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24 को मनेगी महाशिवरात्रि कोयलांचल में
आसनसोल. फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की मध्य रात्रि व्यापणि चतुदर्शी तिथि को महाशिवरात्रि व्रत आसनसोल शहर सहित पूरे कोयलांचल में मनाया जायेगा. स्थानीय शनि मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित तुलसी तिवारी के अनुसार आगामी 24 फरवरी को रात्रि 08:33 बजे तक त्रयोदशी तिथि है. इसके बाद चतुदर्शी तिथि का शुभारंभ हो रहा है. यह तिथि […]
आसनसोल. फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की मध्य रात्रि व्यापणि चतुदर्शी तिथि को महाशिवरात्रि व्रत आसनसोल शहर सहित पूरे कोयलांचल में मनाया जायेगा. स्थानीय शनि मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित तुलसी तिवारी के अनुसार आगामी 24 फरवरी को रात्रि 08:33 बजे तक त्रयोदशी तिथि है. इसके बाद चतुदर्शी तिथि का शुभारंभ हो रहा है. यह तिथि शनिवार यानी 25 फरवरी की रात्रि 08:42 बजे तक रहेगी. इस प्रकार मध्य रात्रि व्यापणि तिथि शुक्रवार 24 फरवरी को ही प्राप्त हो रही है. इस कारण अति पावन महाशिवरात्रि का व्रत 24 फरवरी को ही पूरे कोयलांचल में मनाया जायेगा.
ऐसे पड़ा महाशिवरात्रि नाम
इस तिथि का जो स्वामी हों, उनका उस तिथि में पूजा करना अति उत्तम माना जाता है. चूंकि चतुदर्शी तिथि के स्वामी देवाधिपति महादेव हैं, इसलिए उनका रात्रि में व्रत किये जाने से इसका नाम महाशिवरात्रि हो जाता है. यद्यपि प्रत्येक मास की कृष्ण चतुदर्शी को शिवरात्रि होती है. किन्तु शास्त्र के अनुसार फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष चतुदर्शी के निशीथ काल (मध्य रात्रि) में शिवलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था, इसलिए इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है.
पार्वती के साथ हुआ था विवाह
कुछ शास्त्रों के अनुसार माता पार्वती के साथ बाबा भोलेनाथ का विवाह इसी दिन हुआ था, इसलिए महाशिवरात्रि को शिव पार्वर्ती विवाह उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है. महाशिवरात्रि को व्रती को सुबह स्नानादि के बाद निकट के शिवालय में जाकर माता पार्वर्ती सहित बाबा भोलेनाथ का विधि के साथ पूजन करना चाहिए. सांध्यकाल से पूर्व पुन: स्नानादि कर बाबा भोलेनाथ का पूजन करने का विधान है. शिवरात्रि में रात्रि के चारों पहर माता पार्वर्ती सहित बाबा भोलेनाथ का पूजन किया जाता है.
सफलतादायी व्रत है विजयादशमी
फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष एकादशी का शास्त्रीय नाम विजया एकादशी है. इस व्रत को करने का शुभ अवसर इस वर्ष 22 फरवरी यानी बुधवार को प्राप्त हो रहा है. अन्य एकादशी की भांति इसमें भी हरि स्मरण तथा हरि कीर्त्तन करते हुए रात्रि जागरण का विशेष महत्व है. एकादशी तिथि 22 फरवरी को संध्या 06:44 बजे तक है. यह व्रत सभी कार्यो में विजय तथा सफलतादायक है.
इस दिन भगवान विष्णु की ऋतु पुष्प, दीप-गंध आदि से विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए. एकादशी व्रत का पारन गुरुवार यानी 23 फरवरी की सुबह 06: 13 बजे के बाद किसी भी समय किया जा सकता है. लंका विजय करने की कामना से वक दात्भ्य के आज्ञानुसार समुद्र तट पर भगवान श्री राम चन्द्र ने सबसे पहले इसी एकादशी व्रत को किया था. जिसमें रावण आदि असुर मारे गये थे. रामचन्द्र विजयी हुए थे. पूजन के लिए सही उपयुक्त समय सुबह 6:14 बजे से सुबह 09:05बजे तक, सुबह 10:34 बजे से 11:55 बजे तक तथा दोपहर 02:55 बजे से संध्या 05:20 बजे तक है.
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