कोलकाता : ‘भारत के बाहर एक और लघु भारत’ त्रस्त मजदूरों व किसानों के जुनून और संघर्ष की कहानी है. ये बातें मंगलवार को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय केंद्र कोलकाता द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी, जिसका विषय ‘भारत और मॉरीशस : सामाजिक सांस्कृतिक और साहित्यिक परिदृश्य’ में मॉरीशस की कला एवं संस्कृति मंत्रालय […]
कोलकाता : ‘भारत के बाहर एक और लघु भारत’ त्रस्त मजदूरों व किसानों के जुनून और संघर्ष की कहानी है. ये बातें मंगलवार को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय केंद्र कोलकाता द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी, जिसका विषय ‘भारत और मॉरीशस : सामाजिक सांस्कृतिक और साहित्यिक परिदृश्य’ में मॉरीशस की कला एवं संस्कृति मंत्रालय की डॉ सरिता बुधू ने कहीं. उन्होंने भोजपुरी भाषा के साथ अपने होनेवाले संघर्ष को भी सबके साथ साझा किया.
उन्होंने कहा कि भोजपुरी भाषा के वजूद के लिए उन्होंने जुनून के साथ कार्य किया और आज उसे उन्होंने विश्व स्तर तक पहुचाने का भी बीड़ा उठाया है. श्रीमती बुधू ने आगे भी अपनी भाषा संस्कृति को जीवंत रखने के लिए कई प्रेरणादायी बातें कहीं.
वहीं क्षेत्रीय केंद्र कोलकाता और बाहर से आये अन्य शोधार्थियों को उन्होंने अपनी भाषा संस्कृति और समाज को बचाने के लिए आगे बढ़ कर काम करने को कहा. भोजपुरी को नयी पीढ़ी के बीच कायम रखने के लिए उनके द्वारा मॉरीशस के स्कूलों में भी कई तरह के काम किये जा रहे हैं.
इस दौरान उपस्थित लेखक, कवि व पुलिस महानिदेशक (होमगार्ड) मृत्युंजय कुमार सिंह ने अपनी गंवई संवेदना और शहरी लाइफ स्टाइल के साथ वक्तव्य पेश किया. उन्होंने मॉरिशस में भारतीय मूल के लोगों से कहा कि उन्होंने एक सुंदर सुनियोजित देश को बनाया. सत्तर वर्ष में अपने देश को जितनी प्रतिष्ठा हम नहीं दे पाये, उतनी मॉरीशस ने दी है.
उन्होंने मॉरीशस के कई साहित्यकारों की चर्चा करते हुए कहा कि मॉरीशस ने भी एक प्रेमचंद को जीवंत किया. इसी के साथ मॉरीशस में गाये जानेवाले भोजपुरी गीतों को भी उन्होंने सभी के समक्ष प्रस्तुत किया. संगोष्ठी में शिक्षाविद एवं पूर्व राज्य सभा सांसद प्रो. चंद्रकला पांडेय ने मॉरीशस में भोजपुरी के सम्मान की बात करते हुए कहा कि जिस भाषा को भारत में लोग गंवई गंवार की भाषा कहते हैं, वह मॉरीशस की प्रमुख भाषा है.
संगोष्ठी के आयोजक व केंद्र प्रभारी डॉ सुनील कुमार ‘सुमन’ ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि भाषा से संस्कृति जीवित रहती है. केंद्र के सहायक संपादक राकेश श्रीमाल ने धन्यवाद ज्ञापन किया.
कार्यक्रम के दूसरे सत्र की अध्यक्षता काजी नजरुल विश्वविद्यालय, आसनसोल के कला संकाय के डीन प्रो. विजय कुमार भारती ने किया. इस दौरान कोलकाता, शांतिनिकेतन, बर्दवान और वर्धा से आये प्राध्यापकों और शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये. कार्यक्रम का संचालन डॉ कार्तिक चौधरी व केंद्र के शोध छात्र संदीप कुमार दुबे ने किया.