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रंग-बिरंगी रोशनी बिखेरने वाली फुलझड़ियों पर नजर

कोलकाता : दीपावली और कालीपूजा के दिन हवा जहरीली ना हो इसके लिए प्रशासन ने कमर कस ली है. दरअसल पिछले साल दीपावली के दौरान पश्चिम बंगाल में वायु प्रदूषण का स्तर देश के बाकी शहरों की तुलना में कई गुना ज्यादा हो गया था. महानगर में दीपावली की रात प्रदूषण का आंकड़ा 10 पीएम […]

कोलकाता : दीपावली और कालीपूजा के दिन हवा जहरीली ना हो इसके लिए प्रशासन ने कमर कस ली है. दरअसल पिछले साल दीपावली के दौरान पश्चिम बंगाल में वायु प्रदूषण का स्तर देश के बाकी शहरों की तुलना में कई गुना ज्यादा हो गया था.

महानगर में दीपावली की रात प्रदूषण का आंकड़ा 10 पीएम पर 700 के पार चला गया था, जो सामान्य से 14 गुना अधिक है. इन दोनों दिनों तक बड़ी संख्या में आतिशबाजी हुई थी. इस बार रविवार को काली पूजा है और सोमवार को दीपावली है. इस बीच एक बार फिर वायु प्रदूषण कोलकाता में बढ़ता जा रहा है.
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अधिकारी ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया कि प्रशासन ने 90 डेसीबल से अधिक आवाज वाले पटाखों को बैन कर रखा है, लेकिन फुलझड़ियों और कई ऐसे पटाखों को अभी भी अनुमति है, जिनकी आवाज बहुत अधिक नहीं होती, लेकिन उनमें कई तरह के प्रदूषक तत्व इस्तेमाल होते हैं. ऐसे पटाखे जो आकाश में जाकर फटते हैं और रंग बिरंगी रोशनी बिखेरते हैं,
वे सबसे अधिक खतरनाक हैं, क्योंकि जो पटाखे जितनी अधिक रंग-बिरंगी रोशनी बिखेरेंगे उतने अधिक प्रदूषक तत्व निकलते हैं, जो वायुमंडल के निचले स्तर में बैठ जाते हैं. वैसे कोलकाता पिछले कुछ सालों में प्रदूषण की गिरफ्त में है.
कोलकाता पुलिस सूत्रों के अनुसार विगत कुछ सालों से दीपावली पर पटाखे फोड़ने की परंपरा है, लेकिन हिंदू रीति के मुताबिक दीपावली सिर्फ दीपों का त्यौहार रहा है. दीप जलने से वायुमंडल में न सिर्फ शुद्धि आती है, बल्कि विषाणु का अंत भी दीप में जलने से हो जाता है. कोलकाता पुलिस ने लोगों के बीच जाकर जागरूकता अभियान चलाने की शुरुआत की है, ताकि लोग कम से कम पटाखे फोड़े. इसके साथ ही पुलिस उन पर निगरानी भी रख रही है.
महानगर के विभिन्न क्षेत्रों में प्रशासन के अधिकारी जा रहे हैं और फ्लैट अथवा विभिन्न आवासीय परिसरों में रहने वाले लोगों को बुलाकर बैठक कर रहे हैं. वहां बच्चों और बड़ों के बीच पटाखों के जहरीले असर के बारे में बताया जाता है, ताकि लोग जागरूक हों और दीपावली में कम से कम पटाखों का इस्तेमाल हो सके.
दरअसल वायु प्रदूषण सूचकांक अगर 50 से 100 के बीच रहे तो सामान्य माना जाता है.200 पार करने पर खतरनाक हो जाता है. 300 पार करने पर माना जाता है कि वायु विषाक्त हो चुकी है और सांस लेने में भी तकलीफ होने लगती है. विगत एक सालों का अगर आंकड़ा देखा जाये तो कोलकाता में 10 पीएम पर वायु प्रदूषण सूचकांक औसतन 300 के पार रहा है, जबकि 2.5 पीएम पर भी प्रदूषण सूचकांक औसतन 200 के पार रहा है, जो चिंताजनक परिस्थिति है.

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