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सरकार नहीं मानती भूख से हुई हैं मौतें

संकट : चाय बागानों में नहीं थम रहा मौत का सिलसिला, और पांच श्रमिकों की मौत एक तरफ उत्तर बंगाल के चाय बागानों में भूख और इलाज के अभाव में श्रमिक लगातार दम तोड़ रहे हैं. लेकिन मंगलवार को राज्य सरकार ने साफ कह दिया कि किसी श्रमिक की भूख या इलाज के अभाव में […]

संकट : चाय बागानों में नहीं थम रहा मौत का सिलसिला, और पांच श्रमिकों की मौत
एक तरफ उत्तर बंगाल के चाय बागानों में भूख और इलाज के अभाव में श्रमिक लगातार दम तोड़ रहे हैं. लेकिन मंगलवार को राज्य सरकार ने साफ कह दिया कि किसी श्रमिक की भूख या इलाज के अभाव में मौत नहीं हुई है.
राज्य से श्रम मंत्री मलय घटक ने िवधानसभा में सवालों के जवाब में कहा िक चाय बागानों में भूख से किसी की मौत होने का कोई प्रमाण नहीं है. उधर, िवभिन्न कारणों से पांच और श्रमिकों की मौत हो गयी है.
जलपाईगुड़ी : चाय बागानों में मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. पांच और चाय श्रमिकों के मरने की सूचना है. राज्य सरकार के रेडबैंक चाय बागान में पिछले तीन दिनों में तीन श्रमिकों की मौत हुई है. जानकारी के मुताबिक, मृतकों के नाम महेश महली (42), सीता उरांव (50) एवं कुलबहादुर गुरूंग (61) हैं.
ताबड़तोड़ तीन श्रमिकों की मौत से रेडबैंक चाय बागान का माहौल काफी गरम हो गया. महेश महली ने खुद को आग के हवाले कर आत्मदाह कर िलया. बाकी दो श्रमिकों की मौत बीमारी की वजह से हुई है. सीता उरावं व कुलबहादुर गुरूंग के परिवार का दावा है कि लंबे समय से बीमार रहने के बाद भी उचित चिकित्सा नहीं मिलने से उनकी मौत हुई है.
उधर, डंकन ग्रुप के बीरपाड़ा एवं धूमचिपाड़ा चाय बागानों में दो श्रमिकों की मौत हुई है. बीरपाड़ा चाय बागान के बिजली लाइन की निवासी सुमिता देवी (35) एवं धूमचिपाड़ा चाय बागान के चर्च लाइन निवासी स्थायी श्रमिक दम्बिक खेरिया (45), दोनों की ही मृत्यु बीमारी से हुई.
बागान सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, रेडबैंक चाय बागान का अस्थायी श्रमिक महेश महली शालवनी डिवीजन का निवासी था. मृत महेश के घर में पिछले कुछ दिनों से अशांति चल रही थी. रविवार की सुबह अपने घर में ही उसने अपने शरीर में आग लगा ली. घायल अवस्था में महेश को जलपाईगुड़ी जिला अस्पताल में भरती कराया गया, लेकिन सोमवार को उसकी मौत हो गयी.
दूसरी ओर, सीता उरांव रेडबैंक चाय बागान की सेंट्रल डिवीजन की अस्थायी श्रमिक थी. पिछले कई महीनों से वह कई रोगों से ग्रसित थी. जानकारी के मुताबिक सीता के शरीर का एक हिस्सा लकवा मारने से बेकार हो चुका था. बीमार होने की वजह से वह घर में ही बिस्तर पर लेटी रहती थी. सोमवार की रात उसकी मौत हो गयी. आस-पड़ोस के लोगों का कहना है कि चाय बागान बंद होने की वजह से सीता का परिवार आर्थिक समस्या से जूझ रहा था.
इसके अतिरिक्त रविवार को रेडबैंक चाय बागान के अपर लाइन निवासी श्रमिक कुलबहादुर गुरूंग की मौत बीमारी की वजह से हो गयी. परिवार का कहना है कि काफी दिनों से कुलबहादुर गंभीर बीमारियों से पीड़ित था. चिकित्सा के लिए बाहर ले जाने की आवश्यकता होने के बाद भी रुपयों के अभाव में उसकी चिकित्सा नहीं हो पायी.
उधर, बीरपाड़ा चाय बागान निवासी बृंदा ठाकुर की पत्नी सुमिता देवी पिछले कई दिनों से शारीरिक रूप से अस्वस्थ चल रही थी.
