शिव कुमार राउत, सागरद्वीप
मकर संक्रंति में स्नान के बाद दान देने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. ऐसा माना जाता है कि दान देने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है. कर्ण ने तो अपना कवच-कुंडल तक दान में दे दिया था. गंगासागर में इसी भाव से स्नान के बाद बड़ी संख्या में श्रद्धालु दान-पुण्य करते हैं. जिसे लेने के लिए गेट नंबर एक, दो और तीन से लेकर सागर तट तक भिखारियों की लंबी कतार लगी होती है.
यह लाचार, बीमार व बुजुर्ग भिखारियों के लिए रोटी का जरिया है. तो कुछ भिखारियों के लिए ‘धंधा’. लोगों की आस्था को ठगने वाले ऐसे भिखारियों की पड़ताल के बाद पूरा माजरा समझ में आया. झारखंड और बिहार के बिरजू और राजू जिनकी उम्र लगभग 35-40 साल की होगी. ये दोनों पिछले दो साल से संक्रांति पर गंगासागर आ रहे हैं.
मजे की बात यह है कि यह पहले गंगा स्नान करते हैं फिर मैदा, लाल रंग और एक जेलीनुमा मरहम को हाथ-पांव में लगाकर भिखारी बन जाते हैं. यह पूछे जाने पर कि जवान हो हाथ फैलाने में शर्म नहीं आती वह सिर झुका कर कहते हैं कि क्या करें साहब! गांव में रोजगार नहीं हैं. खेती से पेट भी नहीं पलता. शहर में महंगाई इतनी है कि पांच-छह सौ रुपये एक दिन में खर्च हो जाते हैं. मेले में धर्म के नाम पर ही सही कुछ एक्सट्रा इनकम हो जाता है.