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एचआइवी पीड़ित छात्रों को अतिरिक्त सुविधाएं

कोलकाता : एचआइवी या एड्स अपने आप में एक खतरनाक बीमारी है हालांकि इसमें ट्रांसमीशन का कोई खतरा नहीं है, फिर भी बीमारी को लेकर कई तरह की भ्रान्तियां फैली हुई हैं. इसके कारण कभी-कभी बच्चों को भी इसकी सजा भगतनी पड़ती है. जिन बच्चों के माता-पिता एचआइवी से पीड़ित हैं, उनको स्कूल में काफी […]

कोलकाता : एचआइवी या एड्स अपने आप में एक खतरनाक बीमारी है हालांकि इसमें ट्रांसमीशन का कोई खतरा नहीं है, फिर भी बीमारी को लेकर कई तरह की भ्रान्तियां फैली हुई हैं. इसके कारण कभी-कभी बच्चों को भी इसकी सजा भगतनी पड़ती है. जिन बच्चों के माता-पिता एचआइवी से पीड़ित हैं, उनको स्कूल में काफी बुरा व्यवहार झेलना पड़ता है.

इसकी रोकथाम के लिए राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के बाद एक सख्त निर्देश जारी किया है. राज्य सरकार ने सभी माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से जुड़े स्कूलों को एक आदेश जारी कर कहा है कि बोर्ड के दसवीं कक्षा के छात्र, जो एचआइवी पोजेटिव-पैरेंट्स के साथ रहते हैं, या जिनके शरीर में भी वैसे ही वाइरस हैं. उनको ए अथवा डिसएडवान्टेज ग्रुप में रखा जायेगा. ऐसे सभी छात्रों को वे सब सुविधाएं मिलेंगी जो शिक्षा के अधिकार एक्ट के तहत एससी अथवा एसटी छात्रों को मिलती हैं. डिसएडवान्टेज ग्रुप से जुड़े छात्रों को काफी फायदा मिलता है. जैसे संस्थानों में आरक्षित सीट, अनुदान, स्कॉलरशिप व होस्टल की सुविधा दी जाती है. राज्य सरकार द्वारा जारी इस अधिसूचना से शिक्षक संगठन काफी संतुष्ट हैं. कुछ संगठन प्रतिनिधियों का कहना है कि इस फैसले से बच्चों के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा. वरना एचआइवी पैरेंट्स के साथ रह रहे बच्चों को भी काफी दुराचार सहना पड़ता था. कई स्कूल उनको दाखिला ही नहीं देते थे. अब कोई भी स्कूल ऐसी मनमानी नहीं कर पायेगा. इस आदेश में कहा गया है कि जिनके अभिभावक एचआइवी-पोजेटिव हैं या स्वयं बच्चे भी इससे पीड़ित हैं तो वे डिसएडवान्टेज ग्रुप की श्रेणी में आयेंगे. पश्चिम बंगाल ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए अन्य राज्य जैसे केरल, पोंडेचेरी, गोवा, पंजाब, तमिलनाडु, कर्नाटक का अनुसरण कर यह गाइडलान जारी किया है. ये राज्य सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन कबहुत पहले से ही कर रहे हैं.

सभी राज्य सरकारों को इस मुद्दे को एक महत्वपूर्ण अधिसूचना के रूप में जारी करने के लिए जोर दिया गया है. इस नये नियम से इन छात्रों को एससी एसटी के छात्रों की तरह ही सुविधाएं मिलेंगी. आरटीइ एक्ट 2009 के प्रावधान के तहत जो अल्पसंख्यकों को सुविधाएं मिलती हैं, वही सुविधाएं उनको मिलेंगी. उनको सरकार की ओर से सरकारी अनुदान, आरक्षण, स्कॉलरशिप व वे सभी अन्य सुविधाएं दी जायेंगी, जो अन्य डिसएडवान्टेज्ड छात्रों को मिलती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश, एचआइवीएड्स पर काम कर रही दिल्ली की एक गैर सरकारी संस्था द्वारा जारी की गयी याचिका के आधार पर दिया है. इसमें कहा गया है कि ऐसे बच्चों को काफी उपेक्षा झेलनी पड़ती है. हालांकि इस बीमारी में ट्रांसमीशन का कोई खतरा नहीं है लेकिन उन्हें स्कूल छोड़ने के लिए बोला जाता है. कई बच्चों को तो स्कूल में लिया ही नहीं जाता है.

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से ऐसे बच्चों को डिसएडवान्टेज ग्रुप के तहत रखने के लिए कहा है. गाैरतलब है कि हावड़ा, दक्षिण 24 परगना व मुर्शिदाबाद के स्कूलों में कुछ लोगों ने कुछ समय पहले इसको लेकरक काफी झमेला किया था. हाल ही की नेशनल एड्स कंट्रोल संगठन की रिपोर्ट बताती है कि बंगाल के लगभग 22,000 , बच्चे एडआइवी से पीड़ित हैं. यह एक बहुत बड़ी संख्या है. अब ऐसे बच्चों के साथ कोई भी सरकारी या निजी स्कूल भेदभाव नहीं कर पायेगा.

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