श्रीनगर/कोलकाता: लाखों लोगों की गाढ़ी कमाई लूट कर भागे सारधा ग्रुप के चेयरमैन सुदीप्त सेन, निदेशक देबजानी मुखर्जी और एक अन्य अधिकारी अरविंद सिंह चौहान को लेकर विधाननगर पुलिस बुधवार रात 10.40 बजे इंडिगो विमान से कोलकाता एयरपोर्ट पहुंची.
वहां से सुदीप्त और देबजानी को कड़ी सुरक्षा के बीच न्यूटाउन थाने ले जाया गया. बुधवार रात दोनों को न्यूटाउन थाने के अलग-अलग सेल में रखा गया, जबकि अरविंद कुमार चौहान को विधाननगर इलेक्ट्रॉनिक्स कंप्लेक्स थाने में रखा गया. तीनों की गुरुवार की सुबह आठ बजे मेडिकल जांच करायी जायेगी. इसके बाद सुबह 11 बजे विधाननगर जिला अदालत में पेश किया जायेगा. इससे पहले जम्मू-कश्मीर के गंदेरबल के न्यायिक मजिस्ट्रेट परवेज हुसैन काचरू ने बुधवार को इन्हें चार दिन की ट्रांजिट रिमांड पर विधाननगर पुलिस को सौंप दिया. इधर, चिट फंड घोटाले की परतें भी खुलने लगी हैं.
इसमें एक बांग्ला समाचार पत्र ‘प्रतिदिन’ और इसके दो पत्रकार, जो तृणमूल सांसद हैं, के नाम सामने आये हैं. सारधा के चेयरमैन सुदीप्त ने छह अप्रैल, 2013 को एक पत्र लिख कर सीबीआइ को अपनी व्यथा बतायी. कहा कि वह मजबूर था. उसे ब्लैकमेल किया गया. उसने लिखा है कि ‘प्रतिदिन’ के पत्रकारों ने उनके व्यापारिक हितों की रक्षा के नाम पर उनसे मोटी रकम ऐंठी.
कहा कि ‘प्रतिदिन’ के सृंजय बोस ने प्रतिमाह 60 लाख रुपये लिये. कहा कि केंद्र व राज्य में तृणमूल कांग्रेस के नेता और मंत्री उनके हितों की रक्षा करेंगे.
सुदीप्त ने कहा कि ‘प्रतिदिन’ के पत्रकार कुणाल घोष और सृंजय बोस के दबाव में उन्होंने न्यूज बिजनेस शुरू किया. ‘चैनल10’ खरीदा. सृंजय की शर्त थी कि सेन ‘प्रतिदिन’ को प्रतिमाह 60 लाख देंगे. कुणाल ‘चैनल10’ के सीइओ होंगे. उन्हें अलग से प्रति माह 15 लाख वेतन मिलेगा.
सेन का आरोप है कि उनके मीडिया बिजनेस के सीइओ कुणाल घोष ने 55 लाख में ‘चैनल10’ बेचने को मजबूर किया.
सेन ने लिखा है, ‘मैं असहाय था. कुछ अवांछित लोगों ने मेरे नाम पर लोगों से पैसे ले लिये. मैं ऐसे समाज में नहीं जी सकता, जहां लोग मुङो फ्रॉड और चीट कहें. मैं आत्महत्या कर लूंगा.’ असम के एक मंत्री को भी इस कंपनी से मोटी रकम मिलती थी.
इस मुद्दे पर राजनीति शुरू हो गयी है. कांग्रेस, माकपा ने सीबीआइ जांच की मांग की है, तो भाजपा ने लोगों के पैसे लौटाने की.
उधर, अपने ऊपर लगे आरोपों के जवाब में सांसद सृंजय बोस ने कहा कि ‘प्रतिदिन’ के साथ सुदीप्त सेन का एक व्यावसायिक करार था. जिस वक्त यह करार हुआ वह सांसद नहीं थे लिहाजा यह कहना कि उन्होंने सुदीप्त सेन को बचाने का वादा किया था गलत है. इसके अलावा यदि वह उसे बचाने के लिए तैयार थे तब 2012 के 31 मई को यह करार क्यों टूट गया. उन्होंने आरोपों को खारिज कर दिया. इस बीच, एक मीडिया चैनल के साथ बातचीत में सांसद कुणाल घोष ने कहा कि पार्टी की अनुमति के बगैर वह कुछ नहीं कह सकते. लेकिन पत्र में कई झूठी बातें कही गयी हैं. पत्र में 22 लोगों के नाम हैं. तब आखिर क्यों दो ही नामों पर चर्चा हो रही है. बाकी के 20 नामों के संबंध में सवाल क्यों नहीं उठाये जा रहे.