कोलकाता : चुनाव में तृणमूल कांग्रेस अकेले प्रतिद्वंद्विता कर रही है, लेकिन चुनाव के पूर्व वामो व कांग्रेस जिस तरह से पास आ रहे हैं. सीटों का बंटवारा हो रहा है. इससे जीत के प्रति फिर से आशावादी तृणमूल कांग्रेस का खेल बिगड़ सकता है. हाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व अन्य तृणमूल नेताओं के […]
कोलकाता : चुनाव में तृणमूल कांग्रेस अकेले प्रतिद्वंद्विता कर रही है, लेकिन चुनाव के पूर्व वामो व कांग्रेस जिस तरह से पास आ रहे हैं. सीटों का बंटवारा हो रहा है. इससे जीत के प्रति फिर से आशावादी तृणमूल कांग्रेस का खेल बिगड़ सकता है.
हाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व अन्य तृणमूल नेताओं के बयान से भी पार्टी की असहजता साफ झलक रही है. चुनाव आयोग द्वारा छह चरणों में सात दिन चुनाव कराने की घोषणा ने जले पर नमक का काम किया है. चुनाव के पहले उभरी नयी परिस्थिति में तृणमूल कांग्रेस की बौखलाहट साफ झलक रही है. समझौते के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस की बयानबाजी तेज हो गयी है. वाम मोरचा शासन के समय की घटनाओं सिंगूर, नंदीग्राम आदि के पोस्टर लगाये जा रहे हैं. 2011 के विधानसभा चुनाव में वाम मोरचा के 34 वर्षों के शासन का खात्मा कर तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी के नेतृत्व में मां, माटी, मानुष की सरकार बनी थी. 2011 में तृणमूल को कांग्रेस के साथ मिल कर चुनाव लड़ना पड़ा था. तृणमूल ने 226 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इसमें उसे 38.93 फीसदी मत मिले और 184 सीटों पर जीत हासिल की. वाम मोरचा ने 291 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इसमें 40.77 फीसदी मत के साथ 62 सीटों पर जीत हासिल किया.
कांग्रेस ने तृणमूल कांग्रेस के साथ मिल कर चुनाव लड़ा. उसने 66 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा किये. इनमें उसे 9.09 फीसदी मत मिले और 42 सीटों पर जीत हासिल की. भाजपा ने 289 सीटों पर चुनाव लड़ा. उसे 4.06 फीसदी मत मिले, लेकिन कोई सीट नहीं मिली, हालांकि बाद में बशीरहाट विधानसभा उपचुनाव में भाजपा के उम्मीदवार शमिक भट्टाचार्य विजयी हुए और विधानसभा में भाजपा के एक मात्र विधायक बने. हालांकि विधानसभा चुनाव कांग्रेस व तृणमूल ने साथ मिल कर लड़ा था, लेकिन यूपीए (दो) सरकार से तृणमूल कांग्रेस के समर्थन वापसी के बाद राज्य से भी कांग्रेस तृणमूल सरकार से हट गयी. उसके बाद से तृणमूल कांग्रेस ने अकेले ही पंचायत चुनाव, नगरपालिका चुनाव व लोकसभा चुनाव लड़ी और उसे बढ़त मिली. कांग्रेस व वाम मोरचा भी अलग-अलग लड़ी और उनके निर्वाचित सदस्यों की संख्या घटती गयी. कांग्रेस व वाम मोरचा के कई निर्वाचित विधायक व प्रतिनिधि तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये.
पंचायत चुनाव, लोकसभा चुनाव व नगरपालिका चुनाव में यदि तृणमूल कांग्रेस का प्रदर्शन देखें, तो यह साफ लगता है कि विधानसभा चुनाव में तृणमूल की जीत आसान होगी, क्योंकि लोकसभा चुनाव 2014 में 42 सीटों में से तृणमूल कांग्रेस 34 सीटें हासिल की थी. वोट फीसदी 39.86 फीसदी था. विधानसभा क्षेत्र के हिसाब से उसके सीटों की संख्या 214 होनी चाहिए थी. वहीं, वाम मोरचा 29.76 फीसदी मत के साथ दो लोकसभा सीट (विधानसभा क्षेत्र के अनुसार 28 सीटें), कांग्रेस 8.68 फीसदी मत के साथ चार लोकसभा सीटें (27 विधासनभा सीटें) और भाजपा 17.01 फीसदी मत के साथ दो सीटें (25 विधानसभा सीटें) पर जीत हासिल की. अगर इस आंकड़े से मापदंड तय किया जाये, तो तृणमूल की जीत तय लगती है, लेकिन इस चुनाव के पूर्व राजनीतिक परिस्थिति में बदलाव आया है.
कांग्रेस व वाम मोरचा नजदीक आये हैं. लोकसभा चुनाव के दौरान पूरे देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हवा थी. इसका लाभ राज्य में भाजपा को मिला था, निगम चुनाव में भाजपा के मतों का प्रतिशत का घटना इसका उदाहरण है. अब जब कांग्रेस व वाम मोरचा के बीच अलिखित समझौता हो रहा है. उसमें वाम मोरचा के 29.76 मत और कांग्रेस के 8.68 फीसदी मत आपस में मिलते हैं और तृणमूल विरोधी मत एकजुट होता है, तो मत का प्रतिशत 38.44 फीसदी के आसपास होने की संभावना है. लोकसभा चुनाव 2014 में तृणमूल के मतों का प्रतिशत 39.86 फीसदी था. ऐसी स्थिति में वामो व कांग्रेस के नजदीक आने पर विधानसभा चुनाव रोचक हो सकता है तथा यह तृणमूल कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ा कर सकता है.