बृंदा का कहना है कि चाय बागान बंद होने से रुपये-पैसे का काफी अभाव हो चला था. पैसे के अभाव में सुमिता की चिकित्सा नहीं हो पायी जिसकी वजह से उसकी मौत हो गयी. वहीं सोमवार की रात अलीपुरद्वार के धूमचिपाड़ा चाय बागान का चर्च लाइन निवासी श्रमिक दम्बिक खेरिया गंभीर रूप से अस्वस्थ हुआ. रात में ही अस्पताल ले जाने पर चिकित्सकों ने उसे मृत करार दिया.
क्या कहते हैं मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी
इधर, चिकित्सा व्यवस्था के अभाव में हुई चाय श्रमिकों की मृत्यु के दावे को आधारहीन बताते हुए जिला मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी प्रकाश मृधा ने बताया कि बंद व अचलावस्था में पड़े प्रत्येक चाय बागान में सरकारी एंबुलेंस परिसेवा है. प्रत्येक चाय बागानों में स्वास्थ्य विभाग की ओर से चिकित्सा शिविर लगाकर श्रमिकों की स्वास्थ्य चिकित्सा नियमित की जा रही है. अभी तक चिकित्सा व्यवस्था की वजह से एक भी चाय श्रमिक की मौत ना होने का दावा भी उन्होंने किया.
भुखमरी से मौत का प्रमाण नहीं : मंत्री
कोलकाता. राज्य सरकार ने भुखमरी से चाय श्रमिकों की मौत के आरोप को पूरी तरह से खारिज कर दिया है. मंगलवार को विधानसभा में प्रश्नोत्तरकाल में एक सवाल के जवाब में राज्य के श्रम मंत्री मलय घटक ने साफ कहा कि कि उत्तर बंगाल के चाय बागानों में भुखमरी से एक भी चाय श्रमिक की मौत नहीं हुई है.
उन्होंने कहा कि न तो भुखमरी से और न ही चिकित्सा के अभाव में किसी भी चाय श्रमिक की मौत हुई है. गौरतलब है कि हाल में उत्तर बंगाल के चाय बागानों में प्रतिदिन भुखमरी से चाय श्रमिकों की मौत के आरोप लगे हैं. इसके खिलाफ सोमवार को कांग्रेस, एसयूसीअाइ व भाजपा ने विधानसभा से बहिष्कार किया था तथा बंद चाय बागानों के श्रमिकों को मदद देने व केंद्र सरकार से बागानों का अधिग्रहण करने की मांग की थी.
घटक ने कहा कि भुखमरी से चाय श्रमिकों की मौत होने का कोई प्रमाण नहीं है. उन्होंने कहा कि 43 बंद चाय बागानों को चिन्हित किया गया है. बंद चाय बागानों के श्रमिकों को मिड डे मील, दो रुपये किलो की दर से चावल के साथ दवा दी जा रही है. उन्होंने कहा कि वाममोरचा के 34 वर्षों के शासनकाल में चाय बागान श्रमिकों का पारिश्रमिक नहीं बढ़ाया गया था, लेकिन तृणमूल कांग्रेस के साढ़े चार वर्षों के शासन काल में चाय बागान श्रमिकों की मजदूरी बढ़ायी गयी है.
कांग्रेस विधायक दल के नेता मोहम्मद सोहराब ने भुखमरी से चाय श्रमिकों की मौत होने के मुद्दे पर विधानसभा में सर्वदलीय कमेटी गठित कर जांच कराने की मांग की. इस मांग को विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी ने खारिज करते हुए कहा कि यह प्रश्नोत्तरकाल चल रहा है. इसमें किसी विषय पर बहस नहीं हो सकती है.
यदि वे लोग सर्वदलीय कमेटी गठित कर जांच चाहते हैं, तो इसके लिए अलग से प्रस्ताव दें. कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक डॉ मानस रंजन भुइयां ने कहा कि राज्य सरकार असहिष्णु हो गयी है. कांग्रेस ने भुखमरी से चाय श्रमिकों की मौत के मामले में सर्वदलीय कमेटी गठित करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन सरकार स्वीकार नहीं कर रही है. चाय बागानों में श्रमिकों की लगातार भुखमरी से मौत हो रही है, लेकिन राज्य सरकार उसे स्वीकार नहीं कर रही है.

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