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संस्कृति की जमीन खिसक रही है : कृष्ण बिहारी मिश्र आलोक शर्मा की पुस्तक का विमोचन

फोटो स्कैनरकोलकाता. यह देख कर अचरज लगता है कि हम बात करते हैं प्रेम और संवेदना की, पर हमारे जो दायरे बन रहे हैं, वह सिमट कर छोटे हो रहे हैं. इतनी क विताएं लिखी जा रही हैं, पर संस्कृति की जमीन खिसक रही है. मानवीय मूल्य दिख ही नहीं रहा है. लगता है कि […]

फोटो स्कैनरकोलकाता. यह देख कर अचरज लगता है कि हम बात करते हैं प्रेम और संवेदना की, पर हमारे जो दायरे बन रहे हैं, वह सिमट कर छोटे हो रहे हैं. इतनी क विताएं लिखी जा रही हैं, पर संस्कृति की जमीन खिसक रही है. मानवीय मूल्य दिख ही नहीं रहा है. लगता है कि विवेक का पल्ला हमसे दूर हो गया है. यही कारण है कि हम मूल्यों के बिना अपने को समझ रहे हैं कि समृद्ध हो रहे हैं. परमहंस और टैगोर की साधना भूमि पर मनुष्य की बर्बरता देख कर लगता है कि संवेदना मर गयी है. कविता का प्रयोजन संवेदना को जीवित रखना है. आलोक शर्मा मेरे अद्वितीय मित्र हैं. उनकी कविताएं मन को छूती हैं. आंदोलित करती हैं. ये बातें आलोक शर्मा की पुस्तक आदिम खामोशी की आवाजें (देशी-विदेशी कविताओं को संग्रह) के विमोचन समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. कृष्णबिहारी मिश्र ने कही. साहित्यकार डॉ. जगदीश्वर चतुर्वेदी ने कहा कि आधुनिक कविता की ट्रेजडी है कि एक भी लोकतांत्रिक कवि पैदा नहीं हुआ. फरमाइशी लेखन से साहित्य को बड़ी क्षति हुई है. लेखक के लिए विचार से ज्यादा विवेक महत्वपूर्ण है. यह एक अच्छी बात है कि आलोक शर्मा कविता के साथ जीते हैं. डॉ. शंभुनाथ ने कहा कि आलोक शर्मा की कविताएं प्रेम और संवेदना की धरातल पर हैं. इस अवसर पर विमल वर्मा और कल्याण गंगोपाध्याय ने विचार रखे. कार्यक्रम का संचालन संजय बिन्नाणी ने किया. इस अवसर पर प्रतिभा अग्रवाल, नंदलाल शाह, गीतेश शर्मा, रश्मि खेरिया, मुकुंद राठी, प्रभात पांडेय, सेराज खान बातिश सहित अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे.

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