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पत्रकार महोदय को निष्पक्षता में छेद कैसे दिखता है

21 जुलाई को आपके अखबार में वरिष्ठ पत्रकार आकार पटेल ने कानून के इकबाल के लिए कैसी उत्सुकता शीर्षक से जो लेख लिखा है उसमें कानून की निष्पक्षता और पूर्वाग्रहों के संबंध में एकतरफा और असंतुलित बातों का जिक्र किया गया है. उनका कहना है कि अजमल कसाब, अफजल गुरु व याकूब मेमन को न्याय […]

21 जुलाई को आपके अखबार में वरिष्ठ पत्रकार आकार पटेल ने कानून के इकबाल के लिए कैसी उत्सुकता शीर्षक से जो लेख लिखा है उसमें कानून की निष्पक्षता और पूर्वाग्रहों के संबंध में एकतरफा और असंतुलित बातों का जिक्र किया गया है. उनका कहना है कि अजमल कसाब, अफजल गुरु व याकूब मेमन को न्याय दिलाने हेतु केंद्र, राज्य व अदालतें कानून के इकबाल का नाटक कर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया है. आगे वे कहते हैं कि मजबूत राजनीतिक समर्थन का अभाव व मुसलमान होना उपर्युक्त तीनों की सजा का मुख्य कारण है. 1993 का मुंबई ब्लास्ट, 26/11 की दरिंदगी तथा संसद पर हमले में संलिप्त गुनाहगारों की सजा का स्वरूप भारतीय संविधान के अनुसार एक लंबी कानूनी प्रक्रिया तथा पक्ष-विपक्ष की बहसों के पश्चात ही निर्णायक स्थिति में पहुंचा है. टाडा कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक और अंत में राष्ट्रपति तक एक ही फैसला समान रूप से होता है, फिर पत्रकार पटेल महोदय को निष्पक्षता में छेद कैसे दिखता है. सारे तथ्यों, सबूतों, गवाहों को न्यायालय ने पूरी सूक्ष्मता से देखा है. एक पाठक

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