मरीज को जमीन पर लेटाकर इलाज किया जाता है. मरीज के परिजनों की आर्थिक स्थिति का अंदाजा लगाकर उन्हें बेड देने के बदले रुपये ऐंठे जाते हैं.

बेड के लिए 100 से 200 रुपये देने पड़ते हैं. सबसे अधिक घांधली आर्थोपेडिक के आपातकालीन विभाग में है. यहां मरीजों को लंबे समय तक भरती रहना पड़ सकता है. आरोप है कि ग्रुप डी कर्मचारी एडमिशन इंचार्ज की मदद से मरीजों को अस्पताल में भरती करवाते हैं और बदले में मोटी रकम वसूलते हैं. एक मरीज को भरती कराने के बदले दो से ढाई हजार रुपये वसूले जाते हैं.

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