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सभी पक्षों के साथ होगी बैठक
ईस्ट-मेट्रो विवाद दूर करने के लिए हाइकोर्ट की पहल कोलकाता : इस्ट-वेस्ट मेट्रो के तहत हावड़ा मैदान से राइटर्स बिल्डिंग तक के रूट के विवाद को सुलझाने के लिए कलकत्ता हाइकोर्ट ने पहल की है. न्यायाधीश दीपंकर दत्त सोमवार को कोलकाता पुलिस के डीसी ट्रैफिक व परिवहन सचिव के अलावा मामले से जुड़े सभी पक्षों […]
ईस्ट-मेट्रो विवाद दूर करने के लिए हाइकोर्ट की पहल
कोलकाता : इस्ट-वेस्ट मेट्रो के तहत हावड़ा मैदान से राइटर्स बिल्डिंग तक के रूट के विवाद को सुलझाने के लिए कलकत्ता हाइकोर्ट ने पहल की है. न्यायाधीश दीपंकर दत्त सोमवार को कोलकाता पुलिस के डीसी ट्रैफिक व परिवहन सचिव के अलावा मामले से जुड़े सभी पक्षों के अधिकारियों के साथ बैठक करेंगे.
उन्होंने अतिरिक्त एडवोकेट जनरल लक्ष्मी गुप्ता को कहा है कि यदि राज्य के नगर विकास मंत्री फिरहाद हकीम के लिए उपस्थित होना संभव हो, तो वह भी बैठक में आ सकते हैं. अदालत ने पुराने रूट पर ही यह परियोजना हो सकती है या नहीं, इसके लिए राज्य सरकार से विचार करने को कहा है. बुधवार को निमार्णकारी संस्था द्वारा दायर मामले पर केंद्र सरकार के अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल कौशिक चंद्र ने कहा कि नये रूट के लिए राशि मंजूर करने के लिए केंद्र सरकार सैद्धांतिक रूप से तैयार है. इसमें 764 करोड़ रुपये लगेंगे, लेकिन इसके लिए कैबिनेट की मंजूरी लगेगी.
कौशिक चंद्र ने अदालत में यह भी कहा कि निर्माणकारी संस्था को नये रूट के तहत काम शुरू कर देना चाहिए. कम से कम स्टेशन बना देना चाहिए. तब न्यायाधीश ने पूछा कि यदि कैबिनेट तैयार नहीं हुआ तो क्या होगा. केंद्र के वकील का कहना था कि तब पुराने रूट पर काम होगा. तब न्यायाधीश ने पूछा कि क्या राज्य सरकार जिन स्टॉल धारकों के लिए लड़ाई कर रही है, क्या वह उन्हें हटा देगी. यदि न्यायिक आदेश भी दे दिया जाता है, तो कुछ नहीं होगा. केवल अदालत अवमानना की एक और याचिका ही दायर होगी. नये रूट पर सीइएससी की ओर से उनकी समस्या सामने रखी गयी.
उनके वकील सुबीर सान्याल ने बताया कि उनका सेंट्रल टर्मिनल लालदीघी तालाब के करीब है. इसे हटाने के लिए परिवहन विभाग को उन्होंने गत 27 जनवरी व 10 मार्च को चिट्ठी दी है. लेकिन अभी तक कोई उत्तर नहीं मिला. लिहाजा नया रूट होने से उसे समस्या होगी. अदालत ने कहा कि राज्य सरकार यदि पुराने रूट पर काम न करने देने पर अड़ी रही, तो परियोजना को बंद करने के अलावा और कोई चारा नहीं रहेगा. उल्लेखनीय है कि विशेषज्ञों के मुताबिक यह परियोजना अब बेहद कठिन दौर से गुजर रही है.
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