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स्टेशन पर पड़ी हेरोइन व डेंड्राइट की लत
कोलकाता: सियालदह स्टेशन के फुटपाथ पर खाना, सोना आैर नशा करके इधर-उधर सो जाना ही जिंदगी थी. नशे की ऐसी लत पड़ गयी थी कि हेरोइन नहीं मिलने पर पूरा शरीर ऐंठ जाता आैर दिमाग काम करना बंद कर देता. एक बार तो क्रोध में आकर हाथ की नस काट डाली. बांह पर आज भी […]
कोलकाता: सियालदह स्टेशन के फुटपाथ पर खाना, सोना आैर नशा करके इधर-उधर सो जाना ही जिंदगी थी. नशे की ऐसी लत पड़ गयी थी कि हेरोइन नहीं मिलने पर पूरा शरीर ऐंठ जाता आैर दिमाग काम करना बंद कर देता. एक बार तो क्रोध में आकर हाथ की नस काट डाली. बांह पर आज भी कटने के निशान माैजूद हैं. यह कहानी केवल आबिद हुसैन (नाम बदला हुआ) की नहीं, बल्कि ऐसे कई युवाओं व बच्चों की है, जो सियालदह व हावड़ा स्टेशनों पर टाली खींचने, मछली चुराने व कचरा बीनने का काम करते-करते पत्ताखोर (नशेड़ी) बन गये. ऐसे कई युवाओं के हाथ पर कटने के निशान आज भी माैजूद हैं.
आबिद ने बताया कि वह कक्षा 2 तक ही पढ़ा है. स्टेशन पर टॉली खींचने के काम के दाैरान नशेड़ियों की संगत में रहकर वह भी नशेड़ी बन गया. वहीं 14 साल के रहमान (नाम बदला हुआ) ने बताया कि पिताजी नशा करते थे. बस्ती में आसपास के लड़के भी नशा करते थे. बीड़ी, सिगरेट के बाद वह भी इस माहाैल में हेरोइन का नशा करने लग गया. कई बार घर से भाग गया. चोरी भी की. 12 साल के गणेश ने बताया कि हावड़ा स्टेशन पर वह बोतल चुनने का काम करता था. वहीं पर नशा करना सीखा. नशे की लत ने छोटी सी उम्र में ही इन गरीब, फुटपाथी बच्चों को नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर कर दिया. इनमें से कुछ युवाओं ने हेरोइन तो कुछ ने ड्रेनाइट लेने की बात बतायी. बड़े लड़के टीडीसी इंजेक्शन लेते आैर नशे में चूर हो जाते. नशे की गिरफ्त से इन युवाओं को बाहर निकालकर मुक्ति संस्था ने जीने का एक नया मकसद दिया है.
इन बच्चों ने बताया कि इस संस्था के होम में रह कर वे न केवल शिक्षा से जुड़े बल्कि अपने हुनर को भी पहचान पाये हैं. उस नारकीय जीवन को भूलकर वे यहां खेलकूद, संगीत, अभिनय, कम्प्यूटर ट्रेनिंग व अन्य रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण ले रहे हैं.
इस विषय में मुक्ति रीहैबिलिटेशन सेंटर के सचिव के. विश्वनाथ ने बताया कि नशा करते-करते ये लोग केमिकल्स पर निर्भर हो जाते हैं आैर उनकी मानसिक स्थिति बिगड़ने लगती है. ऐसे अस्वस्थ लोगों के पुनर्वास व उनको स्वस्थ जीवन देने के लक्ष्य से 2002 में संस्था की स्थापना की गयी. सियालदह रेलवे स्टेशन पर उनका एक ड्रॉप इन सेंटर भी बनाया गया है, जिसके जरिये नशे के आदी फुटपाथी बच्चों को वहां से निकाल कर जीवन की मुख्यधारा से जोड़ा जा सके.
सर्वे के दाैरान स्टेशन पर कई ऐसे बच्चे भी मिले, जो अपराध में लिप्त होने के साथ-साथ याैन उत्पीड़न के भी शिकार थे. यूएन कन्वेंशन 1989 के नियमानुसार ये बच्चे संरक्षण, भोजन, शिक्षा व हेल्थकेयर जैसी जरुरी सुविधाओं से वंचित थे. ऐसे बच्चों के लिए राजारहाट में 30 बेड वाला नशा मुक्ति केंद्र बनाया गया है, जहां उनका उपचार व काउंसेलिंग की जाती है. संस्था कई जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित करती है. यहां फॉरमल शिक्षा के अलावा कम्प्यूटर की ट्रेनिंग भी दी जाती है. ये बच्चे एपीजे, स्कूल सॉल्टलेक में फिलहाल फॉरमल शिक्षा ले रहे हैं. कुछ युवा ड्राईवरी, कम्प्यूटर, अभिनय की ट्रेनिंग लेकर रोजगार हासिल कर रहे हैं.
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